ग्यारस व्रत में ऐसे रहिये।
जैसे धर्म नीक को चहिये।।
साँचा व्रत बताऊँ तोही।
गुरु शुकदेव बताया मोही।।
नवमी नेम करे चित्त लाई।
दशमी संयमयुक्त बताई।।
ग्यारस व्रत बताऊँ नीका।
सबही व्रत शिरोमणि टीका।।
निर्जल करै नीर नही परसै।
पोह फाटे जब सूर्य दरसै।।
एक पहर के तड़के जागै।
जबही सुमरण करने लागै।।
करे विचार शुद्ध कर काया।
जाकर बैठे भजन मझाया।।
कोठे के पट देकर राखे।
नर नारी सों बचन न भाखै।।
कुंड काढ़ बैठे तिही माही।
ताके बाहर निकसे नाही।।
कर आवाहन आसन मारे।
व्रत करै वैराग्य ही धारे।।
जप गुरु मंत्र औऱ हरि ध्याना।
जाको नेक नही विसराना।।
जो तेरे गुरु ने कहा, जाका कर तू ध्यान।
बैठो अस्थिर नो पहर, करो व्रत पहचान।।
व्रत करे त्योहार सा, नाना रस के स्वाद।
भोग करे तप न करे, सब करनी बरबाद।।
पांचो इंद्री व्रत करीजै।
पलक झाप नैनन पट दीजै।।
इत उत मनवा नाही चलावे।
आँखन को नही रूप दिखावे।।
श्रवण शब्द न खइये भाई।
त्वचा स्पर्श न अंग लगाई।।
षटरस स्वाद न जिव्या दीजै।
नासा गंध सुगंध न लीजै।।
ऐसा व्रत करे सो वर्ता।
मुक्त होय ग्यारस का कर्ता।।
ऐसा बरत उतारे पारा।
छोना तिरत लगे नही बारा।।
बहुर द्वादसी बाहर आवे।
अपनी श्रद्धा द्विज भुगतावे।।
संक्षेप में भाव यह है कि नवमी को व्रत का नियम लेकर दशमी को संयमपूर्वक रहना चाहिए और एकादशी को निर्जलव्रत रखना चाहिये। यह एकादशी व्रत व्रतों में शिरोमणि स्वरूप है। इस दिन प्रातः काल ही उठकर भगवान का स्मरण करना चाहिए, विचारो को शुद्ध रखना चाहिये।
इसदिन संयम नियम धारण कर वैराग्य पूर्वक रहे। किसी से कोई सम्बन्ध न रखकर एकांत में निवासकर भगवान का ध्यान करे।गुरु द्वरा उपदिष्ट मार्ग का अनुसरण करें।
भोग-विलास से सर्वथा दूर रहे, इससे व्रत भंग हो जाता है।
अपनी पांचो इंद्रियों को उनके विषयो से दूर रखकर संयमपूर्वक रहे औऱ द्वादशी को व्रत का पारण करे।
पूर्वकाल में राजा अम्बरीष महाभागवत हो चुके हैं। उनका एकादशी व्रत का अनुष्ठान प्रसिद्ध ही है। भागवत में कहा गया है-
आरिराधयिषु: कृष्णम महिष्या तुल्यशीलया।
युक्तः साँवत्सरम वीरो दधार द्वादशीव्रतं।।
(श्रीमद्भागवत ९।४।२९)
श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिये राजा अम्बरीष ने आपने समान शीलवती रानी के साथ वर्षपर्यन्त द्वादशी प्राधन एकादशी व्रत धारण किया।
एकादशी के दिन अन्न-ग्रहण का तथा श्राद्ध का निषेध है, यहाँ तक की प्रसाद में भी अन्न ग्राह्य नही है।
श्री नन्दराय जी ने एकादशी के दिन निराहार रहकर जनार्दन भगवान का पूजन किया, फिर द्वादशी के दिन स्नान करने के लिये कालिंदी के जल में प्रवेश किया-
एकादश्याम निराहार: सम्भयचर्य जनार्दज्म।
सन्नतुम नन्दस्तु कालिन्धा द्वादश्याम जलमाविशत।।(श्रीमद्भागवत १०।२८।१)
एकादशी के दिन नैमित्तिक श्रद्धा हो तो द्वादशी के दिन करे-
एकादश्याम यदा राम श्राद्धम नैकित्तिकम भवेत।
तधिम तु परित्यज द्वादश्याम श्राद्धमाचरेत।।
(पद्म पुराण)
ब्रम्हाण्डपुराण में बताया गया है कि जो व्यक्ति एकादशी के दिन उपवास पूर्वक विविध उपचारों से भगवान श्रीहरि का पूजन करता है, संयम नियम से रहता है। रात्रि जागरण करता है और भगवान की आरती उतरता है, वह व्यक्ति भगवान का प्रिय पात्र बन जाता है। अतः एकादशी व्रत का यथा विधि अवश्य पालन करना चाहिए। रात्रि जागरण तथा हरि कीर्तन की विशेष महिमा है।
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