गुरुवार, 8 अप्रैल 2021

मनन करने योग्य विचार-- भाग- १

राजा विक्रमादित्य न्याय प्रिय राजा थे। उनकी न्यायशीलता इतनी प्रसिद्ध थी कि देवता भी उनका आदर करते थे। एक समय की बात है। राजा विक्रमादित्य नगर भ्रमण के लिए निकले थे नगर से थोड़ी दूर वह एक बगीचे से गुजर रहे थे कि तभी उन्हें एक पत्थर आकर सिर पर लगा। पत्थर सिर पर लगते ही सिर से खून बहने लगा। यह देखकर सेनापति ने सैनिकों को जिस दिशा से पत्थर आया था उस दिशा में खोजने के लिए भेजा और कहा कि जो भी हो उसे पकड़ कर लाओ। सैनिक उसी दिशा में आगे चले गए आगे जाकर उन्होंने देखा कि एक बालक जमीन पर लेटा हुआ है और एक औरत पेड़ पर पत्थर मार रही है। सेनिको ने दोनों को पकड़ कर सेनापति के समक्ष प्रस्तुत किया। जब विक्रमादित्य ने देखा कि सैनिक एक महिला और बालक को पकड़ कर ले आये हैं। तो वह उनके पास गए और बोले आपने मुझे पत्थर क्यो मारा? महिला बोली महाराज मैंने आपको पत्थर नही मारा। मैं तो पेड़ से फल तोड़ रही थी गलती से पत्थर आपको लग गया। इसके लिए मुझे क्षमा करें। महाराज ने फिर कहा आप फल किस लिए तोड़ रही थी? इस पर महिला रोने लगी और बोली महाराज मेरे पति की कुछ समय पहले ही मृत्यू हो गयी मेरे यहाँ कोई कमाने बाला नही छोटा सा बच्चा है मेरा दो दिन से इसे भोजन नही मिला है। मैने सोचा पेड़ से फल तोड़कर इसे खिला दु नही तो भोजन के आभाव मे ये मर जायेगा। इसलिए में फल तोड़ रही थी। इतनी बात सुनकर सेनापति बोला महाराज इसे क्या दंड दिया जाए। राजा विक्रमादित्य बोले इसे १०० स्वर्ण मुद्राएं दे दी जाए। मुद्राएं लेकर वह महिला अपने बच्चे को लेकर चली गई। महिला के जाने के बाद सेनापति बोला महाराज उस महिला ने आपको पत्थर मारा और आपने उसे दंड की जगह स्वर्ण मुद्राएं दे दी ऐसा क्यों? विक्रमादित्य ने सुंदर जवाब दिया जब एक पेड़ पत्थर खाकर फल दे सकता है तो मैं तो एक मनुष्य हूँ। 

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