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शुक्रवार, 29 जुलाई 2022

काल रूपी तलवार सब के ऊपर लटक रही है

एक बार राजा जनक जी से एक ब्राह्मण ने प्रश्न किया कि महाराज आप राजा होकर भी माया से दूर कैसे रहते हैं, राजा जनक जी ने उस ब्राह्मण को समझा कर कहा कि हे ब्राह्मण ! मैं आपके लिए समय आने पर इसका उत्तर दूंगा। कुछ दिन के बाद राजा जनक ने उस ब्राह्मण के लिए अपने महल में भोजन के लिए आमंत्रित किया। तरह तरह के पकवान बनाए गए बहुत ही स्वादिष्ट एवं ब्राह्मण को एक कक्ष में बैठा दिया गया सारी सुविधाएं ब्राह्मण के लिए दी गई और बहुत सी महिलाएं उनके लिए  हवा कर रही थी। और ब्राह्मण के सामने भोजन रखे हुए थे पर राजा जनक ने क्या किया की जहां पर ब्राह्मण बैठे हुए थे उसके ऊपर एक पतली रस्सी से एक धारदार तलवार बांध दी। जैसे ही ब्राह्मण का ध्यान उन पर बंधी हुई तलवार पर गया तो वह तलवार बहुत ही कमजोर रस्सी से बंधी हुई थी तो ब्राह्मण का सारा ध्यान भोजन से छूट गया ब्राह्मण खाना तो खा रहे थे पर देख रहे थे उस  तलवार के लिए कि कहीं यह तलवार टूट कर गिर ना जाए ऊपर, सारा समय ब्राह्मण उस तलवार को ही देखते रहे जैसे तैसे भोजन समाप्त कर राजा जनक के पास पहुंचे, राजा ने ब्राह्मण से पूछा कि हे ब्राह्मण भोजन कैसे थे खीर कैसी बनी थी मिठाईयां कैसी थी सुख सुविधाएं कैसी थी कैसा लगा आपको आप प्रसन्न  तो है न । ब्राह्मण बोला अरे महाराज सारा समय उस तलवार को देखने में ही निकल गया मुझे तो पता ही नहीं चला कि भोजन कैसे हैं कैसा इनका स्वाद है क्या है बस मै सारा समय यही देखता रहा कि कहीं यह तलवार टूट के ऊपर न गिर जाए नहीं तो मेरी मृत्यु निश्चित है। राजा जनक ने मुस्कुरा कर जवाब दिया कि हे ब्राह्मण ! यही आपके प्रश्न का उत्तर है उस दिन आपने मुझसे जो प्रश्न किया था कि महाराज आप इतनी सारी सुख सुविधाएं होते हुए भी ऋषियों जैसा जीवन कैसे व्यतीत करते हैं। हे ब्राह्मण श्रेष्ठ मै प्रति पल उस काल रुपी तलवार को अपनी गर्दन पर लटकते हुए देखता हूं। इसलिए मुझे माया में आसक्ति नहीं होती है।

शुक्रवार, 13 अगस्त 2021

दानवीर

               ।। दानवीर कर्ण ।।

महाभारत के प्रमुख पात्रो में से एक थे दानवीर कर्ण, कर्ण महारानी कुंती के ज्येष्ठ पुत्र थे, महारानी कुंती को स्वेच्छा से पुत्र प्राप्त करने का वरदान प्राप्त था, जिसका परीक्षण करने के लिए कुंती ने विवाह से पूर्व ही सुर्य देव से पुत्र प्राप्ति का आवाहन किया था और परिणम स्वरूप सूर्यदेव ने उन्हें एक तेजस्वी पुत्र प्रदान किया किन्तु लोकनिंदा के भय के कारण उन्होंने उसे टोकरी में रखकर नदी में प्रवाहित कर दिया जिसे एक सूद्र दम्पति ने पाला पोसा, कर्ण ने भगवान परसुराम जी से विद्या प्राप्त की, उन्हें जन्म के साथ ही सूर्यदेव ने कुण्डल और कवच प्रदान किया था और वरदान दिया था कि जब तक इस बालक के शरीर पर यह कुण्डल और कवच रहेंगे इसे कोई युद्ध में परास्त नही कर सकेगा, इस बात से देवराज इंद्र काफी चिंतित थे चुकि कुंती के पांच पुत्र अपने अधिकार और धर्म की रक्षा के लिए कौरवों से युद्ध लड़ने वाले थे और कर्ण कौरवो की ओर से युद्ध लड़ने बाले थे, अतः कर्ण को हराये विना विजय प्राप्त नही की जा सकती थी। और कर्ण ने अर्जुन का वध करने का प्रण ले रखा था, अर्जुन कुंती को देवराज इंद्र के द्वारा प्रदान किये गए थे। कर्ण की एक विशेषता थी कि सुबह पूजन के उपरांत कोई भी याचक उनके यहाँ से कभी खाली हाथ नही लौटता था। इसलिए उन्हें दानवीर कहां जाता था। उनकी इसी विशेषता का लाभ उठाकर देवराज इंद्र ने उनसे कुण्डल और कवच दान में मांग लिए जिसे उन्होंने यहाँ जानते हुए भी की कुण्डल और कवच के बिना उनकी मृत्यु निश्चित है फिर भी सहर्ष दान कर दिए, जिससे प्रशन्न होकर देवराज ने उनसे वरदान मांगने के लिए कहा लेकिन उन्होंने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि आज आप मेरे यहाँ याचक बनकर आये हैं, और दान देकर कुछ माँगना तो व्यापार हुआ। फिर भी देवराज इंद्र ने उन्हें एक दिव्यास्त्र प्रदान किया। यही नही माता कुंती को अर्जुन को छोड़कर शेष चार पुत्रो को न मारने का वचन भी दिया था।
            
                 ।। ऋषि दधीचि ।।

अथर्वा ऋषि के पुत्र महाऋषि दधीचि का स्थान दानियों में कौन भूल सकता है जिन्होंने संसार के हितार्थ अपनी अस्थियो को दान कर दिया था। देवासुर संग्राम में जब देवराज इंद्र का वज्र नष्ट हो गया, और असुर देवताओं पर भारी पढ़ने लगे, तब देवताओं ने ब्रम्हा जी की शरण मे जाकर सहायता मांगी,और असुर किस प्रकार पराजित होंगे यहाँ जानने की इच्छा प्रगट की तब ब्रम्हा जी ने बताया कि महाऋषि दधीचि अगर अपनी अस्तिया दान कर दे तो उनका वज्र बनाकर असुरो को परास्त किया जा सकता है। देवराज इंद्र बिना विलम्ब किये महाऋषि दधीचि के पास पहुँच गए और उन्हें सारा वृतांत सुनाया। महाऋषि ने अपने शरीर को भस्म करके सँसार के हितार्थ अपनी अस्थियों का दान कर दिया।

             ।। राजा दिलीप ।।

ब्रम्हरिषि वाल्मीकि द्वारा रचित महाकाव्य
के अनुसार राजा दिलीप के कोई संतान नही थी इससे दुखी होकर वह गुरु वशिष्ठ जी के पास संतान प्राप्ति का उपाय जानने के पहुचे तब वशिष्ठ जी ने कहा राजन आपसे गौ ब्राम्हण का अनजाने में ही अपमान हुआ है इस कारण आप के कोई संतान नही है, अगर आप मेरी गाय जो कि कामधेनु की पुत्री है जिसका नाम है नन्दनी की सेवा करो और ये प्रसन्न हो जाये तो आपको संतान प्राप्त हो सकती है। राजा नंदनी की सेवा में लग गए। एक दिन जंगल मे उसे एक सिंह ने दबोच लिया राजा अस्त्र शस्त्र चलने में असमर्थ हो गए। तब उन्होंने सिंह से प्रार्थना की की आप मेरी नन्दनी को छोड़ दीजिए पर सिंह नही माना तब उन्होंने सिंह से कहा अगर आप चाहे तो मुझे खा ले किन्तु मेरी गौ माता को मुक्त कर दे जिसपर सिंह तैयार हो गया राजा ने अपने आपको सिंह को समर्पित कर दिया और गाय को मुक्त कर दिया, जैसे ही राजा सिंह के पास गए सिंह अंतर्ध्यान हो गया। तब नन्दनी बोली राजन यह सब मेरी माया थी मैं आपकी सेवा और समर्पण से अति प्रसन्न हूँ और आपको एक प्रतापी पुत्र प्राप्ति का वरदान देती हूँ। और यही प्रतापी पुत्र राजा रघु के नाम से प्रसिद्ध हुए जिनके नाम से राजा दिलीप के वंश का नाम रघुवंश हुआ।
राजा हरिश्चंद्र
मोरध्वज
आदि ने भी अपने द्वारा दिये गए दान से प्रसिद्धि प्राप्त की।

गुरुवार, 12 अगस्त 2021

गुरु भक्त

           ।। गुरु भक्त एकलव्य ।।

महाभारत में एक पत्र थे एकलव्य जिनकी गुरु भक्ति प्रसिद्ध है, जब गुरु द्रोणाचार्य जी ने यह कहकर एकलव्य को शिक्षा देने से मना कर दिया था, की वह केवल क्षत्रिय राजकुमारों को ही शिक्षा प्रदान करते हैं।
तब एकलव्य ने मन ही मन गुरु द्रोणाचार्य को गुरु मानकर उनकी प्रतिमा बना कर विद्याअध्यन आरम्भ कर दिया और एक सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बन गए, लेकिन जब गुरु द्रोणाचार्य ने गुरुदीक्षा में दाये हाथ का अंगूठा मांग लिया तो यह जानते हुए भी की अंगूठे के बिना उनकी विद्या का कोई मोल नही रह जायेगा फिर भी उन्होंने अपने दाये हाथ का अंगूठा गुरुदीक्षा में देकर गुरुभक्ति का एक अनूठा उदहारण प्रस्तुत किया था।

   ।। स्वामी विवेकानंद जी की गुरुभक्ति ।।

स्वमी विवेकानंद जी के गुरु रामकृष्ण परमहंस जी का विवेकानंद जी पर विशेष स्नेह था। वह कैंसर से पीड़ित थे, उनके बाकी के शिष्य उनसे दूरी बनाने लगे, उनके गले से पस आदि निकलते तो कोई भी शिष्य उसे साफ नही करता, नाही कोई उनके पास जाता यह देखकर विवेकानंद जी को काफी पीड़ा हुई और उन्होंने, गुरु रामकृष्ण परमहंस जी के गले से निकली पस को उठा कर पी लिया था, ऐसी थी स्वमी विवेकानंद जी की गुरु के प्रति श्रद्धा।

।। वीर शिवाजी महाराज की गुरुभक्ति।।

वीर शिवाजी महाराज के गुरु थे समर्थ रामदास जी, वे शिवजी महाराज की वीरता और प्रतिभा तथा गुरुभक्ति को पहचानते थे तथा उनके इन्ही सद्गुणों के कारण वह बालक शिवा पर विशेष स्नेह रखते थे, उनकी यह बात बाकी शिष्यों को अच्छी नही लगती थी, एक दिन उन्होंने गुरुदेव से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बोला कि समय आने पर बताऊगा, एक दिन गुरु रामदास जी के पेट मे दर्द हुआ, सभी शिष्यों ने उपचार के लिए चलने को कहा तो गुरु बोले इसका एक ही उपचार है अगर कोई मुझे शेरनी का दूध लकार दे तो उसका सेवन करते ही मेरा दर्द ठीक हो जाएगा परंतु कोई भी शिष्य तैयार नही हुआ, परन्तु जैसे ही शिवजी महाराज को पता चला वह दौड़े दौड़े गुरु के पास आये, उनसे सब हाल जाना और तुरंत ही निकल पड़े जंगल की ओर और शेरनी का दूध लाकर गुरुदेव को दिया, सभी आश्चर्य से वीर शिवाजी की ओर देख रहे थे, गुरुदेव समर्थ रामदास जी ने वाकी शिष्यों से कहा शायद तुम्हे तुम्हारे प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा।

बुधवार, 28 जुलाई 2021

पैसे की महिमा ( पैसे बिना )

पैसे बिना माई कहे, कैसो जो कपूत भयों,
पैसे बिना पत्नी कहे निकम्मे से पाला पड़ा,
पैसे बिना सास कहे कैसो जो जमाई है,
पैसे बिना भाई कहे बंधु दुख दीन है,
पैसे बिना न ही बंधु, पैसे बिना न ही यार,
पैसे बिना देव नही करते सहाई है,
सुनो कहे सारांश भाई पैसा रखो अपने पास पैसे बिना मुर्दे ने लकड़ी नही पाई है।

रविवार, 18 जुलाई 2021

कुण्डलिया (गिरधर )

बिना विचारे जो करे, सो पाछै पछिताय,
काम बिगाड़े आपनो, जग में होत हसाय,
जग में होत हसाय, चित्त में चैन न पावै,
खान पान सम्मान, राग रंग मन ही न भावै,
कह गिरिधर कविराय, दुख कछु टरत न टारे,
खतकत है जिय में कियो जो बिना विचारे।।
                          (2)
पानी बाड़े नाव में, घर मे बाड़े दाम,
दोनों हाथ उलीचिये, यही सियानो काम,
यही सियानो काम, राम को सुमिरन कीजै,
परस्वरथ के काज, शीश आगे धर दीजै।।
                         (3)
साईं ये न विरोधिये, गुरु पंडित कवि यार,
बेटा वनिता पोरियो, यज्ञ करावन हार,
यज्ञ करावन हार, राज मंत्री जो होई,
विप्र पड़ोसी वैध, आपकी तपै रसोई,
कह गिरिधर कविराय, युगनते ये चली आई,
इन तेरह सो तरे दिन, आबे साँई ।।

बुधवार, 2 जून 2021

बिना चालक की बस

एक छोटा सा बालक था वह ईश्वर में श्रद्धा रखता था, उसके पिता एक पड़े लिखे व्यक्ति थे, परंतु वह ईश्वर में विश्वास नही रखते थे, बालक कभी कोई सवाल करता तो वह उसे वैज्ञानिक तरीके से समझा देते थे। एक दिन बालक ने पूछा पिता जी इस संसार को कौन चलता है, ये बारिश, गर्मी, सर्दी, अपने समय पर ही क्यों आते हैं, सूर्य चंद्रमा समय से क्यो निकलते हैं कौन है जो इन्हें मैनेज करता है? पिता ने बताया बेटा इसे कोई मैनेज नही करता ये सब अपने आप होता है, दुनिया को कोई नही चलता ये अपने आप चलती है। अगले दिन बालक स्कूल गया वहाँ से थोड़ा लेट हो गया, घर पर पिता परेशान हो गए। थोड़ी देर बाद बालक बालक घर पहुच गया, पिता ने डाँटते हुए पूछा आज स्कूल से लेट कैसे हो गए, बालक मुस्कुराते हुए बोला पिता जी आज स्कूल से बिना ड्राइवर की बस में आया हूँ अब बस को कोई मैनेज तो कर नही रहा था तो वह कहीं भी रुक जाती बड़ी मुश्किल से घर पहुँच पाया हूं। बालक की बात सुनकर पिता को गुस्सा आया और वह बोला बेटा ऐसा भी होता है क्या की बगैर किसी के चलाये बस चलती हो, बालक बोला पिता जी जब इतनी बड़ी दुनिया बगैर किसी के चलाये चल सकती है तो क्या एक छोटी सी बस बगैर ड्राइवर के नही चल सकती। पिता हैरत भरी नजरों से बेटे की तरफ देखने लगा, छोटे से बच्चे ने पिता की आँखे खोल दी।

शनिवार, 8 मई 2021

अपनी ताकत का कभी घमंड न करे

एक गाँव मे एक पहलवान रहता था। पूरे गाँव मे कोई भी कुश्ती में उसका मुकाबला नहीं कर सकता था। इस बात का उस पहलवान को बढ़ा ही अभिमान था। वह रोज अपनी पत्नी को परेशान करता पत्नी कुछ बोले तो बोलता देख गाँव मे कोई है मेरे मुकाबले सारे पहलवानों को मैने धूल चटा दी है। रोज रोज की नोक झोंक से परेशान होकर एक दिन पत्नी बोली संसार मे एक से एक शक्तिशाली व्यक्ति है अगर हमारे गॉव में कोई आपका मुकाबला नहीं कर सकता तो आसपास के गाँव मे कोई तो होगा जो आपका मुकाबला कर सके उसकी तलाश कीजिये। अगले दिन पहलवान दूसरे गाँव मे ऐसे पहलवान की तलाश में निकल गया जो कुश्ती में उसका मुकाबला कर सके। चलते चलते जैसे ही दूसरे गाँव की सीमा में पहुँचा तो उसने दूर से देखा कि एक बड़ा सा व्यक्ति सर पर पगड़ी बाधे हल चला रहा है औऱ उसके हल में बैलो की जगह दो शेर जुते हुए है। औऱ उसकी पत्नी टोकरी में रोटी औऱ मटके में पानी लेकर उसके लिए भोजन लेकर आ गयी। तभी उसकी नजर दूर खड़े उस पहलवान पर पड़ी औऱ उसने उसे अपने पास बुलाकर कहा इधर आ जब तक मैं भोजन कर रहा हूँ तब तक तू इन शेरो को पानी पिला कर ले आ। इतना सुनते ही उसके हाथ पैर फूल गए। उसने सोचा कि अगर शेरो के पास गया तो शेर मुझे खा जायेगे औऱ अगर नही गया तो जो व्यक्ति शेरो को हल में जोत सकता है वह मेरा क्या हाल करेगा इतना सोचकर उसने घर की तरफ दौड लगा दी। जब हल चलाने वाले ने उसे भागता हुआ देखा तो उसे बहुत गुस्सा आया कि इसकी इतनी हिम्मत की मेरी बात नही मानी उसने गुस्से में खाना छोड़कर उसके पीछे दौड़ लगा दी। पहलवान दौड़ते हुए अपने घर पहुँचा उसको डरा हुआ देखकर पत्नी ने पूछा क्या हुआ आप इतने डरे हुए औऱ दौड़ते हुए क्यो आ रहे हो। पति ने सारी बात बताई औऱ बोला मुझे बचा ले नही तो आज मेरी मौत निश्चित है। पत्नी बोली चुपचाप मेरी गोद मे सो जाओ औऱ कुछ बोलना मत मैं देखती हूँ उसे आने दो। पति ने वैसा ही किया जैसा पत्नी ने बोला थोड़ी देर बाद हल जोतने वाला व्यक्ति उसे ढूढते हुए वही पहुँच गया औऱ उसकी पत्नी से बोला इधर एक आदमी आया है क्या? पत्नी धीरे से मुंह पर उंगली रखकर बोली चुप अभी मेरा बेटा सो रहा है अगर जाग गया तो रोयेगा औऱ उसका रोना सुनकर मेरे पति आ जायेंगे क्योकि वह अपने बेटे को रोते हुए नही देख सकते। जब उसने उस औरत की गोद मे एक हट्टे कट्टे व्यक्ति को सोते हुए देखा जिसका चेहरा उसके आँचल से ढका हुआ है। उसने सोचा जिसका बेटा ऐसा है तो पिता कैसा होगा। यह सोचकर उसने अपने गाँव की ओर दौड़ लगा दी। उसके जाने के बाद पहलवान ने अपनी गलती के लिए पत्नी से क्षमा माँगी। औऱ प्राण बचाने के लिए धन्यवाद किया।

शुक्रवार, 7 मई 2021

ईश्वर का मंगलमय विधान

एक राज्य में एक मंत्री थे वे हर घटना में ईश्वर की मंगलमय इच्छा देखते थे। एक दिन राजा आपने अस्त्र शस्त्र  का निरीक्षण कर रहे थे। एक तलवार की धार पर उंगली फेर कर धार का निरीक्षण कर रहे थे। धार तेज होने के कारण राजा की उंगली का एक पोर कट गया खून की धार निकल पड़ी जब मंत्री ने देखा तो उनके मुख से अचानक निकल गया चलो ये भी ठीक हुआ मंत्री की बात सुनकर राजा को बड़ा क्रोध आया औऱ उन्होंने मंत्री को कारागार में डाल दिया। जैसे ही मंत्री को कारागार में डाला गया मंत्री ने फिर से कहा चलो ये भी अच्छा हुआ। कुछ दिन के बाद राजा जंगल मे आखेट के लिए गए और रास्ता भटक गए और भीलो के देश मे पहुँच गए। जहाँ कबीले के सरदार ने कोई आयोजन रखा था जिसमे मनुष्य की बलि की आवश्यकता थी और भील किसी मनुष्य की तलाश कर रहे थे तभी उनकी नजर राजा पर पड़ी और वह राजा को बांधकर सरदार के पास ले गए पूजन के बाद वलि की तैयारी शुरू की गई। सरदार ने आदेश दिया कि पहले इसका निरीक्षण करो इसका कोई अंग भंग तो नही क्योकि जब टूटे हुए चावल भगवान को नही चढ़ते तो खंडित मनुष्य की वलि कैसे चढ़ाई जा सकती है। राजा के शरीर का निरीक्षण करने पर राजा की कटी हुई उंगली देखकर भीलो ने राजा को छोड़ दिया। जैसे ही राजा को छोड़ा गया राजा को मंत्री की बात याद आ गयी और वह सीधे मंत्री के पास जा पहुँचे। मंत्री को कारागार से बाहर लाया गया राजा ने मंत्री से पूछा आपने मेरी उंगली कटने पर ये क्यो कहा था कि चलो ये भी ठीक हुआ यह तो मुझे समझ मे आ गया लेकिन जब मैंने आपको कारागार में डाला तब आपने ये क्यो कहा कि चलो ये भी ठीक हुआ? राजा की बात सुनकर मंत्री बोला महाराज पहले तो मैने इसलिए बोला था कि चलो ये भी ठीक हुआ क्योंकि अगर उस दिन आपकी उंगली नही कटती तो आज आपका सिर कट जाता। और दूसरी बार इसलिए बोला था कि मैं आपका सबसे विश्वसनीय मंत्री हूँ और हर समय आपके साथ रहता हूँ। अगर उस दिन आपने मुझे कारागार में नही डाला होता तो आज आप तो उंगली कटी होने के कारण बच गए परंतु मैं नही बचता। मेरी तो आज वलि चढ़ जाती । इसलिए ईश्वर जो भी करता है उसमें कही न कही हमारा हित छुपा रहता है। हमारी शोच जहाँ पर समाप्त होती है वहां से उसकी सोच प्रारम्भ होती है। हम अपने एक मष्तिष्क से सोचते हैं उसके तो अनंत मष्तिष्क है। उसका निर्णय हमे प्रारंभ में कष्टकारी जरूर लगता है किंतु उसमे कहि न कही हमारा हित छुपा रहता है। कोई भी पिता अपने बच्चो के साथ अन्याय नही कर सकता फिर वह तो परम पिता है। ये सारा संसार उसी का है। औऱ हम सब उसके बच्चे। और अगर कोई छोटा बच्चा अपने पिता से मिर्च दिलाने की जिद करने लगे तो क्या पिता उसे मिर्ची दे सकता है। औऱ अगर किसी बच्चे को फोड़ा हो जाता है तो माता पिता हिर्दय पर पत्थर रखकर उसको चीरा लगवा देते हैं ताकि बच्चे को कष्ट से मुक्ति मिल जाये।

गुरुवार, 6 मई 2021

सारा संसार किसका है?

किसी गाँव मे एक एक महात्मा रहते थे। वे बड़े ही शांत, धीर, और हर एक घटना में परमात्मा की इच्छा को देखते थे। उनके चर्चे बहुत दूर दूर तक फैले हुए थे। एक दिन एक व्यक्ति महात्मा के पास आया और बोला हे महात्मा ! मैं आपका शिष्य बनना चाहता हूँ कृपया मुझे अपनी शरण मे ले महात्मा बोले- ठीक है आज से तू मेरा शिष्य बन गया। व्यक्ति बोला- परन्तु महात्मा जी मैं चोरी करता हूँ, महात्मा बोले- कोई बात नही। व्यकि बोला - महात्मा जी मैं मास, मदिरा का सेवन करता हूँ। महात्मा बोले- कोई बात नही। व्यकि बोला - महात्मा जी मैं व्यभिचारी हूँ, लूटपाट करता हूँ, यहाँ तक कि धन के लिए लोगो की हत्या तक कर देता हूँ। महात्मा बोले- ठीक है कोई बात नही।
महात्मा की बात सुनकर वह व्यक्ति महात्मा के चरणों मे गिर गया और बोला- महात्मा जी मैंने आपको अपनी सारी बुराई बताई इसके बाद भी आप मुझे अपना शिष्य स्वीकार कर रहे हैं ऐसा क्यों? 
महात्मा बोले - ये पृथ्वी किसकी है?
व्यक्ति बोला -भगवान की
महात्मा बोले- ये वायु, जल ,अकाश, सुर्य, चंद्रमा, अन्न सब किसके हैं?
व्यकि बोला- सब भगवान के है।
महात्मा बोले- जब सब कुछ उस परमपिता का है और उसको तुमसे कोई परेशानी नही तो मैं उसके निर्णय के विरुद्ध जाकर क्यो उसके निर्णय पर उंगली उठाऊ।
अगर उसको तुमसे परेशानी होती तो वह क्षण भर में तेरी सांसे रोक देता। मैं कौन होता हूँ उसके निर्णय के विरुद्ध जाने वाला।
वह व्यक्ति महात्मा के चरणों मे पड़ गिड़गिड़ाने लगा।
और एक अच्छा शिष्य औऱ नगरिक बन गया।

गुरुवार, 8 अप्रैल 2021

मनन करने योग्य विचार-- भाग- १

राजा विक्रमादित्य न्याय प्रिय राजा थे। उनकी न्यायशीलता इतनी प्रसिद्ध थी कि देवता भी उनका आदर करते थे। एक समय की बात है। राजा विक्रमादित्य नगर भ्रमण के लिए निकले थे नगर से थोड़ी दूर वह एक बगीचे से गुजर रहे थे कि तभी उन्हें एक पत्थर आकर सिर पर लगा। पत्थर सिर पर लगते ही सिर से खून बहने लगा। यह देखकर सेनापति ने सैनिकों को जिस दिशा से पत्थर आया था उस दिशा में खोजने के लिए भेजा और कहा कि जो भी हो उसे पकड़ कर लाओ। सैनिक उसी दिशा में आगे चले गए आगे जाकर उन्होंने देखा कि एक बालक जमीन पर लेटा हुआ है और एक औरत पेड़ पर पत्थर मार रही है। सेनिको ने दोनों को पकड़ कर सेनापति के समक्ष प्रस्तुत किया। जब विक्रमादित्य ने देखा कि सैनिक एक महिला और बालक को पकड़ कर ले आये हैं। तो वह उनके पास गए और बोले आपने मुझे पत्थर क्यो मारा? महिला बोली महाराज मैंने आपको पत्थर नही मारा। मैं तो पेड़ से फल तोड़ रही थी गलती से पत्थर आपको लग गया। इसके लिए मुझे क्षमा करें। महाराज ने फिर कहा आप फल किस लिए तोड़ रही थी? इस पर महिला रोने लगी और बोली महाराज मेरे पति की कुछ समय पहले ही मृत्यू हो गयी मेरे यहाँ कोई कमाने बाला नही छोटा सा बच्चा है मेरा दो दिन से इसे भोजन नही मिला है। मैने सोचा पेड़ से फल तोड़कर इसे खिला दु नही तो भोजन के आभाव मे ये मर जायेगा। इसलिए में फल तोड़ रही थी। इतनी बात सुनकर सेनापति बोला महाराज इसे क्या दंड दिया जाए। राजा विक्रमादित्य बोले इसे १०० स्वर्ण मुद्राएं दे दी जाए। मुद्राएं लेकर वह महिला अपने बच्चे को लेकर चली गई। महिला के जाने के बाद सेनापति बोला महाराज उस महिला ने आपको पत्थर मारा और आपने उसे दंड की जगह स्वर्ण मुद्राएं दे दी ऐसा क्यों? विक्रमादित्य ने सुंदर जवाब दिया जब एक पेड़ पत्थर खाकर फल दे सकता है तो मैं तो एक मनुष्य हूँ। 

बुधवार, 7 अप्रैल 2021

कर्म का फल निश्चित है

मध्यप्रदेश के एक गाँव मे एक व्यक्ति अपने परिवार के साथ रहता था। परिवार में दो बेटे दो बेटियां और पति पत्नी रहते थे। 20 एकड़ जमीन पर किसानी करके वह अपना परिवार चलता था। मुख्य सड़क पर उसका एक प्लाट था। और एक मकान था। इसके पास एक बंदूक भी थी। परिवार हँसी खुशी से रहता था। पर उस व्यक्ति में एक बुराई थी वह निरीह प्राणियों को मारकर रोज आपने घर उनका मास पका कर खाता था। उसके कंधे पर बंदूक हमेशा टगी रहती। धीरे धीरे बच्चे बड़े हो गए बड़े बेटे और बेटी की शादी हो गयी। पर पिता की बंदूक कंधे से नही उतरी वह निरन्त शिकार करता रहा। बड़ा बेटा पास ही के एक गाँव मे एक बड़े किसान के यहाँ ट्रेक्टर चलने का काम करने लगा। अभी चार दिन ही बीते थे काम करते हुए की एक दिन ट्रेक्टर पलट गया और उसकी मृत्यु हो गयी। अभी उसकी शादी को एक वर्ष भी नही हुआ था। दुर्घटना बीमा के पैसे लेकर पिता ने छोटे बेटे के साथ बड़ी बहू की शादी कर दी। छोटा बेटा गाँव का नामी चोर शराबी बन गया। एक दिन अपने पिता से गाड़ी दिलाने की जिद करने लगा पिता के लाख मना करने पर भी वह जिद पर अड़ा रहा। औऱ एक दिन अपनी बहिन की गाड़ी उठा लाया बहिन को पैसों की जरूरत थी तो वह बोला आप गाड़ी मुजे दे दो में पिता जी से पैसे दिलवा दूँगा। बहिन ने ये सोच कर गाड़ी दे दी कि अगर पैसे नही दिए तो पिता जी से बात करके गाड़ी किसी और को बेच देगे। छोटा बेटा गाड़ी लेकर घर आ गया एक दिन सुबह सुबह गाड़ी लेकर घर से निकला ही था कि थोड़ी दूर जाकर गाड़ी एक टेंकर से इतनी जोर से टकराई की उसकी घटना स्थल पर ही मौत हो गयी। टेंकर पकड़ा गया। फिर से दुर्घटना बीमा के पैसे के पैसे मिल गए। अभी इस हादसे को कुछ ही समय बीता था कि एक दिन पिता गायो को लेकर पानी पिलाने जा रहा था अचानक गाय ने दौड़ लगाई पिता भी उसके पीछे पीछे भागा तभी सामने से एक कार आ रही थी वह बायीं तरफ से दाई तरफ भागा और जाकर कार की बायीं तरफ ऐसा टकराया की उसके दोनों हाथ के पंजे सीधे के सीधे रह गए कुछ अंदरूनी चोटे भी आई। कार पकड़ी गई कार के मालिक ने एक वर्ष तक इलाज करवाया लेकिन उसकी जान नही बची। फिर से दुर्घटना बीमा के पैसे मिले। अब परिवार में सास बहू और छोटे बेटे की एक लड़की और एक लड़का रह गए। एक दिन सास अपने बीमार नाती को लेकर शहर के अस्पताल से लौट रही थी कि रास्ते मे जीप पलट गई और दोनों की घटना स्थल पर ही मौत हो गयी। चुकी सवारी ढोने वाली गाड़ी थी तो फिर दोनों की मृत्यु के बाद बहु को फिर दुर्घटना बीमा मिला। अब परिवार में सिर्फ बहु और बेटी शेष रह गए। बाकी पूरा परिवार उजड़ गया।
परिवार में सभी मासाहारी थे। 




रविवार, 26 अप्रैल 2020

संकल्प शक्ति

संकल्प शक्ति एक बार भगवान गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ विचरण कर रहे थे तभी उन्हें एक चट्टान दिखी चट्टान को देखकर एक शिष्य बोला गुरुदेव वो देखिये सामने एक चट्टान है क्या चट्टान से बड़ा कोई होता है बुद्ध मुस्कुराते हुए बोले हाँ वत्स लोहा, लोहा चट्टान को तोड़ सकता है शिष्य बोला तो गुरुदेव लोहे से बड़ा कौन होता है बुद्ध बोले आग, आग लोहे को पिघला सकती है तो फिर आग से बड़ा कौन होता है शिष्य बोला गुरुदेव बोले पानी, पानी आग को बुझा सकता है शिष्य फिर से बोला तो पानी से बड़ा कोंन है गुरुदेव बुद्ध मुस्कुराते हुए बोले वैसे तो संसार मे एक से बढ़कर एक शक्तिशाली है परन्तु इंसान की संकल्प शक्ति से बड़ा कुछ भी नही इंसान अगर निश्चय करले तो कुछ भी कर सकता है। 

रविवार, 9 अप्रैल 2017

avsar ka mhatv

Ek baar ek chitrakar ne apne chitro ki pradarsani lgai usme bhut se chitro ko sjaya gya. Log door door se use dekhane ke liye aaye. Bhut saare chitro ke beecha mai ek esa chitra tha jisme ek vyakti safed kapdo mai hai jiska chehra baalo se dhaka hua hai or use pankh lge huye hai. Us chitra ko dekhkar ek ladki ne us chitrakar se pucha ki aapne ye kiska chitra bnaya hai or iska chehra baalo se kyo dhaka hai or ise pankh kyo lge hai. Us ladki ki bat sunkar chitrakar bola ki ye samya ka chitra hai or iska chehra balo se isliye dhaka hai kyoki ye aata hai or hum ise phchan nhi pate or pankh isliye lge hai ki ye uda jata hai. Isiliye tulsi daas ji ne kaha hai ki avsar kodi jo chuke bahuri diye kya lakh.arthat avsar to har kisi ke jivan mai aata hai par aabasayakta hai use pahchanne ki or us ka laabh uthane ki.angreji mai bhi kaha gya hai time is mony 
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भारत के प्रमुख पर्यटन स्थल Indian tourist spots Indian tourist spots

साथियों आज के अंक में हम भारत के प्रमुख पर्यटन स्थल के बारे में जानकारी देंगे जहां पर Indian tourist के अलावा all world से tourist भी काफी स...