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सोमवार, 25 जुलाई 2022

हनुमान जी के १०८ नाम

१ मारुति
२ अंजनी पुत्र
३ अंजनी कुमार
४ अंजनीलाल
५ अंजनी सुत
६ केसरी नंदन
७ पवनसुत
८ पवनकुमार
९ वायु पुत्र 
१० हनुमान
११ पवनतनय
१२ पवनपुत्र
१३ शंकरसुवन
१४ बजरंगबली
१५ कपिश्रेष्ठ 
१६ वानर यूथपति
१७ रामदूत
१८ पंचमुखी हनुमान
१९ भीमसेन सहाकृते
२० कपीश्वराय
२१ महाकायाय
२२ कपिसेनानायक
२३ कुमार ब्रह्मचारिणे
२४ महाबलपराक्रमी
२५ वानराय
२६ केसरी सुताय
२७ शोक निवारणाय
२८ अंजनागर्भसंभूताय
२९ विभिषणप्रियाय
३० वज्रकायाय
३१ रामभक्ताय
३२ लंकापुरीविदाहक
३३ सुग्रीव सचिवाय
३४ पिंगलाक्षाय
३५ हरिमर्कटमर्कटाय
३६ रामकथालोलाय
३७ सीतान्वेणकर्ता
३८ वज्रनखाय
३९ रुद्रवीर्य
४० वानरेश्वर
४१ ब्रह्मचारी
४२ आंजनेय
४३ महावीर
४४ हनुमत
४५ मारुतात्मज
४६ तत्वज्ञानप्रदाता
४७ सीतामुद्राप्रदाता
४८ अशोकवहिकक्षेत्रे
४९ सर्ववन्धविमोत्र
५० रक्षाविध्वंसकारी
५१ परविद्यापरिहारी
५२ परमशौर्यविनाशय
५३ परमंत्र निराकर्त्रे
५४ परयंत्र प्रभेदकाय
५५ सर्वग्रह निवासिने
५६ सर्वदुःखहराय
५७ सर्वलोकचारिणे
५८ मनोजवय
५९ पारिजातमूलस्थाय
६० सर्वतंत्ररुपणे
६१ सर्वयंत्रात्मकाय
६२ सर्वरोगहराय
६३ प्रभवे
६४ सर्वविद्यासम्पत
६५ भविष्य चतुरानन
६६ रत्नकुण्डल पाहक
६७ चंचलद्वाल
६८ गर्धवविद्यात्वज्ञ
६९ कारागारविमोक्त्री
७० सर्वबंधमोचकाय
७१ सागरोत्तारकाय
७२ प्रज्ञाय
७३ प्रजापवते
७४ बालार्कसदृशनाय
७५ दशग्रीवकुलान्तक
७६ लक्ष्मण प्राणदाता
७७ महाद्युतये
७८ चिंरजीवने
७९ दैत्यविघातक
८० अक्षहन्त्रे
८१ कालनाभाय
८२ काचनाभाय
८३ पंचवक्त्राय
८४ महातपसी
८५ लंकिनीभंजन
८६ श्रीमते
८७ सिंहिकाप्राणहर्ता
८८ लोकपूज्याय
८९ धीराय
९० शूराय
९१ दैत्यकुलान्तक
९२ सुराचर्चित
९३ महातेजस
९४ रामचूडामणिप्रदाया
९५ कामरुपिणे
९६ मैनाकपूजिताय
९७ मनोजवम
९८ मरुततुल्यवेगयं
९९ जितेन्दियम
१०० बुद्धि निधान
१०१ सकल गुणनिधान
१०२ असुर निकन्दन
१०३ राम दुलारे
१०४ लाल देह
१०५ कपि
१०६ कपिसूर
१०७ बजरंग
१०८ बजरंगी



रविवार, 1 मई 2022

संकटमोचन हनुमानाष्टक (Sankatmochan Hanumanashtk)

नमस्कार साथियों आज के इस अंक में हम आपको सभी संकटों को हरने वाले श्री संकट मोचन हनुमान अष्टक के बारे में बताएंगे इसके पाठ करने से आप सभी संकटों से मुक्त हो जाएंगे जय श्री राम
         
            संकटमोचन हनुमानाष्टक
बाल समय रवि भक्ष लियो तब 
तीनहुं लोक भयो अंधियारो।
 ताहि सो त्रास भयो जग को 
यह संकट काहू सो जात ना टारो।।
 देवन आनि करी बिनती तब
 छाड़ दियो रवि कष्ट निवारो ।
को नहीं जानत है जग में कपि
 संकटमोचन नाम तिहारो।।१।।
बालि की त्रास कपीस बसे गिरि
 जात महाप्रभु पंथ निहारो ।
चौकी महामुनि शाप दीया 
तब चाहिए कौन विचार विचारों ।।
के द्विज रूप लिवाय  महाप्रभु 
सो तुम दास के सोक निवारो।
 को नहीं जानत है जग में 
कपि संकटमोचन नाम तिहारो।।२।।
अंगद के संग लेन गए सिय 
खोज कपीस यह बैन उचारों ।
जीवंत ना बचि हौ हम सो 
जो बिना सुधि लाए यहां पगु धारो।।
 हेरि थके तट सिंधु सबै 
तब लाए सिया सुधि प्राण उवारो।
 को नहीं जानत है जग में 
कपि संकटमोचन नाम तिहारो।।३।।
 रावण त्रास दई सिय को 
सब राक्षसी सों कहि सोक निवारो ।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु 
जाय महा रजनी चर मारो ।।
चाहत सीय अशोक सों आगि सु
 दै प्रभु मुद्रिका शोक निवारो ।
को नहीं जानत है जग में 
कपि संकटमोचन नाम तिहारो।।४।।
बाण लग्यो उर लछिमन के 
तब प्राण तजे सुत रावण मारो।
 ले गृह वैद्य सुषेण समेत
 ताबे गिरि द्रोण सो वीर उपारो ।।
आनी सजीवन हाथ दई तब 
लछिमन के तुम प्राण उवारो।
को नहि जानत है जग में 
कपि संकटमोचन नाम तिहारो।।५।।
रावण युद्ध अजान कियो तब 
नाग कि फांस सबै सिर डारो।
 श्री रघुनाथ समेत सबै दल 
मोह भयो यह संकट भारो ।।
आनि खगेश ताबे हनुमान जु
 बंधन काटि सूत्रास निवारो ।
को नहीं जानत है जग में 
कपि संकटमोचन नाम तिहारो।।६।।
बंधु समेत जबै अहिरावण 
 लै रघुनाथ पाताल सिधारो ।
देविहि पूजि भलि विधि सो 
बलि देउ सबै मिलि मंत्र विचारो ।।
जाय सहाय भयो तब ही 
अहिरावण सैन्य समेत संहारो ।
को नहीं जानत है जग में
 कपि संकटमोचन नाम तिहारो।।७।।
काज किए बड़ देवन के तुम
 बीर महाप्रभु देखि विचारों।
 कौन सो संकट मोर गरीब को
 जो तुम सो नहीं जात हैं टारो ।।
बेगी हरो हनुमान महाप्रभु 
जो कछु संकट होय हमारो ।
को नहीं जानत है जग में 
कपि संकटमोचन नाम तिहारो।।८।।
दौहा-लाल देह लाली लसे अरु धरि लाल लंगूर ।
बज्र देह दानव दलन जय जय जय कपि सूर ।।
पवनसुत हनुमान जी की जय

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2022

श्री हनुमान चालीसा (Shri Hanuman Chalisa)

नमस्कार साथियों आज के इस अंक में हम आपको श्री हनुमान चालीसा श्री बजरंग बाण , प्रस्तुत कर रहे हैं, 
            १ श्री हनुमान चालीसा
दोहा- श्री गुरु चरण सरोज रज निज मनु मुकुर सुधारि।
 बरनऊ रघुबर बिमल जसु जो दायक फल चारि।।
 बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरो पवन कुमार।
 बल बुद्धि विद्या देहु मोहि हरहु कलेश विकार।।
चौपाई-  जय हनुमान ज्ञान गुण सागर।
 जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
 राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनी पुत्र पवनसुत नामा।।
 महावीर विक्रम बजरंगी।
 कुमति निवार सुमति के संगी।।
 कंचन वरण विराज सबेसा।
 कानन कुंडल कुंचित केसा।।
 हाथ बज्र औ ध्वजा विराजे।
 कांधे मूंज जनेऊ साजे।।
शंकर सुवन केसरी नंदन।
 तेज प्रताप महा जग बंदन।।
 विद्यावान गुनी अति चातुर।
 राम काज करिवे को आतुर।।
 प्रभु चरित सुनबे को रसिया।
 राम लखन सीता मन बसिया।।
 सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा।
 बिकट रुप धरि लंक जरावा।।
 भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे।।
 लाय सजीवन लखन जियाए।
 श्री रघुवीर हरषि उर लाए।।
 रघुपति किंही बहुत बड़ाई।
 तुम मम प्रिय भरत सम भाई।। 
सहस बदन तुम्हारो यश गावै।
अस कहिश्रीपति कंठ लगावै।।
 सनकादिक ब्रह्मादि मुनीषा।
नारद शारद सहित अहीसा।।
 जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
 कवि कोबिद कहि सके कहां ते।। 
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हां।
राम मिलाए राजपद दीन्हा।।
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही।
जलधि लांघी गए अचरज नाही।।
 दुर्गम काज जगत के जेते।
 सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
 राम दुआरे तुम रखवारे।
 होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
 सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना।।
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक ते कांपे।।
भूत पिशाच निकट नहीं आवै।
महावीर जब नाम सुनावै।।
 नासे रोग हरे सब पीरा ।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
 संकट से हनुमान छुडावे।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावे।।
 सब पर राम तपस्वी राजा। 
तिनके काज सकल तुम साजा।।
और मनोरथ जो कोई लावे।
 सोई अमित जीवन फल पावे।।
चारों युग परताप तुम्हारा।
 है प्रसिद्ध जगत उजियारा।।
 साधु संत के तुम रखवारे ।
असुर निकंदन राम दुलारे।।
 अष्ट सिद्धि नवनिधि के दाता।
 अस बर दीन जानकी माता।।
 राम रसायन तुम्हारे पासा।
 सदा रहो रघुपति के दासा।।
 तुम्हारे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै।।
अंत काल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि भक्त कहाई।।
और देवता चित्त ना धराई।
 हनुमत सेई सर्व सुख करई।।
संकट कटे मिटे सब पीरा।
 जो सुमिरे हनुमत बलबीरा।।
 जय जय जय हनुमान गोसाई।
 कृपा करो गुरुदेव की नाई।।
 यह सत बार पाठ कर कोई। 
छूटहि बंदी महा सुख होई।
 जो यह पढ़े हनुमान चालीसा।।
 होय सिद्धि साखी गौरीसा ।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
 कीजै नाथ हृदय महं डेरा।।
दोहा-पवन तनय संकट हरण मंगल मूर्ति रुप राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुरभूप।। 
                 २ बजरंग बाण
दोहा-निश्चय प्रेम प्रतीति ते विनय करें सनमान। 
तेहि के कारज सकल शुभ सिद्ध करैं हनुमान।।
चौपाई-जय हनुमंत संत हितकारी।
सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।।
जन के काज विलंब न कीजै।
आतुर दोरी महासुख दीजे।।
 जैसे कूदि सिंधु महि पारा।
सुरसा बदन पैठी विस्तारा।।
 आगे जाय लंकिनी रोका। 
मारेहु लात गई सुर लोका ।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा।
 सीता निरखि परम पद लीन्हा।।
 बाग उजाड़ सिंधु महं बोरा।
 अति आतुर यम कातर तोरा ।।
अक्षय कुमार कु मारी सहारा।
 लूम लपेट लंक को जारा ।।
लाह समान लंक जरि गई ।
जय जय धुनि सुर पुर में भई ।।
अब विलंब केहि कारण स्वामी ।
कृपा करहु उर अंतर्यामी ।।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता।
 आतुर होई दुख करहु निपाता ।।
जय गिरधर जय जय सुख सागर।
 सुर समूह समरथ भट नागर।।
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले।
 बैरिहि मारू बज्र की कीले।।
 गदा बच्चे बज्र बैरिहि मारो।
 महाराज प्रभु दास उबारो।।
ॐ कार हुंकार प्रभु धावो।
बज्र गदा हनु विलंब न लावो।।
ॐ ह्मी ह्मी ह्मी  हनुमंत कपीसा।
ॐ हुं हुं हुं हनु अति उर शीशा।।
सत्य होहु हरि शपथ पाय के।
 रामदूत धरू मारू धाई के।।
 जय जय जय हनुमंत अगाधा।
 दुख पावत जन केहि अपराधा।।
 पूजा जप तप नेम अचारा।
 नहिं जानत हौं दास तुम्हारा।।
 वन उपवन मग गिरि गृह माहीं।
 तुम्हरे बल हम डरपत नाही ।।
पांव परौ कर जोरि मनाबो।
 यही अवसर अब केहि गौहरावौ।।
जय अंजनी कुमार बलवंता।
 शंकर सुवन वीर हनुमंता ््।।
बदन कराल काल कुल घालक।
 रामसहाय सदा प्रतिपालक ।।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर।
 अग्नि बेताल काल मारी मर।।
 इन्हें मारु तो ही शपथ राम की।
 राखु नाथ मर्याद नाम की ।।
जनक सुता हरिदास कहावो ।
ताकी शपथ विलंब न लावो।
 जय जय जय ध्वनि होत अकाशा।
 सुमिरत होत दुसह दुख नाशा।।
 चरण शरण कर जोरि मनाबो ।
यहि अवसर अब केहि गोहरावौ।।
उठु उठु चलु तोहि राम दुहाई।
 पायं परों कर जोरि मनाई ।।
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता ।
ॐ हनु हनु हनु हनुमंता।।
 ॐ हं हं हं देत कपि चंचल ।
ॐ सं सं सहमि पराने खलदल ।।
अपने जन को तुरत उबारो ।
सुमिरत होय आनंद हमारो ।।
यह बजरंग बाण जेहि मारे।
 ताहि कहौ फिर कौन उवारे।।
 पाठ करै बजरंग बाण की।
 हनुमत रक्षा करें प्राण की।।
 यह बजरंग बाण जो जापे।
 ता शो  भूत प्रेत सब कांपे।।
 पर धूप देय अरु जपै हमेशा।
 ताके तन नहीं रहे कलेशा।।
दौहा-प्रेम प्रतीतिहि कपि भजें सदा धरै उर ध्यान।
 तेहि के कारज सकल शुभ सिद्ध करैं हनुमान।।


बुधवार, 14 अप्रैल 2021

श्री हनुमानजी का सेवा व्रत

श्रीरामजी के सेवको में हनुमानजी अद्वतीय है तभी तो भगवान श्रीशंकर जी कहते हैं-
हनुमान सम नही नहि बड़भागी।
नहि कोउ राम चरन अनुरागी।।
गिरिजा जासु प्रीति सेवकाई।
बार बार प्रभु निज मुख गाई।।
(रा०च०मा० ७/५०/८-९)
यद्यपि बड़भागी तो अनेक है। मनुष्य शरीर प्राप्त करने वाला प्रत्येक प्राणी बड़भागी है क्योंकि-
बड़े भाग मानुष तन पावा।
सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा।।
परंतु मनुष्य शरीर प्राप्तकर सच्चे अर्थ में बड़भागी तो वही है जो श्री राम कथा का श्रवण करे-
जे सुनि सादर नर बड़भागी।
भव तरिहहिं ममता मद त्यागी।।
तथा श्री राम कथा का श्रवण करके जो श्री रामानुरागी हो जाते हैं वे मात्र बड़भागी ही नही, अपितु अति बड़भागी है, तभी तो वानर कहते हैं-
हम सब सेवक अति बड़भागी।
संतत सगुन ब्रम्ह अनुरागी।।
जो भक्ति मार्ग पर चलकर भगवान की ओर बढ़ते हैं वे अति बड़भागी है, किंतु भगवान कृपापूर्वक जिसके पास स्वयं चलकर पहुँच जाते हैं वे तो अतिसय बड़भागी है, तभी तो तुलसीदास जी माता अहिल्या के लिए लिखते हैं-
अतिसय बड़भागी चरनन्हि लागी।
परन्तु परहित के भाव से प्रभु की सेवा में देहोत्सर्ग कर देने वाले श्रीजटायुजी को भी श्रीरामचरितमानस की भावभरी भाषा मे परम् बड़भागी कहकर संबोधित किया गया है। यथा-
राम काज कारन तनु त्यागी।
हरि पुर गयउ परम् बड़भागी।।
भगवान शंकर जी कहते हैं कि भले ही कोई बड़भागी, अतिशय बड़भागी और परम् बड़भागी बना रहे किंतु-
हनुमान सम नहिं बड़भागी।
क्योकि-
गिरिजा जासु प्रीति सेवकाई।
बार  बार प्रभु निज मुख गाई।।
हनुमानजी श्रीरामजीके प्रति सेवाभाव से समर्पित हैं किंतु उन्हें सेवक होने का अभिमान नही है, क्योंकि उनका मन प्रभुप्रीति से भरा है। 'प्रीति सेवकाई' दोनोका उनमे मणिकंचनयोग दिखाई देता है। वे अपने को प्रभु के हाथों का बाण समझते हैं-
जिमि अमोघ रघुपति कर बाना।
एही भाँति चलेउ हनुमाना।।
किसीने बाण से पूछा कि तुम्हारे चरण तो है नही फिर भी तुम चलते हो अर्थात साधन के विना तुम्हारी गति कैसे होती है तो बाण ने उत्तर दिया कि मैं आपने चरण से नही वर्ण मै अपने स्वामी के हाथ से चलता हूँ। मैं तो साधन हीन हूँ मेरी गति तो भगवान के हाथ है। इस प्रकार हनुमानजी अपने को श्रीरामजी का बाण समझ कर सेवा करते हुए अपनी प्रत्येक सफलता में भगवान की कृपा का हाथ देखते है। इसलिये जब माता जानकी जी ने उलाहना देते हुए कहा- हनुमान! प्रभु तो अत्यंत कोमलचित हैं, किंतु मेरे प्रति उनके कठोरतापूर्ण व्यवहार का कारण क्या है? 
कोमलचित कृपाल रघुराई।
कपि केहि हेतु धरी निठुराई।।
इतना कहते-कहते माता मैथिली अत्यंत व्यथित हो गयी, उनके नेत्र निर्झर हो गये। कण्ठ अवरुद्ध हो गया। अत्यंत कठिनता से वे इतना ही कह पायी की आह ! प्रभु ने मुझे भी भुला दिया।
बचनु न आव नयन भर बारी।
अहह नाथ हौ निपट बिसारी।।
हनुमानजी ने निवेदन किया माँ ! प्रभु ने आपको भुलाया नही है तो जानकी माता ने पूछा कि इसका क्या प्रमाण है कि प्रभु ने मुझे भुलाया नही है, तब हनुमानजी ने प्रति प्रश्न करते हुए कहा माता! माता प्रभु ने आपको भुला दिया है इसका क्या प्रमाण है?  जानकी जी ने कहा चित्रकूट में इंद्र पुत्र जयंत ने कौआ बनकर जब मेरे चरण में चोच का प्रहार किया तो प्रभु ने उसके पीछे ऐसा बाण लगाया कि उसे कहि त्राण नही मिला, किंतु आज मेरा हरण करने वाला रावण त्रिकुट पर बसी लंका में आराम से रह रहा है, इसलिए लगता है-
अहह नाथ हौ निपट बिसारी।
तब हनुमानजी ने कहा - माता प्रभु ने जयंत के पीछे तो सींक रूप में बाण लगाया था-
चला रुधिर रघुनायक जाना।
सींक धनुष सायक संधाना।।
माता जी ! सोचिये लकड़ी की छोटी सी सींक, क्या बाण बनी होगी ! जानकी जी बोली पुत्र बात सींक की नही प्रभु के संकल्प की है।
प्रेरित मंत्र ब्रम्हसर धावा। चला भाजि बायस भय पावा।।
हनुमानजी ने फिर कहा - माता यदि जयंत के पीछे प्रभु ने सींक के रूप में बाण लगा दिया तो क्या यह सम्भव नही कि रावण के पीछे प्रभु ने वानर रूपी बाण लगा दिया हो। हे माता ! आप कृपापूर्वक देखिये तो आपके समक्ष हनुमान के रूप में श्रीरामजी का बाण ही उपस्थित है-
जिमि अमोघ रघुपति कर बाना।
एही भाँति चलेउ हनुमाना।।
माता ! प्रभु ने आपको भुलाया नही है आप चिंता न करे-
निसिचर निकर पतंग सम रघुपति बान कृसानु।
जननी हृदय धीर धरु जरे निसाचर 
जानु।।
अब यहाँ रघुपति बाण से 'जिमि अमोघ रघुपति कर बाना' तथा कृसानु से 'दनुजवनकृशानुं' का संकेत मिलता हैं।
श्री जानकी माता अति प्रसन्न होकर बोली - बेटा ! तुमने  मेरे मन का भ्रम मिटा दिया मैं समझ गई कि रामबाण के रूप में तुम मेरे समक्ष उपस्थित हो। हनुमानजी बोले त्राहि त्राहि माता आप ऐसा न बोले आपको तो पहले से ही ये विदित था कि श्रीरामबान के रूप में यहां हनुमान उपस्थित है। तभी तो आपने रावण को फटकारते हुए कहा था-
अस मन समुझु कहति जानकी।
खल सुधि नही रघुवीर बान की।।
उपयुक्त प्रसंग में इसी तथ्य की पुष्टि होती है कि हनुमानजी अपने को प्रभु का बाण अर्थात उनके हाथ का यंत्र समझते हैं। तभी तो लंकादहन-जैसा दुष्कर करके जब वे जानकी जी के यहां पहुँचे तो तुलसी जी ने लिखा-
पूँछ बुझाइ खोइ श्रम धरि लघु रूप बहोरि।
जनकसुताँ के आगे ठाढ भयउ कर जोरि।।
करबद्ध मुद्रा में अत्यंत विनम्र लघुरूपधारी अपने लाडले लाल हनुमान जी को देखकर जानकी माता बोली बेटा हनुमान !
लंका जला के जली भी नही हनुमान विचित्र है पूँछ तुम्हारी।
कौन सा जादू 'राजेश' भरा हँसि पुछति है मिथिलेश दुलारी।।
हनुमानजी ने उत्तर दिया-माँ !
बोले कपी हिंय राघव आगे हैं पीछे हैं पूँछ रहस्य हैं भारी।
बानर को भला पूछता कौन श्रीरामजी के पीछे है पूँछ हमारी।।
ऐसे परम् विनम्र श्रीराम-सेवाव्रती हनुमानजी के चरणों मे सत सत नमन।
जिनके लिए स्वंय भगवान शंकर कहते हैं-
हनुमान सम नहि बड़भागी।
नहि कोउ राम चरन अनुरागी।
गिरिजा जासु प्रीति सेवकाई।
बार बार प्रभु निज मुख गाई।।
(राजेश रामायणी)







भारत के प्रमुख पर्यटन स्थल Indian tourist spots Indian tourist spots

साथियों आज के अंक में हम भारत के प्रमुख पर्यटन स्थल के बारे में जानकारी देंगे जहां पर Indian tourist के अलावा all world से tourist भी काफी स...