रविवार, 18 जुलाई 2021

कुण्डलिया (गिरधर )

बिना विचारे जो करे, सो पाछै पछिताय,
काम बिगाड़े आपनो, जग में होत हसाय,
जग में होत हसाय, चित्त में चैन न पावै,
खान पान सम्मान, राग रंग मन ही न भावै,
कह गिरिधर कविराय, दुख कछु टरत न टारे,
खतकत है जिय में कियो जो बिना विचारे।।
                          (2)
पानी बाड़े नाव में, घर मे बाड़े दाम,
दोनों हाथ उलीचिये, यही सियानो काम,
यही सियानो काम, राम को सुमिरन कीजै,
परस्वरथ के काज, शीश आगे धर दीजै।।
                         (3)
साईं ये न विरोधिये, गुरु पंडित कवि यार,
बेटा वनिता पोरियो, यज्ञ करावन हार,
यज्ञ करावन हार, राज मंत्री जो होई,
विप्र पड़ोसी वैध, आपकी तपै रसोई,
कह गिरिधर कविराय, युगनते ये चली आई,
इन तेरह सो तरे दिन, आबे साँई ।।

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