देवता हो या दानव सभी ब्राम्हणों का सम्मान करते थे। मैं अपने विवेक अनुसार कुछ पक्तियो के द्वारा ब्राम्हणों की महिमा के बारे में बताना चाहूंगा-
ब्राम्हण पैर पताल छलो, और
ब्राम्हण ही साठ हजार को जारो
ब्राम्हण सोख समुद्र लियो और
ब्राह्मण ही यदुवंश उजारो,
ब्राम्हण लात हनि हरि के तन
ब्राम्हण ही क्षत्रिय दल मारो
ब्राम्हण से जिन बैर करे कोई
ब्राम्हण से परमेश्वर हारो।।
अर्थात- ब्राम्हण ने अपने पैर से तीनों लोक नाप कर राजा बलि से मुक्त किया था, राजा बलि ने तीनों लोकों को अपने अधीन कर लिया था तब बामन भगवान ने बलि से तीन पग धरती दान में मांग ली थी और और दो पग में ही पृथ्वी और आकाश को नाप दिया था तथा तीसरा पग बलि के सिर पर रखकर उसका उद्धार किया था। अगस्त जी ने सारा समुद्र सोख लिया था। कपिल मुनि ने सगर जी के साठ हजार पुत्रो को श्राप देकर भस्म कर दिया था। तो परसुराम जी ने पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया था, दुर्वासा ऋषि ने यदुवंशीयो को श्राप देकर यदुवंश को नष्ट कर दिया था, तो वही भृगु ऋषि ने भगवान विष्णु के वक्ष स्थल पर अपने पैर से प्रहार कर दिया, इसलिय ब्राह्मणों से कभी विरोध नही करना चाहिए, ब्राम्हण को भूदेव भी कहा जाता है, ब्राम्हणों ने सनातन धर्म को एक सूत्र में बांधने का कार्य हमेशा से ही किया है, इसलिये ब्राह्मणों के हितार्थ भगवान भी पृथ्वी पर अवतार लेते रहे हैं।
वेद पुराणों और शास्त्रों ने भी ब्राह्मण की महिमा गायी है। रामचरित मानस में भी भगवान ने तुलसीदास जी के मुख से कहलवाया है, विप्र धेनु सुर संत हित लीन मनुज अवतार, निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गोपार।
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