*पूजा विधि*
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से पूजन प्रारंभ होता है। 'सममुखी' प्रतिपदा शुभ होती है अतः वही ग्राह्य है। अमायुक्त प्रतिपदा में पूजन नही करना चाहिये। सर्वप्रथम स्वंय स्नान आदि से पवित्र हो, गोमय से पूजा-स्थान का लेपन कर उसे पवित्र कर लेना चाहिये। ततपश्चात घट-स्थापन करने की विधि है। घट-स्थापन प्रातः काल करना चाहिये। परंतु चित्रा या वैधृति योग हो तो उस समय घट- स्थापन न कर मध्याह्न में अभिजित आदि शुभ मुहूर्त में घट-स्थापन करना उचित है।
यह नवरात्र स्त्री-पुरूष-दोनो कर सकते हैं। यदि स्वंय न कर सके तो पति, पत्नी, पुत्र या ब्राम्हण को प्रतिनिधि बनाकर व्रत पुर्ण कराया जा सकता है। व्रत में उपवास, अयाचित ( बिना माँगे प्राप्त भोजन), नक्त ( रात में भोजन करना) या एकभुक्त (एक बार भोजन करना)-जो बन सके यथासामर्थ्य वह करे।
यदि नवरात्रों में घट-स्थापन के बाद सूतक (अशौच) तो कोई दोष नही लगता, परंतु पहले हो जाये तो पूजनादि स्वंय न करे।
घट स्थापन के लिये पवित्र मिट्टी से वेदी का निर्माण करे, फिर उसमें जौ और गेहूं बोये तथा उसपर यथाशक्ति मिट्टी, ताँबा, चाँदी, या सोने का कलश स्थापित करे।
यदि पूर्ण विधिपूर्वक करना हो तो पंचांग पूजन (गणेशाम्बिका, वरुण, षोडशमातृका, सप्तघृतमातुका,नवग्रह आदि देवो का पूजन) तथा पुण्याहवाचन ब्राम्हण द्वारा कराये अथवा स्वयं करे।
इसके बाद कलश पर देवी की मूर्ति स्थापित करे तथा उसका षोडशोपचार पूर्वक पूजन करे। तदनंतर श्रीदुर्गासप्तशती का सम्पुट अथवा साधारण पाठ भी करने की विधि है।
पाठ की पूर्णाहुति के दिन दशांश हवन अथवा दशांश पाठ करना चाहिये।
*दीपक-स्थापन*
पूजा के समय घृत का दीपक बी जलाना चाहिये तथा उसकी गंध, अक्षत, पुष्प आदि से पूजा करे।
कुछ लोग अपने घरों में दीवार पर अथवा काष्टपट्टिका पर अंकित चित्र बनाकर इस चित्र की तथा घृत दीपक द्वारा अग्नि से प्रज्वलित ज्योति की पूजा अष्टमी अथवा नवमी तक करते हैं।
*कुमारी-पूजन*
कुमारी पूजन नवरात्र व्रत का अनिवार्य अंग है। कुमारिकाएँ जगज्जननी जगदम्बा का प्रत्यक्ष विग्रह है।
सामर्थ्य हो तो ९ दिन तक ९ अथवा सात, पाँच, तीन या एक कन्या को देवी मानकर पूजा करके भोजन करना चाहिये। इसमें ब्राम्हण कन्या को प्रशस्त माना गया है। आसन बिछाकर गणेश, वटुक तथा कुमारियों को एक पंक्ति में बिठाकर पूजन करे।
*विसर्जन*
नवरात्री व्यतीत होने पर दसवे दिन विसर्जन करना चाहिये। विसर्जन से पूर्व भगवती दुर्गा का गंध, अक्षत, पुष्प, आदि से पूजन करे।
*शक्तिधर की उपासना*
चैत्र नवरात्रि में शक्ति के साथ शक्तिधर की भी उपासना की जाती है। एक ओर जहां देवी भागवत, कालिका पुराण, और मार्कण्डेय पुराण, का पाठ होता है, वही दूसरी ओर श्रीरामचरितमानस, श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण एवं आध्यत्मरामायण का भी पाठ होता है। इसलिए यह नवरात्र देवी नवरात्र के साथ साथ रामनवरात्र के नाम से भी प्रसिद्ध है।