गुरुवार, 12 अगस्त 2021

गुरु भक्त

           ।। गुरु भक्त एकलव्य ।।

महाभारत में एक पत्र थे एकलव्य जिनकी गुरु भक्ति प्रसिद्ध है, जब गुरु द्रोणाचार्य जी ने यह कहकर एकलव्य को शिक्षा देने से मना कर दिया था, की वह केवल क्षत्रिय राजकुमारों को ही शिक्षा प्रदान करते हैं।
तब एकलव्य ने मन ही मन गुरु द्रोणाचार्य को गुरु मानकर उनकी प्रतिमा बना कर विद्याअध्यन आरम्भ कर दिया और एक सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बन गए, लेकिन जब गुरु द्रोणाचार्य ने गुरुदीक्षा में दाये हाथ का अंगूठा मांग लिया तो यह जानते हुए भी की अंगूठे के बिना उनकी विद्या का कोई मोल नही रह जायेगा फिर भी उन्होंने अपने दाये हाथ का अंगूठा गुरुदीक्षा में देकर गुरुभक्ति का एक अनूठा उदहारण प्रस्तुत किया था।

   ।। स्वामी विवेकानंद जी की गुरुभक्ति ।।

स्वमी विवेकानंद जी के गुरु रामकृष्ण परमहंस जी का विवेकानंद जी पर विशेष स्नेह था। वह कैंसर से पीड़ित थे, उनके बाकी के शिष्य उनसे दूरी बनाने लगे, उनके गले से पस आदि निकलते तो कोई भी शिष्य उसे साफ नही करता, नाही कोई उनके पास जाता यह देखकर विवेकानंद जी को काफी पीड़ा हुई और उन्होंने, गुरु रामकृष्ण परमहंस जी के गले से निकली पस को उठा कर पी लिया था, ऐसी थी स्वमी विवेकानंद जी की गुरु के प्रति श्रद्धा।

।। वीर शिवाजी महाराज की गुरुभक्ति।।

वीर शिवाजी महाराज के गुरु थे समर्थ रामदास जी, वे शिवजी महाराज की वीरता और प्रतिभा तथा गुरुभक्ति को पहचानते थे तथा उनके इन्ही सद्गुणों के कारण वह बालक शिवा पर विशेष स्नेह रखते थे, उनकी यह बात बाकी शिष्यों को अच्छी नही लगती थी, एक दिन उन्होंने गुरुदेव से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बोला कि समय आने पर बताऊगा, एक दिन गुरु रामदास जी के पेट मे दर्द हुआ, सभी शिष्यों ने उपचार के लिए चलने को कहा तो गुरु बोले इसका एक ही उपचार है अगर कोई मुझे शेरनी का दूध लकार दे तो उसका सेवन करते ही मेरा दर्द ठीक हो जाएगा परंतु कोई भी शिष्य तैयार नही हुआ, परन्तु जैसे ही शिवजी महाराज को पता चला वह दौड़े दौड़े गुरु के पास आये, उनसे सब हाल जाना और तुरंत ही निकल पड़े जंगल की ओर और शेरनी का दूध लाकर गुरुदेव को दिया, सभी आश्चर्य से वीर शिवाजी की ओर देख रहे थे, गुरुदेव समर्थ रामदास जी ने वाकी शिष्यों से कहा शायद तुम्हे तुम्हारे प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा।

बुधवार, 11 अगस्त 2021

ब्राम्हण की महिमा

सनातन धर्म मे ब्राम्हण को गुरु का स्थान दिया जाता, एक सच्चा ब्राम्हण अपने कर्मों के द्वारा समाज को अच्छे रास्ते पर चलने की प्रेरणा देता है, प्राचीन काल से ही ब्राह्मण का कार्य विद्या प्राप्त करना और विद्या प्रदान करना रहा है, ब्राम्हण संसार की भलाई के लिए जप तप यज्ञ अनुष्ठान आदि करते और करवाते आये हैं, यही कारण है कि भगवान भी ब्राम्हण से शिक्षा लेने के लिए लालायित रहते हैं, फिर चाहे भगवान श्री कृष्ण हो भगवान श्री राम या पांडव हो।
देवता हो या दानव सभी ब्राम्हणों का सम्मान करते थे। मैं अपने विवेक अनुसार कुछ पक्तियो के द्वारा ब्राम्हणों की महिमा के बारे में बताना चाहूंगा-
ब्राम्हण पैर पताल छलो, और
ब्राम्हण ही साठ हजार को जारो
ब्राम्हण सोख समुद्र लियो और
ब्राह्मण ही यदुवंश उजारो,
ब्राम्हण लात हनि हरि के तन
ब्राम्हण ही क्षत्रिय दल मारो
ब्राम्हण से जिन बैर करे कोई
ब्राम्हण से परमेश्वर हारो।।
अर्थात- ब्राम्हण ने अपने पैर से तीनों लोक नाप कर राजा बलि से मुक्त किया था, राजा बलि ने तीनों लोकों को अपने अधीन कर लिया था तब बामन भगवान ने बलि से तीन पग धरती दान में मांग ली थी और और दो पग में ही पृथ्वी और आकाश को नाप दिया था तथा तीसरा पग बलि के सिर पर रखकर उसका उद्धार किया था। अगस्त जी ने सारा समुद्र सोख लिया था। कपिल मुनि ने सगर जी के साठ हजार पुत्रो को श्राप देकर भस्म कर दिया था। तो परसुराम जी ने पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया था, दुर्वासा ऋषि ने यदुवंशीयो को श्राप देकर यदुवंश को नष्ट कर दिया था, तो वही भृगु ऋषि ने भगवान विष्णु के वक्ष स्थल पर अपने पैर से प्रहार कर दिया, इसलिय ब्राह्मणों से कभी विरोध नही करना चाहिए, ब्राम्हण को भूदेव भी कहा जाता है, ब्राम्हणों ने सनातन धर्म को एक सूत्र में बांधने का कार्य हमेशा से ही किया है, इसलिये ब्राह्मणों के हितार्थ भगवान भी पृथ्वी पर अवतार लेते रहे हैं।
वेद पुराणों और शास्त्रों ने भी ब्राह्मण की महिमा गायी है। रामचरित मानस में भी भगवान ने तुलसीदास जी के मुख से कहलवाया है, विप्र धेनु सुर संत हित लीन मनुज अवतार, निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गोपार।

सोमवार, 9 अगस्त 2021

श्रीधर स्वमी जी की कथा (Shridhar Svami ji ki katha)

श्रीधर स्वमी जी श्रीमद्भागवत गीता पर टीका लिखा रहे थे। उन्होंने देखा कि गीता में एक श्लोक आया है अनन्याश्चिन्तयन्तो माम ये जना पाउपस्यन्ते तेसं नित्य अभियुक्तनम योगक्षेम वहामहम।। इसका अर्थ होता है जो भी व्यक्ति संसार के सारे आश्रय को छोड़कर एक मेरे ही आश्रित रहता है उसका सारा भार में स्वयं वहन करता हूँ। श्रीधर महाराज ने सोचा भगवान स्वयं तो किसी के पास जाते नही होंगे उसकी व्यवस्था करने वह तो किसी को माध्यम बनाकर उनकी व्यवस्था करते होंगे जो उनके आश्रित रहते हैं, अतः श्रीधर महाराज ने उस श्लोक में अपनी ओर से सुधार करते हुए योगक्षेम वहामहम की जगह योगक्षेम ददामहम कर दिया। एक दिन की बात है श्रीधर महाराज के घर पर भोजन की व्यवस्था नही थी घर पर पत्नी भूखी थी श्रीधर महाराज किसी कार्य से घर से बाहर गए हुए थे। उसी समय भगवान श्री कृष्ण बालक के रूप में सिर पर भोजन सामग्री लिए हुए तथा मुँह से खून गिरता हुआ श्रीधर महाराज के घर पर पहुँच गए। आवाज लगाई तो श्रीधर महाराज की पत्नी बाहर आयी बालक रूपधारी भगवान श्री कृष्ण जी बोले माता यह भोजन महाराज जी ने भेजा है, श्रीधर महाराज की पत्नी ने पूछा बेटा आपके मुँह से यह खून कैसा निकल रहा है इसपर भगवान बोले माता यह श्रीधर महाराज ने मेरे मुँह पर मारा है, इतना कहकर बालक रूपधारी भगवान श्री कृष्ण वहाँ से चले गए। शाम को जब श्रीधर महराज घर लौटे तो पत्नी ने सारी बात बताई और पूछा कि आपने इतने प्यारे बालक के मुँह पर क्यो मारा? श्रीधर महाराज समझ गए कि यह बालक कोई और नही बल्कि स्वंय भगवान श्री कृष्ण थे।उन्होंने तुरंत अपनी गलती सुधारी और भगवान से क्षमा माँगी और पत्नी को समझाया। गीता तो स्वयं भगवान श्री कृष्ण के मुख से निकली हुई अमृतबाणी है इसपर संसय अर्थात भगवान पर संसय।

रविवार, 8 अगस्त 2021

शुकदेव जी की कथा (shukadev ji ki katha)

शास्त्रों के अनुसार- शुकदेव जी महाऋषि वेदव्यास जी के पुत्र थे उनकी माता का नाम
वाटिका था, शुकदेव जी के जन्म की बड़ी
बिचित्र कथा है। एक समय की बात है कि माता पार्वती ने भगवान शिव जी से अमर कथा सुनने की इच्छा प्रगट की, बहुत विनय करने पर भगवान शिव जी कथा सुनाने को तैयार हो गए पर उन्होने माता पार्वती के सामने एक प्रस्ताव रखा, की जब तक मैं कथा सुनाऊँगा तब तक आपको ध्यान से कथा सुननी होगी और उत्तर में हां बोलना होगा कथा के स्थान पर हम दोनों के अतिरिक्त कोई भी नही होगा, माता पार्वती तैयार हो गयी। भगवान भोलेनाथ ने कथा प्रारम्भ की कुछ देर कथा सुनने के पश्चात भगवान भोलेनाथ कथा में लीन हो गए इसी दौरान माता पार्वती को नींद आ गयी और वहाँ पर कही से एक शुक (तोता) आ कर बैठ गया और उत्तर देता रहा जब कथा पुर्ण हुई तो भोलेनाथ ने देखा माता पार्वती तो सो रही है और उनकी जगह शुक(तोता) उत्तर दे रहा है, क्रोधित होकर भगवान भोलेनाथ उसके पीछे भागे और अपना त्रिशूल उसके पीछे छोड़ दिया, शुक आपने प्राण बचाने के लिए वेदव्यास जी के आश्रम में चला गया उसी समय माता वाटिका को छींक आयी और वह सूक्ष्म रूप से उनके मुख में प्रवेश कर गया और माता वाटिका के गर्भ में 14 वर्ष तक रहा, पिता के बार बार आग्रह करने के बाद तथा भगवान श्री कृष्ण के आश्वासन के बाद शुक ने माता वाटिका के गर्भ से जन्म लिया, भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें संसार की माया व्याप्त नही होगी ऐसा दिया था। शुकदेव जी ने ही वेदव्यास जी से महाभारत सुनकर देवताओं को सुनाई थी। तथा राजा परीक्षित को पिता वेदव्यास से सुनकर भागवत कथा का अमृत पान कराया था। शुकदेव जी की गुरु राधा रानी थी उनका नाम सुनते ही शुकदेव जी ध्यान मुद्रा में चले जाते थे। इसी बात का ध्यान रखते हुए पिता वेदव्यास जी ने भागवत में राधा नाम का उल्लेख नही किया है। क्योंकि अगर राधा जी का नाम कथा में आता तो शुकदेव जी ध्यान मुद्रा में चले जाते और कथा अधूरी रह जाती। शुकदेव जी अल्पायु में ही ब्रम्हलीन हो गए थे। 

बुधवार, 4 अगस्त 2021

जय श्री राम (Jai Shri Ram}

श्री राम स्तुति(Shri Ram Stuti)
श्री रामचंद्र कृपाल भजमन,
हरण भव भय धारणम।
नव कंज लोचन कंज मुख कर,
कंज पद कन्जारुणम।
कंदर्प अगनित अमित छवि नव
नीर नीरज सुंदरम,
पट्पीत मानव तड़ित रुचि शुचि
नोमी जनक सुताबरम।
भजु दीनबंधु दिनेश दानव
दैत्य वंश निकन्दनम,
रघुनन्द आंनद कंद कौसल
चंद दशरथ नन्दनम।
सिर मुकुट कुंडल
तिलक चारु उदार
अंग बिभूषणम,
आजन भुज सर चापधर
संग्राम जित खरदुशनम।
मन जाहि राचेहु मिलत सो वर
सहज सुंदर सांवरो,
करुनानिधान सुजानशील
स्नेह जानत रावनो।
एहि भाती गौर आशीष
सुन सिये हिय हर्षित चली।
तुलसी भावनी पूज्य पुनि पुनि
मुदित मन मंदिर चली।।
श्री जान गौरी अनुकूल सियहिय हरष न जाये कहि।
श्री मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।
            ।।श्री राम जन्म स्तुति।।
सुर समूह विनती करि पँहुचे निज निज धाम
जब निवास प्रभु प्रकटे अखिल लोक विश्राम।।
भये प्रकट कृपाला दीनदयाला
कौसिल्या हितकारी,
हर्षित महतारी मुनिमन हारी।
अद्भुद रूप निहारी,
लोचन अभिरामा तन घनश्मा।
निज आयुद भुज चारी,
भूषण वनमाला नयन विशाला
शोभा सिंधु खरारी।
कह दोई कर जोरी
अस्तुति तोरी केहि विधि करहु अनन्ता,
करुणा सुख सागर सब गुण आगर
जेहि गावहि सुरति संता।
सो मम हित लागी जन अनुरागी
भयऊ प्रगट श्रीकंता
ब्रमण्ड निकाया निर्मित माया,
रोम रोम प्रति वेद कहे।
मम उर सो बासी यह उपहासी
सुनत धीर मति थिर न रहे
उपजा जब ग्याना प्रभु मुस्काना
चरित बहुत विधि कीन्ह चाहे
कहि कथा सुहाई मात बुझाई
जेहि प्रकार सुत प्रेम लहे
माता पुनि बोली सो मति डोली
तजहु तात यह रूपा,
कीजै शिशु लीला अति प्रिय शीला
यह सुख परम् अनूपा,
सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना
होई बालक सुर भूपा।
यह चरित जो गावहि हरि पद पावहि,
ते न परे भव कूपा।।
बिप्र धेनु सुर संत हित लीन मनुज अवतार।
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गोपार।।
लखन सीया रामचंद्र की जय





बुधवार, 28 जुलाई 2021

पैसे की महिमा ( पैसे बिना )

पैसे बिना माई कहे, कैसो जो कपूत भयों,
पैसे बिना पत्नी कहे निकम्मे से पाला पड़ा,
पैसे बिना सास कहे कैसो जो जमाई है,
पैसे बिना भाई कहे बंधु दुख दीन है,
पैसे बिना न ही बंधु, पैसे बिना न ही यार,
पैसे बिना देव नही करते सहाई है,
सुनो कहे सारांश भाई पैसा रखो अपने पास पैसे बिना मुर्दे ने लकड़ी नही पाई है।

रविवार, 18 जुलाई 2021

कुण्डलिया (गिरधर )

बिना विचारे जो करे, सो पाछै पछिताय,
काम बिगाड़े आपनो, जग में होत हसाय,
जग में होत हसाय, चित्त में चैन न पावै,
खान पान सम्मान, राग रंग मन ही न भावै,
कह गिरिधर कविराय, दुख कछु टरत न टारे,
खतकत है जिय में कियो जो बिना विचारे।।
                          (2)
पानी बाड़े नाव में, घर मे बाड़े दाम,
दोनों हाथ उलीचिये, यही सियानो काम,
यही सियानो काम, राम को सुमिरन कीजै,
परस्वरथ के काज, शीश आगे धर दीजै।।
                         (3)
साईं ये न विरोधिये, गुरु पंडित कवि यार,
बेटा वनिता पोरियो, यज्ञ करावन हार,
यज्ञ करावन हार, राज मंत्री जो होई,
विप्र पड़ोसी वैध, आपकी तपै रसोई,
कह गिरिधर कविराय, युगनते ये चली आई,
इन तेरह सो तरे दिन, आबे साँई ।।

बुधवार, 23 जून 2021

भगवान के दर्शन का फल

रामचरित मानस में स्वयं भगवान ने आपने दर्शन का फल बताया है- 
मम दर्शन फल परम् अनूपा,
जीव पाय निज सहज स्वरूपा।।
अर्थात भगवान के दर्शन का फल यही है कि आप अपने सहज स्वरूप को जान ले।
और जिस दिन आप अपने सहज स्वरूप को जान जायेगे तो समझिए कि आपको भगवान के दर्शन का फल प्राप्त हो गया,
वैसे भी मानस में आया है कि ईश्वर अंश जीव अविनाशी, चेतन विमल सहज सुख राशि।। ईश्वर तो हर जीव के अंदर विधमान है। वो थे न मुझसे दूर न मैं उन से दूर था, आता न था नजर तो नजर का कसूर था।।
जिस प्रकार बहुत सारे वर्तन में हम पानी भरते हैं तो वर्तन तो भिन्न भिन्न होते हैं किंतु उनमे पानी एक ही होता है। कबीर जी ने भी इसका एक सुंदर उदाहरण दिया है- कबीरा पानी एक है वर्तन है अनेक न्यारे न्यारे वर्तन में पानी एक को एक। इसलिए सब कहा गया है कि सब रोगों की एक दवाई आपने आपको जानो भाई।

रामायण पढने का आसन तरीका

दोस्तो इस पोस्ट के माध्यम से आज हम आपको रामायण पढ़ने का आसन तरीका बतायेगे रामायण में मूलतः सोरठा, श्लोक,चौपाई, और दोहा होते हैं जिन्हें हम बड़ी ही सुंदरता से गाकर पढ सकते हैं, जो श्रोता तथा वक्ता दोनों के मन को आनंदित करेगा, सबसे पहले सोरठा कैसे पड़ते हैं ये जानते हैं-  जेहि सुमिरत सिद्ध होय गण नायक करिवर बदन। यह एक सोरठा है अब इसे हम अपने आसन तरीके से ऐसे पढेंगे- जेहि सुमिरत सिद्ध होय सियारामा गण नायक करिवर बदन रामा, इसके बाद चौपाई के बारे में जानते हैं- मंगल भवन अमंगलहारी, द्रवहु सो दसरथ अजर बिहारी। छंद को पढ़ना सबसे ज्यादा कठिन होता है परंतु इस प्रकार पढ़ने से आपको कोई कठिनाई नही होगी, जैसे- भय प्रगट कृपाला, दीनदयाला, कौसिल्या हितकारी, या श्री रामचन्द्र, कृपाल भजमन, हरण भव भय हारणम, नव कंज लोचन, कंज मुख कर, कंज पद कन्जारुणम। आशा है आपको हमारी यह पोस्ट पसन्द आएगी और आप भी आसानी से श्री रामायण जी का अध्ययन आसानी से कर पाएंगे। दोस्तो श्लोक संस्कृत में ही होते हैं और हम सभी को थोड़ी बहुत तो संस्कृत तो आती ही है।

शुक्रवार, 18 जून 2021

रामायण एवं सुंदरकांड आवाहन विसर्जन आरती

             ।। आवाहन ।।
जेहि सुमिरत सिद्ध होय सियारामा,
गण नायक करिवर बदन रामा ।
करहुँ अनुग्रह सोई सियारामा,
बुध्दि राशि शुभ गुण सदन रामा ।।
मूक होइ वाचाल सियारामा,
पंगु चढाई गिरिवर गहन रामा।
जासु कृपासु दयाल सियारामा,
द्रवहु सकल कलिमल दहन रामा।।
नील सरोरुह श्याम सियारामा,
तरून अरुन वारिज नयन रामा।
करहु सो मम उर धाम सियारामा,
सदा क्षीरसागर सयन रामा।।
कुंद इंदु सम देह सियारामा,
उमा रमन करुणा अयन रामा।
जाहि दीन पर नेह सियारामा,
करहु कृपा मर्दन मयन रामा।।
वंदहु गुरुपद कंज सियारामा,
कृपासिंधु नर रूप हरि रामा।
महामोह तम पुंज सियारामा,
जासु वचन रविकर निकर रामा।।
वंदहु मुनिपद कंज सियारामा,
रामायन जेहि निर्मयु रामा।
सखर सुकोमल मंजु सियारामा,
दोष रहित दूषन सहित रामा।।
वंदहु चारहु वेद सियारामा,
भव वारिध वो हित सरिस रामा।
जिनहि न सपनेहुँ खेद सियारामा,
बरनत रघुपति विमल यश रामा।।
वंदहु विधि पद रेनू सियारामा,
भवसागर जिन कीन्ह यह रामा।
संत सुधा शशि धेनु सियारामा,
प्रगटे खल विष बारुनी रामा।।
वंदहु अवध भुआल सियारामा,
सत्य प्रेम जेहि राम पद रामा।
बिछुरत दीनदयाल सियारामा,
प्रिय तनु तृन इव पर हरेउ रामा।।
वंदहु पवनकुमार सियारामा,
खलबल पावक ज्ञान घन रामा।
जासु हृदय आगार सियारामा,
बसहि राम सर चापधर रामा।।
रामकथा के रसिक तुम रामा,
भक्ति राशि मतिधीर सियारामा।
आय सो आसन लीजिये रामा,
तेज पुंज कपि वीर सियारामा।।
रामायण तुलसीकृत रामा,
कहहु कथा अनुसार सियारामा।
प्रेम सहित आसन गहेहु रामा,
आवहु पवन कुमार सियारामा
।। सियावर रामचंद्र की जय।।
               
                  ।। विसर्जन ।।
जय जय राजाराम की रामा,
जय लक्ष्मण बलवान सियारामा।
जय कपीस सुग्रीव की रामा,
जय अंगद हनुमान सियारामा।।
जय जय काकभुशुण्डि की रामा,
जय गिरि उमा महेश सियारामा।
जय ऋषि भारद्वाज की रामा,
जय तुलसी अवधेश सियारामा।।
प्रभु सन कहियो दंडवत रामा,
तुमहि कहो कर जोरि सियारामा।
बार बार रघुनाथ कहि रामा,
सुरति करावहु मोरि सियारामा।।
कामहि नारी पयारी जिमि रामा,
लोभहि प्रिय जिमि दाम सियारामा।
तिमि रघुनाथ निरंतर रामा,
प्रिय लागहु मोहि राम सियारामा।।
बार बार वर माँगहु रामा,
हर्ष देहु श्री रंग सियारामा।
पद सरोज अन पायनी रामा,
भक्ति सदा सतसंग सियारामा।।
प्रणत पाल रघुवंश मणि रामा,
करुणा सिंधु खरारी सियारामा।
गए शरण प्रभु राखिहैं रामा,
सब अपराध विसार सियारामा।।
कथा विसर्जन होत है रामा,
सुनो वीर हनुमान सियारामा।
जो जन जहाँ से आये हो रामा,
ते तह करो पयान सियारामा।।
श्रोता सब आश्रम गए रामा,
शम्भु गए कैलाश सियारामा।
रामायण मम हिर्दय में रामा,
सदा करो तुम वास सियारामा।।
रामायण जसु पावन रामा,
गावहि सुनहि जे लोग सियारामा।
राम भगति दृढ़ पावहि रामा,
विन विराग जप योग सियारामा।।
रामायण वैकुण्ठ गई रामा,
सुर गए निज निज धाम सियारामा।
रामचंद्र के पद कमल रामा,
वंदि गए हनुमान सियारामा।।
         ।। सियावर रामचंद्र की जय ।।

        ।। रामायण जी की आरती ।।
आरती श्री रामायण जी की,
कीरति कलित ललित सिया पी की ।
गावत ब्रम्हदिक मुनि नारद,
बाल्मीकि विज्ञान बिसारद।
सुक सनकादिक सेष अरु सारद,
वरनि पवनसुत कीरति निकी।
गावत वेद पुराण अष्टदस,
छहो शास्त्र ग्रंथन को रस।
मुनिजन धन संतन को सरबस,
सार अंश सम्मत सबहि की।
गावत सतत शम्भु भवानी,
अरु घट सम्भव मुनि विज्ञनी।
व्यास आदि कविवर्ज बखानी,
काकभुशुण्डि गरुड़ के हिय की।
कलिमल हरनि विषय रस फीकी,
सुभग सिंगार मुक्ति जुवती की।
दलन रोग भव मुरी अमी की,
तात मात सब विधि तुलसी की।
आरती श्री रामायण जी की।।






बुधवार, 2 जून 2021

बिना चालक की बस

एक छोटा सा बालक था वह ईश्वर में श्रद्धा रखता था, उसके पिता एक पड़े लिखे व्यक्ति थे, परंतु वह ईश्वर में विश्वास नही रखते थे, बालक कभी कोई सवाल करता तो वह उसे वैज्ञानिक तरीके से समझा देते थे। एक दिन बालक ने पूछा पिता जी इस संसार को कौन चलता है, ये बारिश, गर्मी, सर्दी, अपने समय पर ही क्यों आते हैं, सूर्य चंद्रमा समय से क्यो निकलते हैं कौन है जो इन्हें मैनेज करता है? पिता ने बताया बेटा इसे कोई मैनेज नही करता ये सब अपने आप होता है, दुनिया को कोई नही चलता ये अपने आप चलती है। अगले दिन बालक स्कूल गया वहाँ से थोड़ा लेट हो गया, घर पर पिता परेशान हो गए। थोड़ी देर बाद बालक बालक घर पहुच गया, पिता ने डाँटते हुए पूछा आज स्कूल से लेट कैसे हो गए, बालक मुस्कुराते हुए बोला पिता जी आज स्कूल से बिना ड्राइवर की बस में आया हूँ अब बस को कोई मैनेज तो कर नही रहा था तो वह कहीं भी रुक जाती बड़ी मुश्किल से घर पहुँच पाया हूं। बालक की बात सुनकर पिता को गुस्सा आया और वह बोला बेटा ऐसा भी होता है क्या की बगैर किसी के चलाये बस चलती हो, बालक बोला पिता जी जब इतनी बड़ी दुनिया बगैर किसी के चलाये चल सकती है तो क्या एक छोटी सी बस बगैर ड्राइवर के नही चल सकती। पिता हैरत भरी नजरों से बेटे की तरफ देखने लगा, छोटे से बच्चे ने पिता की आँखे खोल दी।

विश्व मैं सर्वाधिक बड़ा, छोटा, लंबा एवं ऊंचा

सबसे बड़ा स्टेडियम - मोटेरा स्टेडियम (नरेंद्र मोदी स्टेडियम अहमदाबाद 2021),  सबसे ऊंची मीनार- कुतुब मीनार- दिल्ली,  सबसे बड़ी दीवार- चीन की ...