सोमवार, 28 फ़रवरी 2022

श्री सत्यनारायण व्रत कथा (Shri Satyanarayan Vrat Katha)

आज के इस अंक में हम आपको सम्पूर्ण श्री सत्यनारायण व्रत कथा पूजन विधि बताएंगे। 
                   पूजन विधी
सर्वप्रथम पूर्वाभिमुख होकर बैठ जाए एवं निम्नलिखित मंत्र से आचमन करे
ॐ माधवाय नमः
ॐ केशवाय नमः
ॐ गोविन्दाय नमः
ॐ ऋषिकेशाय नमः इस मंत्र का उच्चारण करते हुए अपने हाथों को धो ले।
इसके बाद सम्पूर्ण पूजन सामग्री आदि को निम्न मंत्र से जल छिड़कते हुए पवित्र करे
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्ववस्थां गतोऽपिवा।
यः स्मेरत् पुण्डरीकाक्षं स वाहभ्यन्तरः शुचि।। 
इसके बाद स्वस्तीवाचन मंत्र मांगलिक श्लोक का पाठ करे,
इसके बाद संकल्प करे।
ऊँ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु अद्य ब्रम्हाणोऽहि द्वितीयपराधै श्री श्वेतवाराहकल्पै वैवस्वतमन्यन्तरेऽष्टाविंशतितमे
कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्वूद्वीपेभरतखण्डे भारतवर्षे
..स्थाने ....नामसंवत्सरे ...ऋतौ....मासे
....पक्षे..तिथौ....दिने...काले...गौत्रः...
श्री सत्यनारायणस्य पूजन कथा श्रृवणाख्य कर्म करिष्ये।
इसके बाद गणेश अंबिका नवग्रह पूजन करें। फिर भगवान शलिग्राम का पूजन करें।
सर्व प्रथम हाथ में अक्षत पुष्प लेकर भगवान श्री सत्यनारायण  का इस मंत्र को बोलते हुए ध्यान करें 
नमो‌‌ऽस्त्वनन्ताय सहस्त्रमूर्तये सहस्त्रपाटाक्षिशिरोरूवाहवे 
सहस्त्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते
सहस्त्रकोटी युगघारिणे नमः।
श्री सत्यनारायणाय नमः ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि। (भगवान के सामने पुष्प छोड़ दें)
इसके बाद हाथ में पुष्प आदि लेकर भगवान श्री सत्यनारायण का आवाहन करें
आगच्छभगवन देव स्थानेचात्र स्थिरो भव।
यावत पूजां करिष्यामि तावत् त्वं संनिधौ भव।।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
आवाहनार्थे पुष्पों समर्पयामि।
(आवाहन के लिए पुष्प चढ़ाएं)
इसके बाद भगवान श्री सत्यनारायण को पुष्पों का आसन दें।
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः।
आसनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि (आसन के लिए पुष्प समर्पित करें)
फिर भगवान के पैरों को जल से धोए
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः।
पादयो: पाधं समर्पयामि।
इसके बाद फिर भगवान के ऊपर जल छिड़के, भगवान को अर्घ्य दें।
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः।
हस्तयोअघ्र्य समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को आचमन के लिए जल चढाएं।
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः।
आचमनीयं एवं समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को शुद्ध जल से स्नान कराएं।
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः।
स्न्नानीय जलं समर्पयामि।
भगवान को दूध से स्नान कराएं
श्री सत्यनारायणाय नमः।
पय‌‌: स्नान समर्पयामि। इसके बाद भगवान को शुद्ध जल से स्नान कराएं।
इसके बाद भगवान को दही से स्नान कराएं।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
दधिस्नानं समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को शुद्ध जल से स्नान कराएं।
इसके बाद भगवान को घी से स्नान कराएं। 
श्री सत्यनारायणाय नमः।
घृतस्न्नानं समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को शुद्ध जल से स्नान कराएं।
इसके बाद भगवान को शहद से स्नान कराएं।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
 मधुस्न्नानं समर्पयामि।
के बाद भगवान को शुद्ध जल से स्नान
कराएं।
उसके बाद भगवान को शक्कर से स्नान कराएं।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
शर्करास्न्नानं समर्पयामि।
भगवान को पुनः शुद्ध जल से स्नान कराएं।
इसके बाद भगवान को पंचामृत से स्नान कराएं।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
 पंचामृतस्न्नानं समर्पयामि।
इसके बाद पुनः भगवान को शुद्ध जल से स्नान कराएं।
इसके बाद भगवान को गंधोदक से स्नान कराएं।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
गन्धोदकस्न्नानं समर्पयामि।
इसके बाद पुनः भगवान को शुद्ध जल से स्नान कराएं।
इसके बाद भगवान को वस्त्र चढ़ाएं।
 और एक आचमनी जल चढाएं।
ओम श्री सत्यनारायणाय नमः।
वस्त्रंसमर्पयामि।
 आचमनीयं जलं समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को उप वस्त्र चढ़ाएं।
और एक आचमनी जल चढाएं।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
उपवस्त्रं समर्पयामि।
आचमनीयं जलं समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को यज्ञोपवीत चढ़ाएं।
इसके बाद एक आचमनी जल चढ़ाएं।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
यज्ञोपवीतं समर्पयामि।
आचमनीयं जलं समर्पयामि।
भगवान को चंदन लगाएं।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
 चंदनम समर्पयामि।
चंदन लगाने के बाद भगवान को स्वेत तिल अर्पित करें।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
श्वेततिलान समर्पयामि।
फिर भगवान को पुष्प या पुष्प माला अर्पित करें।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
पुष्पम पुष्पमाला च समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को तुलसीदल अर्पित करें
श्री सत्यनारायणाय नमः।
तुलसीदलं तुलसीमञ्जरी च समर्पयामि।
के बाद भगवान को हरी दुव चढ़ाएं
श्री सत्यनारायणाय नमः।
दुर्वाकुरान समर्पयामि।
उसके बाद भगवान को आभूषण समर्पित करें।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
अलड्करणार्थे आभूषणानि समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को इत्र अर्पित करें।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
सुगन्धिततैलादिद्रव्यं समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को धूप अर्पित करें।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
धूपमाघ़ापयामि।
के बाद भगवान को दीप दिखाएं
श्री सत्यनारायणाय नमः।
दीपं दर्शयामि।
द्वीप दिखाने  के बाद अपने हाथों को धो लें।
इसके बाद भगवान को तुलसीदल डालकर भोग लगाएं। और एक आचमनी जल छोड़ें।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
नैवेधं निवेदयामि।
 आचमनीयं जलं समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को पांच वार जल छोड़ें।ॐ प्रणाय स्वाह:
ॐ अपानाय स्वाहा:
ॐ व्यानाय ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंस्वाहा:
ॐ उदानाय स्वाहा:
ॐ समानाय स्वाहा:
इसके बाद भगवान से प्रार्थना करें।
त्वदीयं वस्तु गोविन्दतुभ्यमेवसमर्पये।
गृहाण सुमुखोभूत्वा प्रसीद परमेश्वर।।
इसके बाद भगवान को ऋतुफल समर्पित करें और एक आचमनी जल छोड़ें।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
अखण्डऋतुफलं समर्पयामि।
फलान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को ताम्बूल (पान लौंग इलायची) आदि अर्पित करें।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
एलालवंगपूगीफलयुतं ताम्वूलं समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को द्रव्य दक्षिणा अर्पित करें।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
द्रव्यदक्षिणां समर्पयामि।
 इसके बाद श्री सत्यनारायण से प्रार्थना करें कि हे प्रभु हमने यथाशक्ति आपका पूजन किया है इसे स्वीकार करें एवं हमारे पूजन में अगर कोई त्रुटि हो तो उसे क्षमा करें।
सशड्खचक्रं सकिरीटकुण्डलं
सपीतवस्त्रं सरसीरुहेक्षणम्।
सहारवक्ष: स्थलकौस्तुभश्रियं
नमामि विष्णु विरसा चतुर्भुजम्।।
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्यनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकांतं कमलनयनं योगिभिध्यानगम्यं
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
प्रार्थना समर्पयामि।
इसके बाद श्री सत्यनारायण व्रत कथा पुस्तक का पूजन कर कथा श्रवण करें कथा के बाद हवन पुष्पांजलि क्षमा प्रार्थना करें इसके बाद प्रसाद वितरण करें।

बुधवार, 23 फ़रवरी 2022

ध्यान मंत्र (Dhyan Mantra)

             १ श्री गायत्री ध्यानम
बालां विद्यां तु गायत्रीं लोहितां चतुराननाम्।
रक्ताम्बरद्वयोपेतामक्षसूत्रकरां तथा।।
कमण्डलुधरां देवी हंसवाहनसंस्थितां।
ब्राह्मणीं ब्रहम्दैवत्यां ब्रह्मलोकनिवासिनीम्।।
मन्त्रोणावाध्येद्देवीमायान्तीं सुर्यमण्डलात्।
               २ श्री भैरव ध्यानम्
करकलितकपालः कुंडली दंडपाणिः।
तरुणातिमिरनीलो व्याल यज्ञोपवीती।।
क्रतुसमयसपर्या विघ्नविच्छेद हेतुः।
जयति वटुकनाथः सिद्धिदःसाधकानाम्।।
              ३ श्री दुर्गा ध्यानम्
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोखिलस्य।
प्रसीद विश्वेश्वरी पाहि विश्वंत्वमीश्वरी देवी
चराचरस्य।।
              ४ श्री राम ध्यानम्
नीलाम्वुजश्यामलकोमलांगं सीतासमारोपित बामभागम्।
पाणौ महासायकचारूचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम्।।
              ५ श्री हनुमंत ध्यानम
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रयं वुद्धिमतां वरिष्ठं।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपधे।।

शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

मांगलिक श्लोक(ManglikShlok)

साथियों प्रत्येक शुभ पूजन में स्वस्तिवाचन औऱ मांगलिक श्लोक का अत्यधिक महत्व
होता है इन दोनों के बिना कोई भी शुभ पूजन पूर्ण नही माना जाता इसलिए प्रत्येक शुभ पूजन में स्वस्तिवाचन मंत्र के उपरांत मांगलिक श्लोक बोले जाते हैं, आज हम आपको मांगलिक श्लोक का पाठ लेकर आए हैं,
             ।। मांगलिक श्लोक।।
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः।
लम्वोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः।।१।।
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचद्रो गजाननः।
द्वादशैतानि नामांनि यः पठेच्छृणुयादपि।।२।।
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते।।३।।
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुभुर्जम्।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशानवतये।।४।।
अभिप्सितार्थ सिद्धार्थ पूजितो यः सुरासुरैः।
सर्वविघ्नहरस्तस्मै गणाधिपतये नमः।।५।।
सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वथिसाधिके।
शरण्ये त्रयंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।६।।
सर्वदा सर्वकार्येषु नास्ति तेषां मङ्गलं।
येषां हिर्दयस्थो भगवान मङ्गलायतनो हरि।।७।।
तदेव लग्नं सुदिनं तदेव ताराबलं चन्द्रबलं तदेव।
विद्याबलं देवबलं तदेव लक्ष्मीपति तेऽड्घ्रियुगं स्मरामि।।८।।
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः।
येषांमिन्दीवरश्यामो ह्रदयस्थो जनार्दनः।।९।।
यत्र योगेश्वर कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।
तत्र श्री विजयो भूतिध्रुवा नीतिर्मतिर्मम।।१०।।
सर्वेष्वारम्भ कार्येषु त्रयस्त्रिभुवेन्श्वराः।
देवा दिशन्तु नः सिद्धिं ब्रम्हेशान जनार्दनः।।११।।
विश्वेशं माधवं ढुण्डिं दण्डपाणिं च भैरवम्।
वन्दे काशी गुहां गङ्गा भवानी मणिकर्णिकाम्।।१२।।
श्रीमन्महागणाधिपतये नमः। लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः।
उमामहेश्वराभ्यां नमः।
वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः।
शचीपुरन्दराभ्यां नमः।
मातृपितृचरणकमलेभ्यो नमः।
इष्टदेवताभ्यो नमः।
कुलदेवताभ्यो नमः।
ग्रामदेवताभ्यो नमः।
वास्तुदेवताभ्यो नमः।
स्थानदेवताभ्यो नमः।
सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः।
सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः।
ॐ सिद्धिवुद्धिसहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः।

शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2022

सम्पूर्ण स्वस्तिवाचन मंत्र (svastivachan mantra)

साथियों आज हम आपको बताने जा रहे हैं सम्पूर्ण स्वस्तिवाचन मंत्र जिसके बिना हर शुभ पूजन अधूरा माना जाता है, और पूजन का पूर्ण फल प्राप्त नही होता, इसलिए हर शुभ पूजन में स्वस्तिवाचन का पाठ होना अति आवश्यक है।
              ।।स्वस्तिवाचन मंत्र।।
आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उभ्दिदः।
देवा नो यथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवे दिवे।।१।।
देवानां भद्रा सुमतिऋजयतां देवानां गुंग रातिरभि नो निवर्तताम्।
देवानां गुंग सख्यमुसेदिमा वयं देवा ने आयुः प्रतिरन्तु जीवसे।।२।।
तान्पूर्वया निविदा हूमहे वयं भगं मित्रमदिति दक्षमस्त्रिधम्।
अर्यमणं वरुण गुंग सोममश्विना सरस्वती नः सुभगा मयस्करत्।।३।।
तन्नो वातो मयोभु वातु भेषजं तन्माता पृथ्वी तत्पिता द्यौः।
तद् ग्रावाणः सोमसुतो मयोभुवस्तदश्विना श्रृणुतं धिष्ण्या युवम्।।४।।
तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पति धियञ्ञिवमवसे हूमहे वयम्।
पूषा नो यथा वेदसामसद् वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये।।५।।
स्वस्ति न इन्द्रो वृध्दश्रवाः स्वस्ति नः पुषा विश्ववेदाः स्वस्ति नस्ताक्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।।६।।
पृषदश्वा मरुतः पृन्श्रिमातरः शुभं यावानो विदधेषु जग्मयः।
अग्निजिह्म मनवः सूरचक्षसो विश्व नो देवा अवसागमन्निह।।७।।
भद्रं कर्णेभिः श्रृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।
स्थिरैरङ्गेस्तुष्टुवा गुंग सस्तनूभिव्-र्यशेमहि देवहितं यदायुः।।८।।
शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चका जरसं तनूनाम।
पुत्रसो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तो।।९।।
अदितिद्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्रः विश्वे देवा अदितिः पञ्च् जना अदितिर्जातमदितिजीनित्वम्।।१०।।
द्यौः शान्तिन्ततरिक्ष गुंग ॐ शान्तिः पृथिवी शान्तिराषः शान्तिरोषधयः शान्ति।
वनस्पतयः शान्तिविश्वे देवाः
शान्तिब्रम्ह शान्तिः सर्व गुंग शान्ति शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि।।११।।
यतो यतः समीहसे ततो नो अभयं कुरु।
शं नः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः पशुभ्यः।।१२।।
ॐ गणानांत्वा गणपति गुंग हवामहे प्रियाणांत्वा प्रियपति गुंग हवामहे निधीनांत्वा निधिपति गुंग हवामहे वसोमम आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्।।
ऊँ अम्बे अम्विकेऽम्वालिके न मा नयति कश्चन।
ससस्त्यश्वकः सुभाद्रिकांकाम्पीलवासिनीम्

गुरुवार, 3 फ़रवरी 2022

शिवतांडव स्त्रोतरम (ShivTandavStrotram)

शिवतांडव स्त्रोतरम बोलना सीखे सरल तरीके से।।

जटा-टवी-गलज्-जल-प्रवाह-पावि-तस्थले
गलेऽव-लम्व्य लम्बितां भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम्।
डमड्-डमड्-डमड्-डमन्-निनाद-वड्-डमर्वयं-
चकारचण्ड-ताण्डवं तनोतु नः शिवःशिवम् ।।१।।
जटा-कटाह-सम्भ्रम-भ्रमन्-निलिम्पनिर्झरी 
विलोल-विचिवल्लरी-विराज-मानमूधनि।
धगद्-धगद्-धगज्-ज्वलल्-ललाट-पट्टपावके
किशोर-चन्द्र-शेखरे रत़िःप्रति-क्षणं.मम।।२।।
धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-विलास-बन्धुबन्धूर
स्फुरद्-दिगन्त-सन्तति-प्रमोद-मानमानसे।
कृपा-कटाक्ष-धोरणी-निरूध्द-दुर्धरा-पदि
क्वचिद्-दिगम्वरे मनो विनोद-मेतुवस्तुनि।।३।।
जटा-भुजङ्ग-पिङ्गल-स्फ़ूरत-फणामणि-प्रभा-
कदम्ब-कुड़कुम-द्रव-प्रलिप्त दिग्वधू-मुखे।
मदान्ध-सिन्धुर-स्फ़ूरत-त्वगुत्तरीय-मेदुरे
मनो विनोद-मभूतं विभर्तु भूत भर्तरि।।४।।
सहस्त्र-लोचन-प्रभृत्य-शेष-लेख-शेखर
प्रसून-धूलि-धोरणी-विधु-सराधि-पीठभू:।
भुजङ्ग-राज-मालया निबद्ध-जाट-जुटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोर-बंधु-शेखरः।।५।।
ललाट-चत्वर-ज्वलद्-धन्ञ्नय-स्फुलिङ्गभा-
निपीत-पञ्च-सायकं नमन्-निलिम्प-नायकम्
सुधा-मयूख-लेखया.विराज-मान-शेखरं
महा-कपालि सम्पदे शिरो जटाल-मस्तुनः।।६।।
कराल-भाल-पट्टीका-धगद्-धगद्-धगज्-ज्वलद्
धन्ञ्नया-हती-कृत-प्रचण्ड-पञ्च-सायकं।
धरा-धरेन्द्र नन्दिनी-कुचाग्र-चित्र-पत्रक-
प्रकल्प-नेक-शिल्पिनि-त्रिलोचने-रतिर्मम।।७।।
नवीन-मेघ-मण्डली-निरूद्ध-दुर्धर-स्फुरत्-
कुह-निशीधिनी-तमः-प्रबन्ध-बद्ध-कन्धरः।
निर्लिम्पनिर्झरी-धरस-तनोत-कृत्ती-सिन्धुरः
कला-निधान-बन्धुरःश्रियं जगद्-धुरन्धरः।।८।।
प्रफुल्ल-नील-पड्कज-प्रपञ्च-कालिम-प्रभा-
वलम्वि-कण्ठ-कन्दली-रूचि-प्रवद्ध-कन्धरम्।
स्मरच्छिदं-पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छि-दान्ध-कच्छिदं तमन्त-कच्छिदंभजे।।९।।
अखर्व-सर्व-मङ्गला-कला-कदम्बमञ्जरी
रस-प्रवाह-माधुरी-विजम्भृणा-मधुन्व्रतम।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्त-कान्ध-कान्तकं तमन्त-कान्तकंभजे।।१०।।
जयत्-वदभ्र-विभ्रम-भ्रमद-भुजङ्गमश्वस
द्विनिर्गमत-क्रम-स्फुरत्-कराल-भाल-हव्य-वाट
धिमिद्-धिमिद्-धिमिद्-ध्वनन-तुङ्ग-मङ्गल-
ध्वनि-क्रम-प्रवर्तित-प्रचण्ड-ताण्डवः शिवः।।११।।
दृषद्-विचित्र-तल्पयोर्-भुजङ्ग-मौक्ति-कस्त्रजोर-गरिष्ठ-रत्न-लोष्ठयोःसुहृद-विपक्ष-पक्ष-यो:।
तृणारविन्द-चक्षुषोःप्रजा-मही-महेन्द्रयोः
सम-प्रवृत्ति-कः कदा सदा-शिवंभजाम्यहम्।।१२।।
कदा निलिम्प-निर्झरी-निकुञ्ज-कोटरेवसन
विमुक्त-दुर्मतीः सदा शिरः स्थ-मञ्जलिवहन्।
विलोल-लोल-लोचनो ललाम-भाल-लग्नकः
शिवेति मन्त्र मुच्चरन् कदा सुखीभवाम्यहम्।।१३।।
इमं हि नित्य-मेव-मुक्त-मुत्त-मोत्तमस्तवं
पठन् स्मरन् ब्रुवन्-नरो विशुद्धि-मेतिसन्ततम्।
हरे गुरौ सुभक्ति-मासु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशड्करस्यचिन्तनम्।।१४।।
पूजा-वसान-समये दश-वक्त्र-गीतं
यः शम्भु-पूजन-परं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथ-गजेन्द्र- तुरङ्ग-युक्तां
लक्ष्मी सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भूः।।१५।।


शुक्रवार, 13 अगस्त 2021

दानवीर

               ।। दानवीर कर्ण ।।

महाभारत के प्रमुख पात्रो में से एक थे दानवीर कर्ण, कर्ण महारानी कुंती के ज्येष्ठ पुत्र थे, महारानी कुंती को स्वेच्छा से पुत्र प्राप्त करने का वरदान प्राप्त था, जिसका परीक्षण करने के लिए कुंती ने विवाह से पूर्व ही सुर्य देव से पुत्र प्राप्ति का आवाहन किया था और परिणम स्वरूप सूर्यदेव ने उन्हें एक तेजस्वी पुत्र प्रदान किया किन्तु लोकनिंदा के भय के कारण उन्होंने उसे टोकरी में रखकर नदी में प्रवाहित कर दिया जिसे एक सूद्र दम्पति ने पाला पोसा, कर्ण ने भगवान परसुराम जी से विद्या प्राप्त की, उन्हें जन्म के साथ ही सूर्यदेव ने कुण्डल और कवच प्रदान किया था और वरदान दिया था कि जब तक इस बालक के शरीर पर यह कुण्डल और कवच रहेंगे इसे कोई युद्ध में परास्त नही कर सकेगा, इस बात से देवराज इंद्र काफी चिंतित थे चुकि कुंती के पांच पुत्र अपने अधिकार और धर्म की रक्षा के लिए कौरवों से युद्ध लड़ने वाले थे और कर्ण कौरवो की ओर से युद्ध लड़ने बाले थे, अतः कर्ण को हराये विना विजय प्राप्त नही की जा सकती थी। और कर्ण ने अर्जुन का वध करने का प्रण ले रखा था, अर्जुन कुंती को देवराज इंद्र के द्वारा प्रदान किये गए थे। कर्ण की एक विशेषता थी कि सुबह पूजन के उपरांत कोई भी याचक उनके यहाँ से कभी खाली हाथ नही लौटता था। इसलिए उन्हें दानवीर कहां जाता था। उनकी इसी विशेषता का लाभ उठाकर देवराज इंद्र ने उनसे कुण्डल और कवच दान में मांग लिए जिसे उन्होंने यहाँ जानते हुए भी की कुण्डल और कवच के बिना उनकी मृत्यु निश्चित है फिर भी सहर्ष दान कर दिए, जिससे प्रशन्न होकर देवराज ने उनसे वरदान मांगने के लिए कहा लेकिन उन्होंने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि आज आप मेरे यहाँ याचक बनकर आये हैं, और दान देकर कुछ माँगना तो व्यापार हुआ। फिर भी देवराज इंद्र ने उन्हें एक दिव्यास्त्र प्रदान किया। यही नही माता कुंती को अर्जुन को छोड़कर शेष चार पुत्रो को न मारने का वचन भी दिया था।
            
                 ।। ऋषि दधीचि ।।

अथर्वा ऋषि के पुत्र महाऋषि दधीचि का स्थान दानियों में कौन भूल सकता है जिन्होंने संसार के हितार्थ अपनी अस्थियो को दान कर दिया था। देवासुर संग्राम में जब देवराज इंद्र का वज्र नष्ट हो गया, और असुर देवताओं पर भारी पढ़ने लगे, तब देवताओं ने ब्रम्हा जी की शरण मे जाकर सहायता मांगी,और असुर किस प्रकार पराजित होंगे यहाँ जानने की इच्छा प्रगट की तब ब्रम्हा जी ने बताया कि महाऋषि दधीचि अगर अपनी अस्तिया दान कर दे तो उनका वज्र बनाकर असुरो को परास्त किया जा सकता है। देवराज इंद्र बिना विलम्ब किये महाऋषि दधीचि के पास पहुँच गए और उन्हें सारा वृतांत सुनाया। महाऋषि ने अपने शरीर को भस्म करके सँसार के हितार्थ अपनी अस्थियों का दान कर दिया।

             ।। राजा दिलीप ।।

ब्रम्हरिषि वाल्मीकि द्वारा रचित महाकाव्य
के अनुसार राजा दिलीप के कोई संतान नही थी इससे दुखी होकर वह गुरु वशिष्ठ जी के पास संतान प्राप्ति का उपाय जानने के पहुचे तब वशिष्ठ जी ने कहा राजन आपसे गौ ब्राम्हण का अनजाने में ही अपमान हुआ है इस कारण आप के कोई संतान नही है, अगर आप मेरी गाय जो कि कामधेनु की पुत्री है जिसका नाम है नन्दनी की सेवा करो और ये प्रसन्न हो जाये तो आपको संतान प्राप्त हो सकती है। राजा नंदनी की सेवा में लग गए। एक दिन जंगल मे उसे एक सिंह ने दबोच लिया राजा अस्त्र शस्त्र चलने में असमर्थ हो गए। तब उन्होंने सिंह से प्रार्थना की की आप मेरी नन्दनी को छोड़ दीजिए पर सिंह नही माना तब उन्होंने सिंह से कहा अगर आप चाहे तो मुझे खा ले किन्तु मेरी गौ माता को मुक्त कर दे जिसपर सिंह तैयार हो गया राजा ने अपने आपको सिंह को समर्पित कर दिया और गाय को मुक्त कर दिया, जैसे ही राजा सिंह के पास गए सिंह अंतर्ध्यान हो गया। तब नन्दनी बोली राजन यह सब मेरी माया थी मैं आपकी सेवा और समर्पण से अति प्रसन्न हूँ और आपको एक प्रतापी पुत्र प्राप्ति का वरदान देती हूँ। और यही प्रतापी पुत्र राजा रघु के नाम से प्रसिद्ध हुए जिनके नाम से राजा दिलीप के वंश का नाम रघुवंश हुआ।
राजा हरिश्चंद्र
मोरध्वज
आदि ने भी अपने द्वारा दिये गए दान से प्रसिद्धि प्राप्त की।

गुरुवार, 12 अगस्त 2021

गुरु भक्त

           ।। गुरु भक्त एकलव्य ।।

महाभारत में एक पत्र थे एकलव्य जिनकी गुरु भक्ति प्रसिद्ध है, जब गुरु द्रोणाचार्य जी ने यह कहकर एकलव्य को शिक्षा देने से मना कर दिया था, की वह केवल क्षत्रिय राजकुमारों को ही शिक्षा प्रदान करते हैं।
तब एकलव्य ने मन ही मन गुरु द्रोणाचार्य को गुरु मानकर उनकी प्रतिमा बना कर विद्याअध्यन आरम्भ कर दिया और एक सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बन गए, लेकिन जब गुरु द्रोणाचार्य ने गुरुदीक्षा में दाये हाथ का अंगूठा मांग लिया तो यह जानते हुए भी की अंगूठे के बिना उनकी विद्या का कोई मोल नही रह जायेगा फिर भी उन्होंने अपने दाये हाथ का अंगूठा गुरुदीक्षा में देकर गुरुभक्ति का एक अनूठा उदहारण प्रस्तुत किया था।

   ।। स्वामी विवेकानंद जी की गुरुभक्ति ।।

स्वमी विवेकानंद जी के गुरु रामकृष्ण परमहंस जी का विवेकानंद जी पर विशेष स्नेह था। वह कैंसर से पीड़ित थे, उनके बाकी के शिष्य उनसे दूरी बनाने लगे, उनके गले से पस आदि निकलते तो कोई भी शिष्य उसे साफ नही करता, नाही कोई उनके पास जाता यह देखकर विवेकानंद जी को काफी पीड़ा हुई और उन्होंने, गुरु रामकृष्ण परमहंस जी के गले से निकली पस को उठा कर पी लिया था, ऐसी थी स्वमी विवेकानंद जी की गुरु के प्रति श्रद्धा।

।। वीर शिवाजी महाराज की गुरुभक्ति।।

वीर शिवाजी महाराज के गुरु थे समर्थ रामदास जी, वे शिवजी महाराज की वीरता और प्रतिभा तथा गुरुभक्ति को पहचानते थे तथा उनके इन्ही सद्गुणों के कारण वह बालक शिवा पर विशेष स्नेह रखते थे, उनकी यह बात बाकी शिष्यों को अच्छी नही लगती थी, एक दिन उन्होंने गुरुदेव से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बोला कि समय आने पर बताऊगा, एक दिन गुरु रामदास जी के पेट मे दर्द हुआ, सभी शिष्यों ने उपचार के लिए चलने को कहा तो गुरु बोले इसका एक ही उपचार है अगर कोई मुझे शेरनी का दूध लकार दे तो उसका सेवन करते ही मेरा दर्द ठीक हो जाएगा परंतु कोई भी शिष्य तैयार नही हुआ, परन्तु जैसे ही शिवजी महाराज को पता चला वह दौड़े दौड़े गुरु के पास आये, उनसे सब हाल जाना और तुरंत ही निकल पड़े जंगल की ओर और शेरनी का दूध लाकर गुरुदेव को दिया, सभी आश्चर्य से वीर शिवाजी की ओर देख रहे थे, गुरुदेव समर्थ रामदास जी ने वाकी शिष्यों से कहा शायद तुम्हे तुम्हारे प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा।

बुधवार, 11 अगस्त 2021

ब्राम्हण की महिमा

सनातन धर्म मे ब्राम्हण को गुरु का स्थान दिया जाता, एक सच्चा ब्राम्हण अपने कर्मों के द्वारा समाज को अच्छे रास्ते पर चलने की प्रेरणा देता है, प्राचीन काल से ही ब्राह्मण का कार्य विद्या प्राप्त करना और विद्या प्रदान करना रहा है, ब्राम्हण संसार की भलाई के लिए जप तप यज्ञ अनुष्ठान आदि करते और करवाते आये हैं, यही कारण है कि भगवान भी ब्राम्हण से शिक्षा लेने के लिए लालायित रहते हैं, फिर चाहे भगवान श्री कृष्ण हो भगवान श्री राम या पांडव हो।
देवता हो या दानव सभी ब्राम्हणों का सम्मान करते थे। मैं अपने विवेक अनुसार कुछ पक्तियो के द्वारा ब्राम्हणों की महिमा के बारे में बताना चाहूंगा-
ब्राम्हण पैर पताल छलो, और
ब्राम्हण ही साठ हजार को जारो
ब्राम्हण सोख समुद्र लियो और
ब्राह्मण ही यदुवंश उजारो,
ब्राम्हण लात हनि हरि के तन
ब्राम्हण ही क्षत्रिय दल मारो
ब्राम्हण से जिन बैर करे कोई
ब्राम्हण से परमेश्वर हारो।।
अर्थात- ब्राम्हण ने अपने पैर से तीनों लोक नाप कर राजा बलि से मुक्त किया था, राजा बलि ने तीनों लोकों को अपने अधीन कर लिया था तब बामन भगवान ने बलि से तीन पग धरती दान में मांग ली थी और और दो पग में ही पृथ्वी और आकाश को नाप दिया था तथा तीसरा पग बलि के सिर पर रखकर उसका उद्धार किया था। अगस्त जी ने सारा समुद्र सोख लिया था। कपिल मुनि ने सगर जी के साठ हजार पुत्रो को श्राप देकर भस्म कर दिया था। तो परसुराम जी ने पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया था, दुर्वासा ऋषि ने यदुवंशीयो को श्राप देकर यदुवंश को नष्ट कर दिया था, तो वही भृगु ऋषि ने भगवान विष्णु के वक्ष स्थल पर अपने पैर से प्रहार कर दिया, इसलिय ब्राह्मणों से कभी विरोध नही करना चाहिए, ब्राम्हण को भूदेव भी कहा जाता है, ब्राम्हणों ने सनातन धर्म को एक सूत्र में बांधने का कार्य हमेशा से ही किया है, इसलिये ब्राह्मणों के हितार्थ भगवान भी पृथ्वी पर अवतार लेते रहे हैं।
वेद पुराणों और शास्त्रों ने भी ब्राह्मण की महिमा गायी है। रामचरित मानस में भी भगवान ने तुलसीदास जी के मुख से कहलवाया है, विप्र धेनु सुर संत हित लीन मनुज अवतार, निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गोपार।

सोमवार, 9 अगस्त 2021

श्रीधर स्वमी जी की कथा (Shridhar Svami ji ki katha)

श्रीधर स्वमी जी श्रीमद्भागवत गीता पर टीका लिखा रहे थे। उन्होंने देखा कि गीता में एक श्लोक आया है अनन्याश्चिन्तयन्तो माम ये जना पाउपस्यन्ते तेसं नित्य अभियुक्तनम योगक्षेम वहामहम।। इसका अर्थ होता है जो भी व्यक्ति संसार के सारे आश्रय को छोड़कर एक मेरे ही आश्रित रहता है उसका सारा भार में स्वयं वहन करता हूँ। श्रीधर महाराज ने सोचा भगवान स्वयं तो किसी के पास जाते नही होंगे उसकी व्यवस्था करने वह तो किसी को माध्यम बनाकर उनकी व्यवस्था करते होंगे जो उनके आश्रित रहते हैं, अतः श्रीधर महाराज ने उस श्लोक में अपनी ओर से सुधार करते हुए योगक्षेम वहामहम की जगह योगक्षेम ददामहम कर दिया। एक दिन की बात है श्रीधर महाराज के घर पर भोजन की व्यवस्था नही थी घर पर पत्नी भूखी थी श्रीधर महाराज किसी कार्य से घर से बाहर गए हुए थे। उसी समय भगवान श्री कृष्ण बालक के रूप में सिर पर भोजन सामग्री लिए हुए तथा मुँह से खून गिरता हुआ श्रीधर महाराज के घर पर पहुँच गए। आवाज लगाई तो श्रीधर महाराज की पत्नी बाहर आयी बालक रूपधारी भगवान श्री कृष्ण जी बोले माता यह भोजन महाराज जी ने भेजा है, श्रीधर महाराज की पत्नी ने पूछा बेटा आपके मुँह से यह खून कैसा निकल रहा है इसपर भगवान बोले माता यह श्रीधर महाराज ने मेरे मुँह पर मारा है, इतना कहकर बालक रूपधारी भगवान श्री कृष्ण वहाँ से चले गए। शाम को जब श्रीधर महराज घर लौटे तो पत्नी ने सारी बात बताई और पूछा कि आपने इतने प्यारे बालक के मुँह पर क्यो मारा? श्रीधर महाराज समझ गए कि यह बालक कोई और नही बल्कि स्वंय भगवान श्री कृष्ण थे।उन्होंने तुरंत अपनी गलती सुधारी और भगवान से क्षमा माँगी और पत्नी को समझाया। गीता तो स्वयं भगवान श्री कृष्ण के मुख से निकली हुई अमृतबाणी है इसपर संसय अर्थात भगवान पर संसय।

रविवार, 8 अगस्त 2021

शुकदेव जी की कथा (shukadev ji ki katha)

शास्त्रों के अनुसार- शुकदेव जी महाऋषि वेदव्यास जी के पुत्र थे उनकी माता का नाम
वाटिका था, शुकदेव जी के जन्म की बड़ी
बिचित्र कथा है। एक समय की बात है कि माता पार्वती ने भगवान शिव जी से अमर कथा सुनने की इच्छा प्रगट की, बहुत विनय करने पर भगवान शिव जी कथा सुनाने को तैयार हो गए पर उन्होने माता पार्वती के सामने एक प्रस्ताव रखा, की जब तक मैं कथा सुनाऊँगा तब तक आपको ध्यान से कथा सुननी होगी और उत्तर में हां बोलना होगा कथा के स्थान पर हम दोनों के अतिरिक्त कोई भी नही होगा, माता पार्वती तैयार हो गयी। भगवान भोलेनाथ ने कथा प्रारम्भ की कुछ देर कथा सुनने के पश्चात भगवान भोलेनाथ कथा में लीन हो गए इसी दौरान माता पार्वती को नींद आ गयी और वहाँ पर कही से एक शुक (तोता) आ कर बैठ गया और उत्तर देता रहा जब कथा पुर्ण हुई तो भोलेनाथ ने देखा माता पार्वती तो सो रही है और उनकी जगह शुक(तोता) उत्तर दे रहा है, क्रोधित होकर भगवान भोलेनाथ उसके पीछे भागे और अपना त्रिशूल उसके पीछे छोड़ दिया, शुक आपने प्राण बचाने के लिए वेदव्यास जी के आश्रम में चला गया उसी समय माता वाटिका को छींक आयी और वह सूक्ष्म रूप से उनके मुख में प्रवेश कर गया और माता वाटिका के गर्भ में 14 वर्ष तक रहा, पिता के बार बार आग्रह करने के बाद तथा भगवान श्री कृष्ण के आश्वासन के बाद शुक ने माता वाटिका के गर्भ से जन्म लिया, भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें संसार की माया व्याप्त नही होगी ऐसा दिया था। शुकदेव जी ने ही वेदव्यास जी से महाभारत सुनकर देवताओं को सुनाई थी। तथा राजा परीक्षित को पिता वेदव्यास से सुनकर भागवत कथा का अमृत पान कराया था। शुकदेव जी की गुरु राधा रानी थी उनका नाम सुनते ही शुकदेव जी ध्यान मुद्रा में चले जाते थे। इसी बात का ध्यान रखते हुए पिता वेदव्यास जी ने भागवत में राधा नाम का उल्लेख नही किया है। क्योंकि अगर राधा जी का नाम कथा में आता तो शुकदेव जी ध्यान मुद्रा में चले जाते और कथा अधूरी रह जाती। शुकदेव जी अल्पायु में ही ब्रम्हलीन हो गए थे। 

बुधवार, 4 अगस्त 2021

जय श्री राम (Jai Shri Ram}

श्री राम स्तुति(Shri Ram Stuti)
श्री रामचंद्र कृपाल भजमन,
हरण भव भय धारणम।
नव कंज लोचन कंज मुख कर,
कंज पद कन्जारुणम।
कंदर्प अगनित अमित छवि नव
नीर नीरज सुंदरम,
पट्पीत मानव तड़ित रुचि शुचि
नोमी जनक सुताबरम।
भजु दीनबंधु दिनेश दानव
दैत्य वंश निकन्दनम,
रघुनन्द आंनद कंद कौसल
चंद दशरथ नन्दनम।
सिर मुकुट कुंडल
तिलक चारु उदार
अंग बिभूषणम,
आजन भुज सर चापधर
संग्राम जित खरदुशनम।
मन जाहि राचेहु मिलत सो वर
सहज सुंदर सांवरो,
करुनानिधान सुजानशील
स्नेह जानत रावनो।
एहि भाती गौर आशीष
सुन सिये हिय हर्षित चली।
तुलसी भावनी पूज्य पुनि पुनि
मुदित मन मंदिर चली।।
श्री जान गौरी अनुकूल सियहिय हरष न जाये कहि।
श्री मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।
            ।।श्री राम जन्म स्तुति।।
सुर समूह विनती करि पँहुचे निज निज धाम
जब निवास प्रभु प्रकटे अखिल लोक विश्राम।।
भये प्रकट कृपाला दीनदयाला
कौसिल्या हितकारी,
हर्षित महतारी मुनिमन हारी।
अद्भुद रूप निहारी,
लोचन अभिरामा तन घनश्मा।
निज आयुद भुज चारी,
भूषण वनमाला नयन विशाला
शोभा सिंधु खरारी।
कह दोई कर जोरी
अस्तुति तोरी केहि विधि करहु अनन्ता,
करुणा सुख सागर सब गुण आगर
जेहि गावहि सुरति संता।
सो मम हित लागी जन अनुरागी
भयऊ प्रगट श्रीकंता
ब्रमण्ड निकाया निर्मित माया,
रोम रोम प्रति वेद कहे।
मम उर सो बासी यह उपहासी
सुनत धीर मति थिर न रहे
उपजा जब ग्याना प्रभु मुस्काना
चरित बहुत विधि कीन्ह चाहे
कहि कथा सुहाई मात बुझाई
जेहि प्रकार सुत प्रेम लहे
माता पुनि बोली सो मति डोली
तजहु तात यह रूपा,
कीजै शिशु लीला अति प्रिय शीला
यह सुख परम् अनूपा,
सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना
होई बालक सुर भूपा।
यह चरित जो गावहि हरि पद पावहि,
ते न परे भव कूपा।।
बिप्र धेनु सुर संत हित लीन मनुज अवतार।
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गोपार।।
लखन सीया रामचंद्र की जय





विश्व मैं सर्वाधिक बड़ा, छोटा, लंबा एवं ऊंचा

सबसे बड़ा स्टेडियम - मोटेरा स्टेडियम (नरेंद्र मोदी स्टेडियम अहमदाबाद 2021),  सबसे ऊंची मीनार- कुतुब मीनार- दिल्ली,  सबसे बड़ी दीवार- चीन की ...