बुधवार, 14 अप्रैल 2021

कामदगिरि-चित्रकूट-परिक्रमा

भारतवर्ष तीर्थो का देश है धर्मप्राण भारतीय संस्कृति के भव्य भवन को संभालने वाले सुदृढ आधारस्तंभो के रूप में स्थित इन अगणित पुनीत तीर्थों से शोभित यह धराधाम धन्य-धन्य हो रहा है। हमारे तीर्थ हमारी आस्था के केंद्रबिंदु है।
चित्रकूटधाम-कामदगिरि एक ऐसा ही अरण्यतीर्थ है जो भारतवर्ष का हृदयबिन्दु है। चित्रकूट धाम की परिधि में श्री कामदगिरि स्थित है। यह स्थल सृष्टि के प्रारंभकाल से ही एक अति रमणीक पुनीत सिद्ध तपोवन रहा है।
         ।।कामदगिरि-परिक्रमा।।
चित्रकूट आनेवाला हर श्रद्धालु मंदाकिनी गंगास्नान औऱ कामदगिरि की परिक्रमा जरूर करता है। मान्यता हैं कि भगवान श्रीरामजी वनवास काल मे लक्षण और सीता सहित कामदगिरि का आश्रय लेकर बारह वर्ष तक चित्रकूट में रहे थे। वाल्मीकि रामायण में यह अवधि दस वर्ष मानी गयी हैं।
रघुपति चित्रकूट बसि नाना।
चरित किए श्रुति सुधा समाना।।
अतः श्रद्धालु जन कामदगिरि को साक्षात भगवद्विग्रह मानकर उसका पूजन, अर्चन, दर्शन तथा उसकी परिक्रमा करते हैं 'कामदमनि कामदा कलप तरु' अथवा 'कामदा भे गिरि राम प्रसादा' -जैसी तुलसीदास की उक्तियाँ आज लोकमान्यता का रूप ले चुकी है। अतः कामदगिरि को सम्पूर्ण कामनाओं को देने वाला देवता माना जाता है। कामदगिरि-परिक्रमा की प्रथा बड़ी प्राचीन हैं।
कामदगिरि के उत्तर द्वार (मुख्य द्वार) मुखारविंद से परिक्रमा प्रारम्भ होती हैं। परिक्रमा मार्ग में प्राचीन एवं नवीन सैकड़ों देवालय है, जिनमे मुखारविंद, भरतमिलाप, बहरा हनुमान तथा पीलीकोठी के मंदिर दर्शनीय है। परिक्रमा से संलग्न लक्ष्मणपहाड़ी की चोटी पर बने लक्ष्मण मंदिर एवं कुँए को देखने श्रद्धालु लोग जाते हैं। कामदगिरि परिक्रमा स्थल हर जाति, धर्म, वर्ग एवं सम्प्रदाय के लिए सदैव खुला रहता है। कामदगिरि की ५ कि०मि०लम्बी परिक्रमा नंगे पैर करने की प्रथा हैं। कुछ लोग लेटकर परिक्रमा करते हैं, जिसे स्थानीय भाषा मे 'दण्डवती-परिक्रमा' कहते हैं।
मान्यता है कि कामदगिरि के दर्शन, पूजन और परिक्रमा करने से लोगो की मनोकामना पूरी होती हैं। दीपावली में कामदगिरि और मंदाकिनी गंगा में दीपदान करने से इच्छित लाभ मिलता हैं तथा सोमवती अमावस्या पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ बनी रहती है।
           ।।विशेषपर्व और मेले।।
सावनझुला, नवरात्र, दीपावली, रामनवमी तथा विवाह पंचमी, प्रायः सभी तीज-त्योहार, सूर्य और चंद्रग्रहण, प्रत्येक मास की अमावस्या और रामायण मेला आदि उत्सव यहाँ मनाये जाते हैं। वर्षभर प्रतिदिन आने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ यहाँ बनी रहती है। बुंदेला-पन्ननरेश महाराज छत्रसाल ने सन १६८८ ई० में मुग़लसेनापति अब्दुल हमीद को हराकर इस क्षेत्र पर अपना अधिकार कर लिया और पन्ना को अपनी राजधानी बनाया। हिन्दुधर्म और संस्कृति का विशेष प्रेमी पन्नाराज परिवार चित्रकूट धाम की महिमा मंडित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। कहा जाता है। कहा जाता है कि कामदगिरि-परिक्रमा का पक्का मार्ग सर्वप्रथम महाराज छत्रसाल की धर्मपत्नी चंद्रकुवरी ने ही सन १७५२ ई० में बनवाया था। जिसका पुनरुद्धार महाराज अमानसिंह के कार्यकाल में हुआ। महाराज अमानसिंह(१८वी सदी का उत्तरार्द्ध)-ने चित्रकूटधाम-कामदगिरि में अनेक मठो, मंदिरों, कुआँ औऱ घाटो का निर्माण कराया तथा उसमें माफियाँ लगायी। १९वी सदी के पन्ननरेश हिंदुपत ने भी उदार वंश परंपरा का निर्वाह किया और धीरे-धीरे चित्रकूटधाम में पन्ना-राजघराने के द्वारा बनाये गये मठ और मंदिरो की संख्या बहुत बढ़ गयी। इस जनप्रिय राजघराने से सम्मान पाने के कारण इस अवधि में चित्रकूट का महत्व भी जनसामान्य में विशेषरूप से प्रचारित हुआ।
चित्रकूट ऋषिमुनियों की तपस्थली ही नही अपितु हजारो, लाखो लोगो की श्रद्धा का केन्द्रविन्दु भी है।
वही कामद चितकूट स्थली यह।
सियाराम की पुण्यलीला स्थली यह।।
तपो पूत रम्या अरण्य स्थली यह।
सभी के लिये स्वर्ग की स्थली यह।।

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