श्री रामचंद्र कृपाल भजमन,
हरण भव भय धारणम।
नव कंज लोचन कंज मुख कर,
कंज पद कन्जारुणम।
कंदर्प अगनित अमित छवि नव
नीर नीरज सुंदरम,
पट्पीत मानव तड़ित रुचि शुचि
नोमी जनक सुताबरम।
भजु दीनबंधु दिनेश दानव
दैत्य वंश निकन्दनम,
रघुनन्द आंनद कंद कौसल
चंद दशरथ नन्दनम।
सिर मुकुट कुंडल
तिलक चारु उदार
अंग बिभूषणम,
आजन भुज सर चापधर
संग्राम जित खरदुशनम।
मन जाहि राचेहु मिलत सो वर
सहज सुंदर सांवरो,
करुनानिधान सुजानशील
स्नेह जानत रावनो।
एहि भाती गौर आशीष
सुन सिये हिय हर्षित चली।
तुलसी भावनी पूज्य पुनि पुनि
मुदित मन मंदिर चली।।
श्री जान गौरी अनुकूल सियहिय हरष न जाये कहि।
श्री मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।
।।श्री राम जन्म स्तुति।।
सुर समूह विनती करि पँहुचे निज निज धाम
जब निवास प्रभु प्रकटे अखिल लोक विश्राम।।
भये प्रकट कृपाला दीनदयाला
कौसिल्या हितकारी,
हर्षित महतारी मुनिमन हारी।
अद्भुद रूप निहारी,
लोचन अभिरामा तन घनश्मा।
निज आयुद भुज चारी,
भूषण वनमाला नयन विशाला
शोभा सिंधु खरारी।
कह दोई कर जोरी
अस्तुति तोरी केहि विधि करहु अनन्ता,
करुणा सुख सागर सब गुण आगर
जेहि गावहि सुरति संता।
सो मम हित लागी जन अनुरागी
भयऊ प्रगट श्रीकंता
ब्रमण्ड निकाया निर्मित माया,
रोम रोम प्रति वेद कहे।
मम उर सो बासी यह उपहासी
सुनत धीर मति थिर न रहे
उपजा जब ग्याना प्रभु मुस्काना
चरित बहुत विधि कीन्ह चाहे
कहि कथा सुहाई मात बुझाई
जेहि प्रकार सुत प्रेम लहे
माता पुनि बोली सो मति डोली
तजहु तात यह रूपा,
कीजै शिशु लीला अति प्रिय शीला
यह सुख परम् अनूपा,
सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना
होई बालक सुर भूपा।
यह चरित जो गावहि हरि पद पावहि,
ते न परे भव कूपा।।
बिप्र धेनु सुर संत हित लीन मनुज अवतार।
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गोपार।।
लखन सीया रामचंद्र की जय
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