सोमवार, 9 अगस्त 2021

श्रीधर स्वमी जी की कथा (Shridhar Svami ji ki katha)

श्रीधर स्वमी जी श्रीमद्भागवत गीता पर टीका लिखा रहे थे। उन्होंने देखा कि गीता में एक श्लोक आया है अनन्याश्चिन्तयन्तो माम ये जना पाउपस्यन्ते तेसं नित्य अभियुक्तनम योगक्षेम वहामहम।। इसका अर्थ होता है जो भी व्यक्ति संसार के सारे आश्रय को छोड़कर एक मेरे ही आश्रित रहता है उसका सारा भार में स्वयं वहन करता हूँ। श्रीधर महाराज ने सोचा भगवान स्वयं तो किसी के पास जाते नही होंगे उसकी व्यवस्था करने वह तो किसी को माध्यम बनाकर उनकी व्यवस्था करते होंगे जो उनके आश्रित रहते हैं, अतः श्रीधर महाराज ने उस श्लोक में अपनी ओर से सुधार करते हुए योगक्षेम वहामहम की जगह योगक्षेम ददामहम कर दिया। एक दिन की बात है श्रीधर महाराज के घर पर भोजन की व्यवस्था नही थी घर पर पत्नी भूखी थी श्रीधर महाराज किसी कार्य से घर से बाहर गए हुए थे। उसी समय भगवान श्री कृष्ण बालक के रूप में सिर पर भोजन सामग्री लिए हुए तथा मुँह से खून गिरता हुआ श्रीधर महाराज के घर पर पहुँच गए। आवाज लगाई तो श्रीधर महाराज की पत्नी बाहर आयी बालक रूपधारी भगवान श्री कृष्ण जी बोले माता यह भोजन महाराज जी ने भेजा है, श्रीधर महाराज की पत्नी ने पूछा बेटा आपके मुँह से यह खून कैसा निकल रहा है इसपर भगवान बोले माता यह श्रीधर महाराज ने मेरे मुँह पर मारा है, इतना कहकर बालक रूपधारी भगवान श्री कृष्ण वहाँ से चले गए। शाम को जब श्रीधर महराज घर लौटे तो पत्नी ने सारी बात बताई और पूछा कि आपने इतने प्यारे बालक के मुँह पर क्यो मारा? श्रीधर महाराज समझ गए कि यह बालक कोई और नही बल्कि स्वंय भगवान श्री कृष्ण थे।उन्होंने तुरंत अपनी गलती सुधारी और भगवान से क्षमा माँगी और पत्नी को समझाया। गीता तो स्वयं भगवान श्री कृष्ण के मुख से निकली हुई अमृतबाणी है इसपर संसय अर्थात भगवान पर संसय।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विश्व मैं सर्वाधिक बड़ा, छोटा, लंबा एवं ऊंचा

सबसे बड़ा स्टेडियम - मोटेरा स्टेडियम (नरेंद्र मोदी स्टेडियम अहमदाबाद 2021),  सबसे ऊंची मीनार- कुतुब मीनार- दिल्ली,  सबसे बड़ी दीवार- चीन की ...