रविवार, 8 अगस्त 2021

शुकदेव जी की कथा (shukadev ji ki katha)

शास्त्रों के अनुसार- शुकदेव जी महाऋषि वेदव्यास जी के पुत्र थे उनकी माता का नाम
वाटिका था, शुकदेव जी के जन्म की बड़ी
बिचित्र कथा है। एक समय की बात है कि माता पार्वती ने भगवान शिव जी से अमर कथा सुनने की इच्छा प्रगट की, बहुत विनय करने पर भगवान शिव जी कथा सुनाने को तैयार हो गए पर उन्होने माता पार्वती के सामने एक प्रस्ताव रखा, की जब तक मैं कथा सुनाऊँगा तब तक आपको ध्यान से कथा सुननी होगी और उत्तर में हां बोलना होगा कथा के स्थान पर हम दोनों के अतिरिक्त कोई भी नही होगा, माता पार्वती तैयार हो गयी। भगवान भोलेनाथ ने कथा प्रारम्भ की कुछ देर कथा सुनने के पश्चात भगवान भोलेनाथ कथा में लीन हो गए इसी दौरान माता पार्वती को नींद आ गयी और वहाँ पर कही से एक शुक (तोता) आ कर बैठ गया और उत्तर देता रहा जब कथा पुर्ण हुई तो भोलेनाथ ने देखा माता पार्वती तो सो रही है और उनकी जगह शुक(तोता) उत्तर दे रहा है, क्रोधित होकर भगवान भोलेनाथ उसके पीछे भागे और अपना त्रिशूल उसके पीछे छोड़ दिया, शुक आपने प्राण बचाने के लिए वेदव्यास जी के आश्रम में चला गया उसी समय माता वाटिका को छींक आयी और वह सूक्ष्म रूप से उनके मुख में प्रवेश कर गया और माता वाटिका के गर्भ में 14 वर्ष तक रहा, पिता के बार बार आग्रह करने के बाद तथा भगवान श्री कृष्ण के आश्वासन के बाद शुक ने माता वाटिका के गर्भ से जन्म लिया, भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें संसार की माया व्याप्त नही होगी ऐसा दिया था। शुकदेव जी ने ही वेदव्यास जी से महाभारत सुनकर देवताओं को सुनाई थी। तथा राजा परीक्षित को पिता वेदव्यास से सुनकर भागवत कथा का अमृत पान कराया था। शुकदेव जी की गुरु राधा रानी थी उनका नाम सुनते ही शुकदेव जी ध्यान मुद्रा में चले जाते थे। इसी बात का ध्यान रखते हुए पिता वेदव्यास जी ने भागवत में राधा नाम का उल्लेख नही किया है। क्योंकि अगर राधा जी का नाम कथा में आता तो शुकदेव जी ध्यान मुद्रा में चले जाते और कथा अधूरी रह जाती। शुकदेव जी अल्पायु में ही ब्रम्हलीन हो गए थे। 

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