बुधवार, 28 जुलाई 2021

पैसे की महिमा ( पैसे बिना )

पैसे बिना माई कहे, कैसो जो कपूत भयों,
पैसे बिना पत्नी कहे निकम्मे से पाला पड़ा,
पैसे बिना सास कहे कैसो जो जमाई है,
पैसे बिना भाई कहे बंधु दुख दीन है,
पैसे बिना न ही बंधु, पैसे बिना न ही यार,
पैसे बिना देव नही करते सहाई है,
सुनो कहे सारांश भाई पैसा रखो अपने पास पैसे बिना मुर्दे ने लकड़ी नही पाई है।

रविवार, 18 जुलाई 2021

कुण्डलिया (गिरधर )

बिना विचारे जो करे, सो पाछै पछिताय,
काम बिगाड़े आपनो, जग में होत हसाय,
जग में होत हसाय, चित्त में चैन न पावै,
खान पान सम्मान, राग रंग मन ही न भावै,
कह गिरिधर कविराय, दुख कछु टरत न टारे,
खतकत है जिय में कियो जो बिना विचारे।।
                          (2)
पानी बाड़े नाव में, घर मे बाड़े दाम,
दोनों हाथ उलीचिये, यही सियानो काम,
यही सियानो काम, राम को सुमिरन कीजै,
परस्वरथ के काज, शीश आगे धर दीजै।।
                         (3)
साईं ये न विरोधिये, गुरु पंडित कवि यार,
बेटा वनिता पोरियो, यज्ञ करावन हार,
यज्ञ करावन हार, राज मंत्री जो होई,
विप्र पड़ोसी वैध, आपकी तपै रसोई,
कह गिरिधर कविराय, युगनते ये चली आई,
इन तेरह सो तरे दिन, आबे साँई ।।

बुधवार, 23 जून 2021

भगवान के दर्शन का फल

रामचरित मानस में स्वयं भगवान ने आपने दर्शन का फल बताया है- 
मम दर्शन फल परम् अनूपा,
जीव पाय निज सहज स्वरूपा।।
अर्थात भगवान के दर्शन का फल यही है कि आप अपने सहज स्वरूप को जान ले।
और जिस दिन आप अपने सहज स्वरूप को जान जायेगे तो समझिए कि आपको भगवान के दर्शन का फल प्राप्त हो गया,
वैसे भी मानस में आया है कि ईश्वर अंश जीव अविनाशी, चेतन विमल सहज सुख राशि।। ईश्वर तो हर जीव के अंदर विधमान है। वो थे न मुझसे दूर न मैं उन से दूर था, आता न था नजर तो नजर का कसूर था।।
जिस प्रकार बहुत सारे वर्तन में हम पानी भरते हैं तो वर्तन तो भिन्न भिन्न होते हैं किंतु उनमे पानी एक ही होता है। कबीर जी ने भी इसका एक सुंदर उदाहरण दिया है- कबीरा पानी एक है वर्तन है अनेक न्यारे न्यारे वर्तन में पानी एक को एक। इसलिए सब कहा गया है कि सब रोगों की एक दवाई आपने आपको जानो भाई।

रामायण पढने का आसन तरीका

दोस्तो इस पोस्ट के माध्यम से आज हम आपको रामायण पढ़ने का आसन तरीका बतायेगे रामायण में मूलतः सोरठा, श्लोक,चौपाई, और दोहा होते हैं जिन्हें हम बड़ी ही सुंदरता से गाकर पढ सकते हैं, जो श्रोता तथा वक्ता दोनों के मन को आनंदित करेगा, सबसे पहले सोरठा कैसे पड़ते हैं ये जानते हैं-  जेहि सुमिरत सिद्ध होय गण नायक करिवर बदन। यह एक सोरठा है अब इसे हम अपने आसन तरीके से ऐसे पढेंगे- जेहि सुमिरत सिद्ध होय सियारामा गण नायक करिवर बदन रामा, इसके बाद चौपाई के बारे में जानते हैं- मंगल भवन अमंगलहारी, द्रवहु सो दसरथ अजर बिहारी। छंद को पढ़ना सबसे ज्यादा कठिन होता है परंतु इस प्रकार पढ़ने से आपको कोई कठिनाई नही होगी, जैसे- भय प्रगट कृपाला, दीनदयाला, कौसिल्या हितकारी, या श्री रामचन्द्र, कृपाल भजमन, हरण भव भय हारणम, नव कंज लोचन, कंज मुख कर, कंज पद कन्जारुणम। आशा है आपको हमारी यह पोस्ट पसन्द आएगी और आप भी आसानी से श्री रामायण जी का अध्ययन आसानी से कर पाएंगे। दोस्तो श्लोक संस्कृत में ही होते हैं और हम सभी को थोड़ी बहुत तो संस्कृत तो आती ही है।

शुक्रवार, 18 जून 2021

रामायण एवं सुंदरकांड आवाहन विसर्जन आरती

             ।। आवाहन ।।
जेहि सुमिरत सिद्ध होय सियारामा,
गण नायक करिवर बदन रामा ।
करहुँ अनुग्रह सोई सियारामा,
बुध्दि राशि शुभ गुण सदन रामा ।।
मूक होइ वाचाल सियारामा,
पंगु चढाई गिरिवर गहन रामा।
जासु कृपासु दयाल सियारामा,
द्रवहु सकल कलिमल दहन रामा।।
नील सरोरुह श्याम सियारामा,
तरून अरुन वारिज नयन रामा।
करहु सो मम उर धाम सियारामा,
सदा क्षीरसागर सयन रामा।।
कुंद इंदु सम देह सियारामा,
उमा रमन करुणा अयन रामा।
जाहि दीन पर नेह सियारामा,
करहु कृपा मर्दन मयन रामा।।
वंदहु गुरुपद कंज सियारामा,
कृपासिंधु नर रूप हरि रामा।
महामोह तम पुंज सियारामा,
जासु वचन रविकर निकर रामा।।
वंदहु मुनिपद कंज सियारामा,
रामायन जेहि निर्मयु रामा।
सखर सुकोमल मंजु सियारामा,
दोष रहित दूषन सहित रामा।।
वंदहु चारहु वेद सियारामा,
भव वारिध वो हित सरिस रामा।
जिनहि न सपनेहुँ खेद सियारामा,
बरनत रघुपति विमल यश रामा।।
वंदहु विधि पद रेनू सियारामा,
भवसागर जिन कीन्ह यह रामा।
संत सुधा शशि धेनु सियारामा,
प्रगटे खल विष बारुनी रामा।।
वंदहु अवध भुआल सियारामा,
सत्य प्रेम जेहि राम पद रामा।
बिछुरत दीनदयाल सियारामा,
प्रिय तनु तृन इव पर हरेउ रामा।।
वंदहु पवनकुमार सियारामा,
खलबल पावक ज्ञान घन रामा।
जासु हृदय आगार सियारामा,
बसहि राम सर चापधर रामा।।
रामकथा के रसिक तुम रामा,
भक्ति राशि मतिधीर सियारामा।
आय सो आसन लीजिये रामा,
तेज पुंज कपि वीर सियारामा।।
रामायण तुलसीकृत रामा,
कहहु कथा अनुसार सियारामा।
प्रेम सहित आसन गहेहु रामा,
आवहु पवन कुमार सियारामा
।। सियावर रामचंद्र की जय।।
               
                  ।। विसर्जन ।।
जय जय राजाराम की रामा,
जय लक्ष्मण बलवान सियारामा।
जय कपीस सुग्रीव की रामा,
जय अंगद हनुमान सियारामा।।
जय जय काकभुशुण्डि की रामा,
जय गिरि उमा महेश सियारामा।
जय ऋषि भारद्वाज की रामा,
जय तुलसी अवधेश सियारामा।।
प्रभु सन कहियो दंडवत रामा,
तुमहि कहो कर जोरि सियारामा।
बार बार रघुनाथ कहि रामा,
सुरति करावहु मोरि सियारामा।।
कामहि नारी पयारी जिमि रामा,
लोभहि प्रिय जिमि दाम सियारामा।
तिमि रघुनाथ निरंतर रामा,
प्रिय लागहु मोहि राम सियारामा।।
बार बार वर माँगहु रामा,
हर्ष देहु श्री रंग सियारामा।
पद सरोज अन पायनी रामा,
भक्ति सदा सतसंग सियारामा।।
प्रणत पाल रघुवंश मणि रामा,
करुणा सिंधु खरारी सियारामा।
गए शरण प्रभु राखिहैं रामा,
सब अपराध विसार सियारामा।।
कथा विसर्जन होत है रामा,
सुनो वीर हनुमान सियारामा।
जो जन जहाँ से आये हो रामा,
ते तह करो पयान सियारामा।।
श्रोता सब आश्रम गए रामा,
शम्भु गए कैलाश सियारामा।
रामायण मम हिर्दय में रामा,
सदा करो तुम वास सियारामा।।
रामायण जसु पावन रामा,
गावहि सुनहि जे लोग सियारामा।
राम भगति दृढ़ पावहि रामा,
विन विराग जप योग सियारामा।।
रामायण वैकुण्ठ गई रामा,
सुर गए निज निज धाम सियारामा।
रामचंद्र के पद कमल रामा,
वंदि गए हनुमान सियारामा।।
         ।। सियावर रामचंद्र की जय ।।

        ।। रामायण जी की आरती ।।
आरती श्री रामायण जी की,
कीरति कलित ललित सिया पी की ।
गावत ब्रम्हदिक मुनि नारद,
बाल्मीकि विज्ञान बिसारद।
सुक सनकादिक सेष अरु सारद,
वरनि पवनसुत कीरति निकी।
गावत वेद पुराण अष्टदस,
छहो शास्त्र ग्रंथन को रस।
मुनिजन धन संतन को सरबस,
सार अंश सम्मत सबहि की।
गावत सतत शम्भु भवानी,
अरु घट सम्भव मुनि विज्ञनी।
व्यास आदि कविवर्ज बखानी,
काकभुशुण्डि गरुड़ के हिय की।
कलिमल हरनि विषय रस फीकी,
सुभग सिंगार मुक्ति जुवती की।
दलन रोग भव मुरी अमी की,
तात मात सब विधि तुलसी की।
आरती श्री रामायण जी की।।






बुधवार, 2 जून 2021

बिना चालक की बस

एक छोटा सा बालक था वह ईश्वर में श्रद्धा रखता था, उसके पिता एक पड़े लिखे व्यक्ति थे, परंतु वह ईश्वर में विश्वास नही रखते थे, बालक कभी कोई सवाल करता तो वह उसे वैज्ञानिक तरीके से समझा देते थे। एक दिन बालक ने पूछा पिता जी इस संसार को कौन चलता है, ये बारिश, गर्मी, सर्दी, अपने समय पर ही क्यों आते हैं, सूर्य चंद्रमा समय से क्यो निकलते हैं कौन है जो इन्हें मैनेज करता है? पिता ने बताया बेटा इसे कोई मैनेज नही करता ये सब अपने आप होता है, दुनिया को कोई नही चलता ये अपने आप चलती है। अगले दिन बालक स्कूल गया वहाँ से थोड़ा लेट हो गया, घर पर पिता परेशान हो गए। थोड़ी देर बाद बालक बालक घर पहुच गया, पिता ने डाँटते हुए पूछा आज स्कूल से लेट कैसे हो गए, बालक मुस्कुराते हुए बोला पिता जी आज स्कूल से बिना ड्राइवर की बस में आया हूँ अब बस को कोई मैनेज तो कर नही रहा था तो वह कहीं भी रुक जाती बड़ी मुश्किल से घर पहुँच पाया हूं। बालक की बात सुनकर पिता को गुस्सा आया और वह बोला बेटा ऐसा भी होता है क्या की बगैर किसी के चलाये बस चलती हो, बालक बोला पिता जी जब इतनी बड़ी दुनिया बगैर किसी के चलाये चल सकती है तो क्या एक छोटी सी बस बगैर ड्राइवर के नही चल सकती। पिता हैरत भरी नजरों से बेटे की तरफ देखने लगा, छोटे से बच्चे ने पिता की आँखे खोल दी।

शनिवार, 29 मई 2021

भक्ति रस धारा

बता रे मन तू क्या ले जाएगा
पाप कपट कर माया जोड़ी
कुटुम कबीला खायेगा ।। बता रे मन तू ।।
आगे नदिया अगम बहत है
उसमे डाला जाएगा
धर्मी धर्मी पर उतर गए
पापी गोता खायेगा ।। बता रे मन तू क्या ।।
लोहे का इक खम्ब गड़ा है
उसमे बांधा जाएगा
बता रे मन तू क्या ले जाएगा।।
                        (2)
मेरे पाँव में पड़ गए छाले,
काली कमली के ओढ़ने वाले।
अपने भगतो को शहदा बना ले,
काली कमली के ओढ़ने वाले।।
गहरी नदिया नाव पुरानी
खेवनहारा वो भी अनाड़ी,
मेरी कश्ती को पार लगा दे
काली कमली के ओढ़ने वाले।। अपने भक्तों को शहदा बना ले,
काली कमली के ओढ़ने वाले ।।
श्याम पिया का एक पता है
साँवली सूरत बाँकी अदा है
बाके बाल है घुघर वाले
काली कमली के ओढ़ने वाले
                        (3)
लहर लहर लहराए हो 
झण्डा बजरंगबली का ।
इस झण्डे को हाथ मे लेकर
सीता की खोज लगाई हो ।। 
।। झण्डा बजरंगबली का ।।
बजरंगबली का मेरे हनुमत लला का
लहर लहर लहराए हो
झण्डा बजरंगबली का।।
इस झण्डे को हाथ मे लेकर
लक्ष्मण की जान बचाई हो
।। झण्डा बजरंगबली का ।।
लहर लहर लहराए हो 
झण्डा बजरंगबली का।।
                       (4)
राम नाम को भज ले बंदे
क्यो करते हो आनाकानी
हम जानी की तुम जानी ।
बालापन हँस खेल बितायो
खेल करे थे मनमानी।। हम जानी की..
आई जवानी खूब कमाया
माया जोड़ी थी मनमानी।। हम जानी की
आये बुढ़ापे कापन लागे
बात तुमने एकइ मानी।। हम जानी की..



शनिवार, 8 मई 2021

अपनी ताकत का कभी घमंड न करे

एक गाँव मे एक पहलवान रहता था। पूरे गाँव मे कोई भी कुश्ती में उसका मुकाबला नहीं कर सकता था। इस बात का उस पहलवान को बढ़ा ही अभिमान था। वह रोज अपनी पत्नी को परेशान करता पत्नी कुछ बोले तो बोलता देख गाँव मे कोई है मेरे मुकाबले सारे पहलवानों को मैने धूल चटा दी है। रोज रोज की नोक झोंक से परेशान होकर एक दिन पत्नी बोली संसार मे एक से एक शक्तिशाली व्यक्ति है अगर हमारे गॉव में कोई आपका मुकाबला नहीं कर सकता तो आसपास के गाँव मे कोई तो होगा जो आपका मुकाबला कर सके उसकी तलाश कीजिये। अगले दिन पहलवान दूसरे गाँव मे ऐसे पहलवान की तलाश में निकल गया जो कुश्ती में उसका मुकाबला कर सके। चलते चलते जैसे ही दूसरे गाँव की सीमा में पहुँचा तो उसने दूर से देखा कि एक बड़ा सा व्यक्ति सर पर पगड़ी बाधे हल चला रहा है औऱ उसके हल में बैलो की जगह दो शेर जुते हुए है। औऱ उसकी पत्नी टोकरी में रोटी औऱ मटके में पानी लेकर उसके लिए भोजन लेकर आ गयी। तभी उसकी नजर दूर खड़े उस पहलवान पर पड़ी औऱ उसने उसे अपने पास बुलाकर कहा इधर आ जब तक मैं भोजन कर रहा हूँ तब तक तू इन शेरो को पानी पिला कर ले आ। इतना सुनते ही उसके हाथ पैर फूल गए। उसने सोचा कि अगर शेरो के पास गया तो शेर मुझे खा जायेगे औऱ अगर नही गया तो जो व्यक्ति शेरो को हल में जोत सकता है वह मेरा क्या हाल करेगा इतना सोचकर उसने घर की तरफ दौड लगा दी। जब हल चलाने वाले ने उसे भागता हुआ देखा तो उसे बहुत गुस्सा आया कि इसकी इतनी हिम्मत की मेरी बात नही मानी उसने गुस्से में खाना छोड़कर उसके पीछे दौड़ लगा दी। पहलवान दौड़ते हुए अपने घर पहुँचा उसको डरा हुआ देखकर पत्नी ने पूछा क्या हुआ आप इतने डरे हुए औऱ दौड़ते हुए क्यो आ रहे हो। पति ने सारी बात बताई औऱ बोला मुझे बचा ले नही तो आज मेरी मौत निश्चित है। पत्नी बोली चुपचाप मेरी गोद मे सो जाओ औऱ कुछ बोलना मत मैं देखती हूँ उसे आने दो। पति ने वैसा ही किया जैसा पत्नी ने बोला थोड़ी देर बाद हल जोतने वाला व्यक्ति उसे ढूढते हुए वही पहुँच गया औऱ उसकी पत्नी से बोला इधर एक आदमी आया है क्या? पत्नी धीरे से मुंह पर उंगली रखकर बोली चुप अभी मेरा बेटा सो रहा है अगर जाग गया तो रोयेगा औऱ उसका रोना सुनकर मेरे पति आ जायेंगे क्योकि वह अपने बेटे को रोते हुए नही देख सकते। जब उसने उस औरत की गोद मे एक हट्टे कट्टे व्यक्ति को सोते हुए देखा जिसका चेहरा उसके आँचल से ढका हुआ है। उसने सोचा जिसका बेटा ऐसा है तो पिता कैसा होगा। यह सोचकर उसने अपने गाँव की ओर दौड़ लगा दी। उसके जाने के बाद पहलवान ने अपनी गलती के लिए पत्नी से क्षमा माँगी। औऱ प्राण बचाने के लिए धन्यवाद किया।

शुक्रवार, 7 मई 2021

ईश्वर का मंगलमय विधान

एक राज्य में एक मंत्री थे वे हर घटना में ईश्वर की मंगलमय इच्छा देखते थे। एक दिन राजा आपने अस्त्र शस्त्र  का निरीक्षण कर रहे थे। एक तलवार की धार पर उंगली फेर कर धार का निरीक्षण कर रहे थे। धार तेज होने के कारण राजा की उंगली का एक पोर कट गया खून की धार निकल पड़ी जब मंत्री ने देखा तो उनके मुख से अचानक निकल गया चलो ये भी ठीक हुआ मंत्री की बात सुनकर राजा को बड़ा क्रोध आया औऱ उन्होंने मंत्री को कारागार में डाल दिया। जैसे ही मंत्री को कारागार में डाला गया मंत्री ने फिर से कहा चलो ये भी अच्छा हुआ। कुछ दिन के बाद राजा जंगल मे आखेट के लिए गए और रास्ता भटक गए और भीलो के देश मे पहुँच गए। जहाँ कबीले के सरदार ने कोई आयोजन रखा था जिसमे मनुष्य की बलि की आवश्यकता थी और भील किसी मनुष्य की तलाश कर रहे थे तभी उनकी नजर राजा पर पड़ी और वह राजा को बांधकर सरदार के पास ले गए पूजन के बाद वलि की तैयारी शुरू की गई। सरदार ने आदेश दिया कि पहले इसका निरीक्षण करो इसका कोई अंग भंग तो नही क्योकि जब टूटे हुए चावल भगवान को नही चढ़ते तो खंडित मनुष्य की वलि कैसे चढ़ाई जा सकती है। राजा के शरीर का निरीक्षण करने पर राजा की कटी हुई उंगली देखकर भीलो ने राजा को छोड़ दिया। जैसे ही राजा को छोड़ा गया राजा को मंत्री की बात याद आ गयी और वह सीधे मंत्री के पास जा पहुँचे। मंत्री को कारागार से बाहर लाया गया राजा ने मंत्री से पूछा आपने मेरी उंगली कटने पर ये क्यो कहा था कि चलो ये भी ठीक हुआ यह तो मुझे समझ मे आ गया लेकिन जब मैंने आपको कारागार में डाला तब आपने ये क्यो कहा कि चलो ये भी ठीक हुआ? राजा की बात सुनकर मंत्री बोला महाराज पहले तो मैने इसलिए बोला था कि चलो ये भी ठीक हुआ क्योंकि अगर उस दिन आपकी उंगली नही कटती तो आज आपका सिर कट जाता। और दूसरी बार इसलिए बोला था कि मैं आपका सबसे विश्वसनीय मंत्री हूँ और हर समय आपके साथ रहता हूँ। अगर उस दिन आपने मुझे कारागार में नही डाला होता तो आज आप तो उंगली कटी होने के कारण बच गए परंतु मैं नही बचता। मेरी तो आज वलि चढ़ जाती । इसलिए ईश्वर जो भी करता है उसमें कही न कही हमारा हित छुपा रहता है। हमारी शोच जहाँ पर समाप्त होती है वहां से उसकी सोच प्रारम्भ होती है। हम अपने एक मष्तिष्क से सोचते हैं उसके तो अनंत मष्तिष्क है। उसका निर्णय हमे प्रारंभ में कष्टकारी जरूर लगता है किंतु उसमे कहि न कही हमारा हित छुपा रहता है। कोई भी पिता अपने बच्चो के साथ अन्याय नही कर सकता फिर वह तो परम पिता है। ये सारा संसार उसी का है। औऱ हम सब उसके बच्चे। और अगर कोई छोटा बच्चा अपने पिता से मिर्च दिलाने की जिद करने लगे तो क्या पिता उसे मिर्ची दे सकता है। औऱ अगर किसी बच्चे को फोड़ा हो जाता है तो माता पिता हिर्दय पर पत्थर रखकर उसको चीरा लगवा देते हैं ताकि बच्चे को कष्ट से मुक्ति मिल जाये।

गुरुवार, 6 मई 2021

सारा संसार किसका है?

किसी गाँव मे एक एक महात्मा रहते थे। वे बड़े ही शांत, धीर, और हर एक घटना में परमात्मा की इच्छा को देखते थे। उनके चर्चे बहुत दूर दूर तक फैले हुए थे। एक दिन एक व्यक्ति महात्मा के पास आया और बोला हे महात्मा ! मैं आपका शिष्य बनना चाहता हूँ कृपया मुझे अपनी शरण मे ले महात्मा बोले- ठीक है आज से तू मेरा शिष्य बन गया। व्यक्ति बोला- परन्तु महात्मा जी मैं चोरी करता हूँ, महात्मा बोले- कोई बात नही। व्यकि बोला - महात्मा जी मैं मास, मदिरा का सेवन करता हूँ। महात्मा बोले- कोई बात नही। व्यकि बोला - महात्मा जी मैं व्यभिचारी हूँ, लूटपाट करता हूँ, यहाँ तक कि धन के लिए लोगो की हत्या तक कर देता हूँ। महात्मा बोले- ठीक है कोई बात नही।
महात्मा की बात सुनकर वह व्यक्ति महात्मा के चरणों मे गिर गया और बोला- महात्मा जी मैंने आपको अपनी सारी बुराई बताई इसके बाद भी आप मुझे अपना शिष्य स्वीकार कर रहे हैं ऐसा क्यों? 
महात्मा बोले - ये पृथ्वी किसकी है?
व्यक्ति बोला -भगवान की
महात्मा बोले- ये वायु, जल ,अकाश, सुर्य, चंद्रमा, अन्न सब किसके हैं?
व्यकि बोला- सब भगवान के है।
महात्मा बोले- जब सब कुछ उस परमपिता का है और उसको तुमसे कोई परेशानी नही तो मैं उसके निर्णय के विरुद्ध जाकर क्यो उसके निर्णय पर उंगली उठाऊ।
अगर उसको तुमसे परेशानी होती तो वह क्षण भर में तेरी सांसे रोक देता। मैं कौन होता हूँ उसके निर्णय के विरुद्ध जाने वाला।
वह व्यक्ति महात्मा के चरणों मे पड़ गिड़गिड़ाने लगा।
और एक अच्छा शिष्य औऱ नगरिक बन गया।

बुधवार, 14 अप्रैल 2021

कामदगिरि-चित्रकूट-परिक्रमा

भारतवर्ष तीर्थो का देश है धर्मप्राण भारतीय संस्कृति के भव्य भवन को संभालने वाले सुदृढ आधारस्तंभो के रूप में स्थित इन अगणित पुनीत तीर्थों से शोभित यह धराधाम धन्य-धन्य हो रहा है। हमारे तीर्थ हमारी आस्था के केंद्रबिंदु है।
चित्रकूटधाम-कामदगिरि एक ऐसा ही अरण्यतीर्थ है जो भारतवर्ष का हृदयबिन्दु है। चित्रकूट धाम की परिधि में श्री कामदगिरि स्थित है। यह स्थल सृष्टि के प्रारंभकाल से ही एक अति रमणीक पुनीत सिद्ध तपोवन रहा है।
         ।।कामदगिरि-परिक्रमा।।
चित्रकूट आनेवाला हर श्रद्धालु मंदाकिनी गंगास्नान औऱ कामदगिरि की परिक्रमा जरूर करता है। मान्यता हैं कि भगवान श्रीरामजी वनवास काल मे लक्षण और सीता सहित कामदगिरि का आश्रय लेकर बारह वर्ष तक चित्रकूट में रहे थे। वाल्मीकि रामायण में यह अवधि दस वर्ष मानी गयी हैं।
रघुपति चित्रकूट बसि नाना।
चरित किए श्रुति सुधा समाना।।
अतः श्रद्धालु जन कामदगिरि को साक्षात भगवद्विग्रह मानकर उसका पूजन, अर्चन, दर्शन तथा उसकी परिक्रमा करते हैं 'कामदमनि कामदा कलप तरु' अथवा 'कामदा भे गिरि राम प्रसादा' -जैसी तुलसीदास की उक्तियाँ आज लोकमान्यता का रूप ले चुकी है। अतः कामदगिरि को सम्पूर्ण कामनाओं को देने वाला देवता माना जाता है। कामदगिरि-परिक्रमा की प्रथा बड़ी प्राचीन हैं।
कामदगिरि के उत्तर द्वार (मुख्य द्वार) मुखारविंद से परिक्रमा प्रारम्भ होती हैं। परिक्रमा मार्ग में प्राचीन एवं नवीन सैकड़ों देवालय है, जिनमे मुखारविंद, भरतमिलाप, बहरा हनुमान तथा पीलीकोठी के मंदिर दर्शनीय है। परिक्रमा से संलग्न लक्ष्मणपहाड़ी की चोटी पर बने लक्ष्मण मंदिर एवं कुँए को देखने श्रद्धालु लोग जाते हैं। कामदगिरि परिक्रमा स्थल हर जाति, धर्म, वर्ग एवं सम्प्रदाय के लिए सदैव खुला रहता है। कामदगिरि की ५ कि०मि०लम्बी परिक्रमा नंगे पैर करने की प्रथा हैं। कुछ लोग लेटकर परिक्रमा करते हैं, जिसे स्थानीय भाषा मे 'दण्डवती-परिक्रमा' कहते हैं।
मान्यता है कि कामदगिरि के दर्शन, पूजन और परिक्रमा करने से लोगो की मनोकामना पूरी होती हैं। दीपावली में कामदगिरि और मंदाकिनी गंगा में दीपदान करने से इच्छित लाभ मिलता हैं तथा सोमवती अमावस्या पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ बनी रहती है।
           ।।विशेषपर्व और मेले।।
सावनझुला, नवरात्र, दीपावली, रामनवमी तथा विवाह पंचमी, प्रायः सभी तीज-त्योहार, सूर्य और चंद्रग्रहण, प्रत्येक मास की अमावस्या और रामायण मेला आदि उत्सव यहाँ मनाये जाते हैं। वर्षभर प्रतिदिन आने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ यहाँ बनी रहती है। बुंदेला-पन्ननरेश महाराज छत्रसाल ने सन १६८८ ई० में मुग़लसेनापति अब्दुल हमीद को हराकर इस क्षेत्र पर अपना अधिकार कर लिया और पन्ना को अपनी राजधानी बनाया। हिन्दुधर्म और संस्कृति का विशेष प्रेमी पन्नाराज परिवार चित्रकूट धाम की महिमा मंडित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। कहा जाता है। कहा जाता है कि कामदगिरि-परिक्रमा का पक्का मार्ग सर्वप्रथम महाराज छत्रसाल की धर्मपत्नी चंद्रकुवरी ने ही सन १७५२ ई० में बनवाया था। जिसका पुनरुद्धार महाराज अमानसिंह के कार्यकाल में हुआ। महाराज अमानसिंह(१८वी सदी का उत्तरार्द्ध)-ने चित्रकूटधाम-कामदगिरि में अनेक मठो, मंदिरों, कुआँ औऱ घाटो का निर्माण कराया तथा उसमें माफियाँ लगायी। १९वी सदी के पन्ननरेश हिंदुपत ने भी उदार वंश परंपरा का निर्वाह किया और धीरे-धीरे चित्रकूटधाम में पन्ना-राजघराने के द्वारा बनाये गये मठ और मंदिरो की संख्या बहुत बढ़ गयी। इस जनप्रिय राजघराने से सम्मान पाने के कारण इस अवधि में चित्रकूट का महत्व भी जनसामान्य में विशेषरूप से प्रचारित हुआ।
चित्रकूट ऋषिमुनियों की तपस्थली ही नही अपितु हजारो, लाखो लोगो की श्रद्धा का केन्द्रविन्दु भी है।
वही कामद चितकूट स्थली यह।
सियाराम की पुण्यलीला स्थली यह।।
तपो पूत रम्या अरण्य स्थली यह।
सभी के लिये स्वर्ग की स्थली यह।।

विश्व मैं सर्वाधिक बड़ा, छोटा, लंबा एवं ऊंचा

सबसे बड़ा स्टेडियम - मोटेरा स्टेडियम (नरेंद्र मोदी स्टेडियम अहमदाबाद 2021),  सबसे ऊंची मीनार- कुतुब मीनार- दिल्ली,  सबसे बड़ी दीवार- चीन की ...