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शनिवार, 23 जुलाई 2022

भगवान शिव शंकर के १०८ नाम अर्थ सहित In Hindi


१ शिव - कल्याण स्वरूप
२ महेश्वर - माया के अधिश्वर
३ शम्भू - आनंद स्वरूप वाले
४ पिनाकी-पिनाक धनुष धारण करने वाले
५ शशिशेखर - सिर पर चंद्रमा धारण करने वाले
६ वामदेव - अत्यंत सुंदर स्वरूप वाले
७ विरुपाक्ष- विचित्र आंख वाले
८ कपर्दी- जटा जूट धारण करने वाले
९ नीललाहित- नीले और लाल रंग वाले
१० शंकर - का कल्याण करने वाले
११ शूलपाणी - हाथ  मैं त्रिशूल धारण करने वाले
१२ खटवांगी - खटिया का एक पाया रखने वाले
१३ विष्णु बल्लभ- भगवान विष्णु के अति प्रिय
१४ शिपिविष्ट- सितुहा मैं प्रवेश करने वाले
१५ अंबिका नाथ- देवी भगवती के पति
१६ नीलकंठ- नीले कंठ वाले
१७ भक्तवत्सल- भक्तों को अत्यंत प्रिय
१८ भव - संसार के रूप मैं प्रकट होने
१९ शर्व- कष्टों का नाश करने वाले
२० त्रिलोकेश- तीनों लोकों के स्वामी
२१ शितिकण्ठ- सफेद कंठ वाले
२२ शिवाप्रिय- पार्वती के प्रिय
२३ उग्र- अत्यंत उग्र रूप वाले
२४ कपाली- कपाल धारण करने वाले
२५ कामारी - कामदेव के शत्रु
२६ सुरसूदन- अंधक दैत्य को मारने वाले
२७ गंगाधर- गंगा जी को धारण करने वाले
२८ ललाटाक्ष- ललाट में आंख वाले
२९ महाकाल- कालों के काल
३० कृपानिधि- करूणा की खान
३१ भीम- भयंकर रूप वाले
३२ परशुहस्त- हाथ में फरसा धारण करने वाले
३३ मृगपाणी- हाथ में हिरण धारण करने वाले
३४ जटाधर- जटा रखने वाले
३५ कैलाशवासी- कैलाश के निवासी
३६ कवची- कवच धारण करने वाले
३७ कठोर - अत्यंत मजबूत देह वाले
३८ त्रिपुरान्तक - त्रिपुरासुर को मारने वाले
३९ वृषांक - बैल के चिह्न वाली ध्वजा वाले
४० वृषभारुढ - बैल की सवारी करने वाले
४१ भस्मोद्धलितविग्रह- सारे शरीर में भस्म लगाने वाले
४२ सामप्रिय - साम गान से प्रेम करने वाले
४३ स्वरमयी - सातों स्वरों में निवास करने वाले
४४ त्रयीमूर्ति - वेद रूपी विग्रह करने वाले
४५ अनीश्वर - जो स्वयं ही सबके स्वामी हैं
४६ सर्वज्ञ - सब कुछ जानने वाले
४७ परमात्मा - सब आत्माओं में सर्वोच्च
४८ सोमसूर्याग्निलोचन - चंद्र सूर्य अग्नि रूपी नेत्रों वाले
४९ हवि - आहूति रूपी द्रव्य वाले
५० यज्ञमय - यज्ञरूप वाले
५१ सोम - उमा के सहित रूप वाले
५२ पंचवक्त्र - पांच मुख वाले
५३ सदाशिव - नित्य कल्याण रूप वाले
५४ विश्वेश्वर - सारे विश्व के ईश्वर
५५ वीरभद्र - वीर होते हुए भी शांत स्वरूप वाले
५६ गणनाथ - गणों के स्वामी
५७ प्रजापति - प्रजा का पालन करने वाले
५८ हिरण्यरेता - स्वर्ण तेज वाले
५९ दुर्धुर्ष - किसी से नहीं डरने वाले
६० गिरीश - पर्वतों की स्वामी
६१ गिरीश्वर - कैलाश पर्वत पर सोने वाले
६२ अनघ - पापरहित 
६३ भुजंगभूषण - सांपों के आभूषण वाले
६४ भर्ग - पापों को भूंज देने वाले
६५ गिरिधन्वा - मेरु पर्वत को धनुष बनाने वाले
६६ पुराराति - पुरों का नाश करने वाले
६७ भगवान - सर्व समर्थ ऐश्वर्य संपन्न
६८ प्रमयाधिप - प्रथमगणो के अधिपति
६८ मुत्युजय - मृत्यु को जीतने वाले
६९ सूक्ष्मतनु - सूक्ष्म शरीर वाले
७० जगद्व्यापी - जगत में व्याप्त होकर रहने वाले
७१ जगतगुरु - जगत् के गुरू
७२ ब्योमकेश - आकाश रूपी बाल वाले
७३ महासेनजनक - कार्तिकेय के पिता
७४ चारूविक्रम - सुंदर पराक्रम वाले
७५ रुद्र - भयानक
७६ भूतपति - भूतप्रेत या पंचभूतो के
 स्वामी
७७ स्थाणु - स्पंदन रहित कूटस्थ रूप वाले
७८ अहिर्बुध्न्य - कुंडलिनी को धारण करने वाले
 ७९ दिगंबर - नग्न, आकाश रूपी वस्त्र धारण करने वाले
८० अष्टमूर्ति - आठ रूप वाले
८१ अनेकात्मा - अनेक रूप धारण करने वाले
८२ सात्विक - सत्त्व गुण वाले
८३ शुद्धविग्रह - शुद्ध मूर्ति वाले
८४ शाश्वत - नित्य रहने वाले
८५ खण्डपरसु - टूटा हुआ फरसा धारण करने वाले
८६ अज - जन्म रहित
८७ पाशविमोचन - बंधन से छुड़ाने वाले
८८ मृड - सुख स्वरूप वाले
८९ पशुपति - पशुओं के स्वामी
९० देव - स्वयं प्रकाश रूप
९१ महादेव - देवों के देव
९२ अव्यय - खर्च होने पर भी ना घटने वाले
९३ हरि - विष्णु स्वरूप
९४ पूषदन्तभित् - पूषा के दांत उखाड़ने वाली
९५ अव्यग्र - कभी भी व्यथित ना होने वाले
९६ दक्षाध्वहर - दक्ष के यज्ञ को ध्वस्त करने वाले
९७ हर - पापों व पापों को हरने वाले
९८ भगनेत्रभिद् - भग देवता की आंख फोड़ने वाले
९९ अव्यक्त - इंद्रियों के सामने प्रकट न होने वाले
१०० सहस्त्राक्ष - हजार आंखों वाले
१०१ सहस्त्रपाद - हजार पैरों वाली
१०२ अपवर्गप्रद - कैवल्य मोक्ष देने वाले
१०३ अनंत - देश कालवस्तु रूपी परिछेद से रहित
१०४ तारक - सबको तारने वाले
१०५ परमेश्वर - सबसे परम ईश्वर
१०६ रामेश्वर - राम जी के ईश्वर
१०७ गौरीश - गौरी के ईश्वर
१०८ उमाशंकर - उमा के शंकर 


सोमवार, 2 मई 2022

शिव चालीसा (Shiv Chalisa)

दोस्तों आज के इस अंक में हम भगवान भोलेनाथ की आरती एवं चालीसा प्रस्तुत कर रहे हैं।
                  शिव चालीसा

दोहा- जय गणेश गिरिजा सुवन मंगल मूल सुजान।
 कहत अयोध्या दास तुम देउ अभय वरदान।।
चौपाई- जय गिरिजापति दीन दयाला।
सदा करत संतन प्रतिपाला।।
 भाल चंद्रमा सोहत नीके।
 कानन कुंडल नागफनी के।।
 अंग गौर सिर गंग बहाये।
 मुंडमाल तन क्षार लगाए ।।
वस्त्र खाल बाघाम्बर सोहे।
 छवि को देख नाग मन मोहे।।
 मैंना मात की हवे दुलारी।
 बाम अंग सोहत छवि न्यारी।।
 कर त्रिशूल सोहत छवी भारी।
 करत सदा शत्रु क्षयकारी ।।
 नंदी गणेश सोहे तहं कैसे। 
सागर मध्य कमल है जैसे ।।
कार्तिक श्याम और गणराऊ।
या छवि को जात न काऊ।।
देवन जबही जाए पुकारा।
 तब ही दुख प्रभु आप निवारा।।
 किया उपद्रव तारक भारी ।
देवन सब मिली तुमहि जुहरी।।
तुरत षडानन आप पठायो।
 लव निमेष महं मारि गिरायऊ।।
 आप जालंधर असुर संहारा ।
सुयश तुम्हार विदित संसारा ।।
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। 
सबहि कृपा करि लीन बचाई ।।
किया तपहि भागीरथ भारी।
 पूरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी।।
दानिन में तुम सम कोऊ नाही ।
सेवक स्तुति करत सदा ही ।।
वेद नाम महिमा तक गाई ।
अकथ अनादि भेद नहीं पाई ।।
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला।
 जरत सुरासुर भए बिहाला।।
 किन्ह दया तब करी सहाई।
 नीलकंठ तब नाम कहाई ।।
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा।
 जीत के लंक विभीषण दीना।।
 सहस कमल में हो रहे धारी।
 कीन्ह परीक्षा तबहि त्रिपुरारी।।
 एक कमल प्रभु राखियों जोई।
 कमलनयन पूजन चहुं सोई ।।
कठिन भक्ति देखी जब शंकर।
भये प्रसन्न दिए  इच्छित वर।।
 जय जय जय अनंत अविनाशी।
 करत कृपा सब के घट वासी।।
 दुष्ट सकल नित मोहि सतावै।
भ्रमत रहौ मोहि चैन न आवै।।
त्राहि त्राहि में नाथ पुकारो।
यहि अवसर मोहि आन उवारो।। 
 मात पिता भ्राता सब  कोई ।
संकट में पूछते नहीं कोई।।
 स्वामी एक आस तुम्हारी।
 आय हरहु अब संकट भारी।।
 धन निरधन को देत सदा ही।
 जो कोई जांचे वो फल पाहि।।
स्तुति केहि बिधि करो तुम्हारी।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी।।
शंकर हो संकट के नासन।
विघ्न विनाशक मंगल कारण।।
योगी यति मुनि ध्यान लगा वे।
 नारद शारद शीश नवावै।।
 नमो नमो जय  नमः शिवाय।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाए।।
जो यह पाठ करें मन लाई ।
ता पर होते हैं शम्भु सहायी।।
ऋनियां जो कोई हो अधिकारी।
पाठ करै सो पावन कारी।।
पुत्र हीन कर इच्छा जोई।
 निश्चय शिवप्रसाद तेहि होई ।।
पंडित त्रयोदशी को लावै।
 ध्यान पूर्वक होम करावे ।।
त्रयोदशी व्रत करे हमेशा।
तन नहीं ताके रहे कलेशा।।
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे ।
शंकर सन्मुख पाठ सुनावे ।।
जन्म-जन्म के पाप नसावे ।
अंत धाम शिवपुर में पाबे।।
 कहे अयोध्या दास तुम्हारी।
जान सकल दुख हरहु हमारी।।
दोहा- नित्य नेम कर प्रातः ही पाठ करो चालीस।
 तुम मेरी मनोकामना पूर्ण करो जगदीश।। मगसर छठि हेमंत ऋतु संवत चौसठ जान। अस्तुति चालीसा शिवहि पूर्ण कीन कल्याण।।
              शिव जी की आरती
ओम जय शिव ओंकारा स्वामी जय शिव ओंकारा।
 ब्रम्हा विष्णु सदाशिव अर्धांगी धारा।। ओम जय शिव ओंकारा।। 
एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसासन गरुड़ासन वृषवाहन साजे।।ओम जय शिव ओंकारा।।
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे। तीनों रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे।। ओम जय शिव ओंकारा।।
 अक्षमाला वनमाला मुंडमाला धारी। त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी।।ओम जय शिव ओंकारा।।
 श्वेतांबर पीतांबर वाघाम्वर अंगे।
 सनकादिक गरूडादिक भूतादिक संगे।।ओम जय शिव ओंकारा।।
करके मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धारी।
सुख कारी दुखहारी जगपालनकारी।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।प्रणवाक्षर के मध्ये यह तीनों एका।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
त्रिगुण स्वामी जी की आरती जो कोई जन गावे।
कहत शिवानंद स्वामी मन वांछित फल पावे।। ओम जय शिव ओंकारा।।

गुरुवार, 3 फ़रवरी 2022

शिवतांडव स्त्रोतरम (ShivTandavStrotram)

शिवतांडव स्त्रोतरम बोलना सीखे सरल तरीके से।।

जटा-टवी-गलज्-जल-प्रवाह-पावि-तस्थले
गलेऽव-लम्व्य लम्बितां भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम्।
डमड्-डमड्-डमड्-डमन्-निनाद-वड्-डमर्वयं-
चकारचण्ड-ताण्डवं तनोतु नः शिवःशिवम् ।।१।।
जटा-कटाह-सम्भ्रम-भ्रमन्-निलिम्पनिर्झरी 
विलोल-विचिवल्लरी-विराज-मानमूधनि।
धगद्-धगद्-धगज्-ज्वलल्-ललाट-पट्टपावके
किशोर-चन्द्र-शेखरे रत़िःप्रति-क्षणं.मम।।२।।
धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-विलास-बन्धुबन्धूर
स्फुरद्-दिगन्त-सन्तति-प्रमोद-मानमानसे।
कृपा-कटाक्ष-धोरणी-निरूध्द-दुर्धरा-पदि
क्वचिद्-दिगम्वरे मनो विनोद-मेतुवस्तुनि।।३।।
जटा-भुजङ्ग-पिङ्गल-स्फ़ूरत-फणामणि-प्रभा-
कदम्ब-कुड़कुम-द्रव-प्रलिप्त दिग्वधू-मुखे।
मदान्ध-सिन्धुर-स्फ़ूरत-त्वगुत्तरीय-मेदुरे
मनो विनोद-मभूतं विभर्तु भूत भर्तरि।।४।।
सहस्त्र-लोचन-प्रभृत्य-शेष-लेख-शेखर
प्रसून-धूलि-धोरणी-विधु-सराधि-पीठभू:।
भुजङ्ग-राज-मालया निबद्ध-जाट-जुटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोर-बंधु-शेखरः।।५।।
ललाट-चत्वर-ज्वलद्-धन्ञ्नय-स्फुलिङ्गभा-
निपीत-पञ्च-सायकं नमन्-निलिम्प-नायकम्
सुधा-मयूख-लेखया.विराज-मान-शेखरं
महा-कपालि सम्पदे शिरो जटाल-मस्तुनः।।६।।
कराल-भाल-पट्टीका-धगद्-धगद्-धगज्-ज्वलद्
धन्ञ्नया-हती-कृत-प्रचण्ड-पञ्च-सायकं।
धरा-धरेन्द्र नन्दिनी-कुचाग्र-चित्र-पत्रक-
प्रकल्प-नेक-शिल्पिनि-त्रिलोचने-रतिर्मम।।७।।
नवीन-मेघ-मण्डली-निरूद्ध-दुर्धर-स्फुरत्-
कुह-निशीधिनी-तमः-प्रबन्ध-बद्ध-कन्धरः।
निर्लिम्पनिर्झरी-धरस-तनोत-कृत्ती-सिन्धुरः
कला-निधान-बन्धुरःश्रियं जगद्-धुरन्धरः।।८।।
प्रफुल्ल-नील-पड्कज-प्रपञ्च-कालिम-प्रभा-
वलम्वि-कण्ठ-कन्दली-रूचि-प्रवद्ध-कन्धरम्।
स्मरच्छिदं-पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छि-दान्ध-कच्छिदं तमन्त-कच्छिदंभजे।।९।।
अखर्व-सर्व-मङ्गला-कला-कदम्बमञ्जरी
रस-प्रवाह-माधुरी-विजम्भृणा-मधुन्व्रतम।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्त-कान्ध-कान्तकं तमन्त-कान्तकंभजे।।१०।।
जयत्-वदभ्र-विभ्रम-भ्रमद-भुजङ्गमश्वस
द्विनिर्गमत-क्रम-स्फुरत्-कराल-भाल-हव्य-वाट
धिमिद्-धिमिद्-धिमिद्-ध्वनन-तुङ्ग-मङ्गल-
ध्वनि-क्रम-प्रवर्तित-प्रचण्ड-ताण्डवः शिवः।।११।।
दृषद्-विचित्र-तल्पयोर्-भुजङ्ग-मौक्ति-कस्त्रजोर-गरिष्ठ-रत्न-लोष्ठयोःसुहृद-विपक्ष-पक्ष-यो:।
तृणारविन्द-चक्षुषोःप्रजा-मही-महेन्द्रयोः
सम-प्रवृत्ति-कः कदा सदा-शिवंभजाम्यहम्।।१२।।
कदा निलिम्प-निर्झरी-निकुञ्ज-कोटरेवसन
विमुक्त-दुर्मतीः सदा शिरः स्थ-मञ्जलिवहन्।
विलोल-लोल-लोचनो ललाम-भाल-लग्नकः
शिवेति मन्त्र मुच्चरन् कदा सुखीभवाम्यहम्।।१३।।
इमं हि नित्य-मेव-मुक्त-मुत्त-मोत्तमस्तवं
पठन् स्मरन् ब्रुवन्-नरो विशुद्धि-मेतिसन्ततम्।
हरे गुरौ सुभक्ति-मासु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशड्करस्यचिन्तनम्।।१४।।
पूजा-वसान-समये दश-वक्त्र-गीतं
यः शम्भु-पूजन-परं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथ-गजेन्द्र- तुरङ्ग-युक्तां
लक्ष्मी सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भूः।।१५।।


बुधवार, 10 मार्च 2021

।। श्री रुद्राष्टक ।। (shri rudrashtak)

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुम व्यापकं ब्रम्हवेदस्वरूम।
निजं निर्गुणम निर्विकल्पं निरिहम चिदकाशमाकावासम भजेहम ।।१।।
निराकारमोकारमूलम तुरीयं गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम।
करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारम नतोहम।।२।।
तुषाराद्रि संकाश गौरम गभीरं मनोभूत कोटिप्रभा श्रीशरीरम।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा लसभदलबालेंदु कंठे भुजंगा।।३।।
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं निलकंठम दयालम।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि।।४।।
प्रचंडं प्रकृष्टम प्रगल्भं परेशं अखंडं अजं भानुकोटिप्रकाशं।
त्रयः शूल निर्मूलम शूलपाणिम भजेहम भवानीपतिम भावगम्यम।।५।।
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी।
चिदानंद संदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी।।६।।
न यावत उमानाथ पदरविंदम भजंतीह लोके परे वा नराणां।
न तावत सुखम शांति सन्तापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम।।७।।
न जानामि योगम जपं नैव पूजां नतोहं सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम।
जरा जन्म दुःखो घतातप्यमानम प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो।।८।।
रुद्राष्टकम्मिदम प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये।
ये पठंति नरा भक्त्या तेषा शंभु: प्रसीदति।।
।। इति श्री गोस्वामी तुलसीदास कृतं श्रीरूद्राष्टकम सम्पूर्णम।।

भारत के प्रमुख पर्यटन स्थल Indian tourist spots Indian tourist spots

साथियों आज के अंक में हम भारत के प्रमुख पर्यटन स्थल के बारे में जानकारी देंगे जहां पर Indian tourist के अलावा all world से tourist भी काफी स...