बुधवार, 23 मार्च 2022

सर्व देव पूजन मंत्र ( Sarv Dev Pujan Mantra)

आज के इस अंक में हम आपको ऐसे मंत्रों के वारे में बतायेगे जिन के द्वारा आप किसी भी देवता का पूजन कर सकते हैं। आज हम आपको बता रहे हैं वह लौकिक मंत्र।।
सर्वप्रथम किसी भी देवता का पूजन करने से पहले पवित्रीकरण मंत्र के द्वारा जल  लेकर  पूजन सामग्री को शुद्ध किया जाता है।।
               पवित्रीकरण मंत्र
ॐ अपवित्र पवित्रो वा सर्वावस्था गतोऽपिवा। 
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं सःवाहय्न्यन्तरः शुचि।।
पवित्रीकरण के बाद में आचमन किया जाता है तो निम्न मंत्रों को बोलते हुए तीन बार आचमन करें और चौथी बार हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र को बोलते हुए अपने हाथों को धो लें।
                   आचमन मंत्र
ॐ माधवाय नमः
ॐ केशवाय नमः
ॐ गोविंदाय नमः
ॐ ऋषिकेशाय नमः इस मंत्र को बोलते हुए अपने हाथ धो ले। इसके बाद निम्न मंत्र को बोलते हुए अपने आसन को शुद्ध करें
                आसन शुद्धि मंत्र
विनियोग- पृथ्वीति मंत्रस्य मेरू पृष्ठ ऋषिः सुतलं छन्दःकुर्मो देवता आसने  बिनियोगः।।
मंत्र- पृथ्वी त्वा धृतालोका देवी त्वं बिष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवी पवित्रं कुरू चासनम्।।
आसन शुद्धि के बाद में अपनी शिखा को निम्न मंत्र बोलते हुए बांधले और अगर शिखा ना हो तो अपने सर को एक रुमाल से ढक ले
                 शिखा वंदन मंत्र
चिद्रूपिणि! महामाये! दिव्यतेजः समन्विते। ःः
तिष्ठ देवी! शिखामध्ये तेजोवृद्धि कुरुष्व में।।
शिखा बंधन के पश्चात स्वस्तिवाचन मंत्र मांगलिक श्लोक नवग्रह पूजन कलश पूजन आदि किया जाता है जिस जिसके बारे में हम पिछले अंक में बता चुके हैं।।
इसके बाद में कर्म पात्र पूजन किया जाता है तो निम्न मंत्र को बोलते हुए कर्म पात्र का पूजन करें
                 कर्मपात्र पूजन मंत्र
गंगे च यमुने चैन गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिंधु कावेरी जलेऽस्मिन्सन्निधि कुरू।।
ॐ अपांपतये वरूणाय नमः। सर्वोपचारार्थे
गन्धाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि नमस्करोमि।।
इसके बाद पृथ्वी माता का पूजन करें
               पृथ्वी पूजन मंत्र
पृथ्वी त्वया धृतालोका देवी त्वं बिष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवी पवित्रं कुरू चासनम्।।
ॐ आधारशक्तये पृथिव्ये नमः। कमलासनाये नमः। 
इसके बाद दीपक स्थापित करें।
                 दीपस्थानम् मंत्र
भो दीप देवरूपस्त्वं कर्मसाक्षी ह्मविध्नकृत्।
यावत्कर्मसमाप्तिः स्यादतावत्वं सुस्थिरो भव।। इसके बाद शंख देवता का पूजन करें
                  शंख पूजन मंत्र
त्वं पुरासागरोत्पन्नो विष्णुना विधृतः करें।
निर्मितः सर्वदेवश्च पाञ्चजन्य नमोऽस्तुते।।ॐ भूर्भुवः स्वः शंड्खस्थदेवाय नमः। ः ःः
इसके बाद घण्टा (गरूड़) देवता का पूजन करें

            घण्टा (गरूड़) पूजन मंत्र
आगमार्थ तु देवानां गमनार्थ च रक्षसाम्।
कुरू घण्टे वरं नादं देवतास्थान सन्निधौ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः घण्टास्थिताय गरूडाय नमः।
 किसी भी देवता का पूजन करने से पहले 
सर्वप्रथम उन देवता की स्थापना (प्रतिष्ठा) की जाती है।
                   प्रतिष्ठा मंत्र
अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाःक्षरन्तु च।
अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन ।। इसके पश्चात भगवान को दूध दही घी शहद शुद्धोधन आदि से स्नान करवाते हैं तो स्नान के मंत्र निम्न प्रकार से हैं
                 स्नान मंत्र (दुग्ध)
कामधेनुसमुद्भूतं सर्वेषां जीवनं परम्।
पावन यज्ञहेतुश्च पयः स्नानार्थमर्पितम्।।
इसके बाद भगवान को शुद्ध जल से स्नान कराएं और इसके बाद भगवान को दधि (दही) से स्नान कराएं
                दधिस्नान(दही) मंत्र
पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम्।
दध्यानीतं मया देव स्नानार्थ प्रतिगृह्मताम्।। पुनः भगवान को शुद्ध जल  से स्नान कराएं, इसके बाद भगवान को शुद्ध घी से स्नान कराएं
                  घृत स्नान मंत्र
नवनीतसमुत्पन्नसर्वसंतोषकारकम्।
घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थ प्रतिगृह्मताम्।। इसके बाद भगवान को शुद्ध जल से स्नान कराएं। पुनः मधु से स्नान कराएं
                 मधु स्नान मंत्र
पुष्परेणुसमुदद्भूतं सुस्वादु मधुरं मधु।
तेजः पुष्टिकरं दिव्यं सनानार्थ प्रतिगृह्मताम्।।
इसके बाद भगवान को शुद्ध जल से स्नान कराएं, तत्पश्चात भगवान को शर्करा स्नान कराएं
इक्षुरसमुद्भूतां शर्कराएं पुष्टिदायक शुभाम्।
मलापहारिकां दिव्यं स्नानार्थ प्रतिगृह्मताम्।।
पुनः भगवान को शुद्ध जल से स्नान कराएं, तत्पश्चात भगवान को पञ्चामृत से स्नान कराएं
              पञ्चामृतस्नान मंत्र
पञ्चामृतं मयनीतं पयो दधि घृतं मधु।
शर्करया समायुक्तं स्नानार्थ प्रतिगृह्मताम्।।
पुनः भगवान को शुद्ध जल से स्नान कराएं, इसके बाद भगवान को शुद्ध जल मैं चंदन कुमकुम आदि डालकर भगवान को शुध्दोदकस्नान कराएं
गंगा च यमुना चैन गोदावरी सरस्वती।
नर्मदासिन्धुकावेरी स्नानार्थ प्रतिगृह्मताम्।।
इसके बाद भगवान को शुद्ध जल से स्नान कराएं।। इसके बाद भगवान को वस्त्र चढ़ाएं
               वस्त्र चढ़ाने का मंत्र
शीतवातोष्णसंत्राणं लज्जाया रक्षणं परम्।
देहालड्करणं वस्त्रमतः शान्ति प्रयच्छ में।।
वस्त्र चढ़ाने के बाद भगवान को एक आचमनी जल चढाएं। इसके बाद भगवान को उपवस्त्र चढ़ाएं और एक आचमनी जल छोड़ें
            उप वस्त्र चढ़ाने का मंत्र
यस्याभावेन शास्त्रोक्तं कर्म किञ्चन्न सिद्धयति।
उपवस्त्रं प्रयच्छामि सर्वकमोपकारकम्।।
इसके बाद भगवान को यज्ञोपवीत चढ़ाएं और एक आचमनी जल छोड़ें
                   यज्ञोपवीत मंत्र
नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम्।
उपवीतं मया दत्ता गृहाण परमेश्वर।। इसके बाद भगवान को चंदन लगाएं
                चंदन लगाने का मंत्र
श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढयं सुमनोहरम्।
विलेपनं सुरश्रेष्ठ! चन्दनं प्रतिगृह्मताम्।।
इसके बाद भगवान को अक्षत (चावल) चढ़ाएं
        अक्षत (चावल) चढ़ाने का मंत्र
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुड्कुमाक्ताः सुशोभिताः।
मया निवेदिता भक्त्याः गृहाण परमेश्वर।।
इसके बाद भगवान को पुष्पमाला या पुष्प अर्पित करें
      पुष्प माला (पुष्प) चढ़ाने का मंत्र
माल्यादीनी सुगन्धीनि मालत्यादीनी वै प्रभो।
मयाहृतानि पुष्पाणि पूजर्थि प्रतिगृह्मताम्।।
इसके बाद भगवान को हरि हरि दूव चढ़ाएं
               दूव चढ़ाने का मंत्र
दुर्वाड्कुरान सुहरितानमृतान मंगलप्रदान।
आनीतांस्तव पुर्जार्थ गृहाण गणनायक।।
इसके बाद भगवान को सिन्दूर चढ़ाएं
            सिन्दूर चढ़ाने का मंत्र
 सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम्।
शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्मताम्।।
इसके बाद भगवान को अबीर गुलाल चढ़ाएं
       अबीर (गुलाल) चढ़ाने का मंत्र
अबीरं च गुलालं च हरिद्रादिसमन्वितम्।
नाना परिमलं द्रव्यं गृहाण परमेश्वर।।
इसके बाद भगवान को धूप दिखाएं
           धूप दिखाने का मंत्र
वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढयो गन्ध उत्तमः।
आनेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्मताम्।।
इसके बाद भगवान को दीप दिखाएं और अपने हाथों को धो लें,
               दीप दिखाने का मंत्र
भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने।
त्राहि मां निरयाद् धोराद् दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते।।
दीप दिखाने के बाद भगवान को भोग लगाएं और एक आचमनी जल छोड़ें
               भोग लगाने का मंत्र
शर्कराखण्ड्खद्यानि दधिक्षीरघृतानि च।
आहारं भक्ष्यभोज्य च नैवेद्यं प्रतिगृह्मताम।।
भोग लगाने के बाद भगवान को ऋतुफल समर्पित करें और एक आचमनी जल छोड़ें
             ऋतुफल चढ़ाने का मंत्र
इदं फलं मया देव स्थापितं पुरतस्तव।
तेन में सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि।।
इसके बाद भगवान को करोद्धर्तन चंदन लगाएं
                  करोद्धर्तन चंदन
चन्दनं मलयोद्भूतं कस्तूर्यादिसमन्वितम्।
करोद्धर्तनकदेव गृहाणपरमेश्वर।।
इसके बाद भगवान को पान सुपारी लौंग इलायची आदि अर्पित करें
            ताम्वूल चढ़ाने का मंत्र
पूगीफलं महादिव्यं नागवल्लीदलैर्यतम्।
एलादिचूर्णसंयुक्तं ताम्वूलं प्रतिगृह्मताम्।।
इसके बाद भगवान को दक्षिणा अर्पित करें
             दक्षिणा चढ़ाने का मंत्र
ॐ हिरण्यगर्भ समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्।
स दाधार पृथ्वी द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम्।।
इसके बाद भगवान से क्षमा प्रार्थना करें क्षमा प्रार्थना के लिए मैंने पिछले अंक आरती पुष्पांजलि मैं बताया है आप वहां से इन मंत्रों को बोल सकते हैं ।

शुक्रवार, 4 मार्च 2022

हवन विधि (होम) Havan Vidhi (Hom)

साथियों आज के इस अंक में हम आपको श्री सत्यनारायण व्रत कथा के उपरांत होने वाले हवन विधि के बारे में विस्तृत जानकारी देंगे तो आइए शुरू करते हैं श्री सत्यनारायण व्रत कथा हवन (होम) विधि
श्री सत्यनारायण व्रत कथा हवन विधि
हवन के लिए निम्नलिखित मंत्र से संकल्प करें 
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: पूर्वोच्चारितग्रहगणगुण विशेषण विशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ अमुकगोत्र: अमुकोऽहं कृतस्य श्रीसत्यनारायणव्रतकथाकर्मण:साङ्गतासिद्ध्यर्थ यथोपस्थितंसामग्रीभि: होमं करिष्ये।
इसके बाद वेदी का परिमार्जन करें कुशा से वेदी को साफ करें इसके बाद वेदी के ऊपर गोबर से थोड़ा लीप दें इसके बाद वेदी में सूरवे से पश्चिम से पूर्व की ओर तीन रेखाएं खींचीए पहली रेखा दक्षिण की ओर दूसरी बीच में और तीसरी उत्तर की ओर खींचना है तीनों रेखाओं से थोड़ी थोड़ी मिट्टी लेकर ईशान कोण में फेंके वेदी को थोड़ा-थोड़ा जल से सींचे, इसके बाद अग्नि जलाकर किसी पात्र में लेकर अग्नि को घुमा कर नेरित्य कोण में थोड़ा रख दें इसके बाद निम्न मंत्र बोलते हुए अग्नि को वेदी में स्थापित कर दे।
ॐ अग्रिं दूतों पुरो दद्ये हव्यवाहमुप व्रवे।
देवा२ आ सादयादिह।
भगवान अग्नि देवता का ध्यान करें
अग्रिंप्रज्वलितं वन्दे जाते दूहुताशनम्।
सुवर्णवर्णममलं समिद्धं सर्वतोमुखम्।।
ॐ वलवर्धननामाग्नये नमः इस मंत्र से गंध अक्षत पुष्प आदि से अग्नि का पूजन करें इसके बाद एक पात्र में जल लेकर उत्तर दिशा में रख दें और जब आप घी की आहुति दें तो सूरवे में बचा हुआ घी उस पात्र में छोड़ दे सबसे पहले घी से पांच आहुति दें।
ॐ प्रजापतये स्वाहा, इदं प्रजापतये न मम।
ॐ इन्द्राय स्वाहा, इदं इन्द्राय न मम।
ॐ आग्नेय स्वाहा, इदं आग्नेय न मम।
ॐ सोमाय स्वाहा, इदं सोमाय न मम।
इसके
बाद सबसे पहली वराह आहुति भगवान श्री गणेश जी की लगती है तो निम्न मंत्र से आहुति दें
ॐ गणानांत्वा गणपति गुंग हवामहे प्रियाणांत्वा प्रियपति गुंग हवामहे,
निधीनांत्वा निधिपति गुंग हवामहे
वसोमम अहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्।। स्वाहा
ॐ अम्बे अम्बिकेऽम्वालिके न मा नयति कश्चन।
ससस्त्यश्वक: सुभद्रिकांकाम्पील वासिनीम्।। स्वाहा
इसके बाद हवन सामग्री से नवग्रह देवताओं को आहुति दें।
ॐ आदित्याय स्वाहा
ॐ सोमाय स्वाहा
ॐ भौमाय स्वाहा
ॐ वुधाय स्वाहा
ॐ बृहस्पतये स्वाहा
ॐ शुक्राय स्वाहा
ॐ शनैश्चराय स्वाहा
 ॐ राहवे स्वाहा
ॐ केतवे स्वाहा।
श्री सत्यनारायण कथा कर्म के प्रधान देवता भगवान श्री सत्यनारायण है अतः प्रथम उनके  द्वादश अक्षर मंत्र  ओम नमो भगवते वासुदेवाय का 108 बार या यथाशक्ति मंत्र के बाद स्वाहा लगाकर आहुति दें इसके बाद अपने कुलदेवता इष्ट देवता के नाम की आहुति दें तथा बची हुई हवन सामग्री को एक साथ
ॐ अग्नये स्विष्टकृते स्वाहा,
इदं अग्नये स्विष्टकृते न मम।
इसके बाद नौ आहुति घी की लगती है
ॐ भू: स्वाहा, इदंअग्नये न मम
ॐ भुव: स्वाहा, इदं वायवे न मम
ॐ स्व: स्वाहा, इदं सुर्याय न मम
ॐ अग्रीवरुणाभ्यां स्वाहा, इदं अग्निवरुणाभ्यां न मम
ॐ अग्रीवरुणाभ्यां स्वाहा, इदं अग्निवरुणाभ्यां न मम
ॐ अग्नये स्वाहा, इदं अग्नये अपसे न मम
ॐ वरुणाय सविप्रे विष्णवे विश्वेभ्यो देवेभ्यो मरुभ्य: स्वकैभ्वश्च स्वाहा, इदं वरुणाय सविप्रे विष्णवे विश्वेभ्यो देवेभ्यो मरुभ्य: स्वकैभ्वश्च न मम
ॐ वरुणायादित्यायादित्ये स्वाहा, इदं वरुणायादित्यादित्ये न मम
ॐ प्रजापतये स्वाहा, इदं प्रजापतये न मम।
इसके बाद हवन की भभूति को अपने मस्तक गले कान आदि में लगाएं उसके बाद आरती करें पुष्पांजलि करें एवं भगवान का प्रसाद भक्तों में वितरण करें।


बुधवार, 2 मार्च 2022

आरती मंत्र

साथियों आज के इस अंक में हम आपको किसी भी पूजन में आरती के समय होने वाले आरती मंत्र, मंत्र पुष्पांजलि, क्षमा प्रार्थना, एवं परिक्रमा मंत्र के बारे में जानकारी देंगे।।
                  आरती मंत्र
ॐ इद गुं हवि: प्रजननं में अस्तु दशवीर गुं सर्वगण गुं स्वस्तये।
आत्मसनि प्रजा संधि पशुसनि लोकसन्यभयसनि।
अग्नि: प्रजां वहुलां में करोत्वन्नं पयो रे तो अस्मासु धत्त।।
ॐ आ रात्रि पार्थिव गुं रज: पितृरप्रायि धामभि:।
दिव: सदा गुं सि वृहती वि तिष्ठस आ त्वेषं वर्तते तम:।।
कदलिगर्भ सम्भूतं कर्पूरं तु प्रदीपितम्।
आरार्तिकहं कुर्वे पश्य में वर्षों भव।।
                  पुष्पांजली मंत्र
ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।
ये ह नाकं महिमान: सचन्त यत्र पूर्वे साध्या: सन्ति देवा:।।
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्म साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्म हे स में कामान कामकामाय मह्मं कामेश्वरी वैश्रवणो ददातु।।
कुवेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः।।
ॐ विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोवाहुरुत। 
विश्वासपात् सं वाहुभ्यां धमति सं पतत्रैर्धावाभूमि जनयन देव एक:।।
सेबन्तिका वकुल चम्पक पाटलाब्जै: पुन्नाग जाति करवीर रसाल पुष्पै:।।
बिल्व प्रवाल तुलसीदल मंजरीभि: त्वां पूजयामि जगदीश्वर मैं प्रसीद।।
नानासुगन्धिपुषृपाणि यथाकालोद्ववानि च पुष्पाञ्जलिर्मया दत्त गृहाण परमेश्वर।।
               क्षमा प्रार्थना मंत्र
आवाहनन्जानामि न जानामि तर्वाचनम्।
पूजा श्चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वर।।
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर।
यत्पूजितं मया देव परिपूर्ण तदस्तु में।।
                 परिक्रमा मंत्र
यानि कानि च पापानि जनमान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणा पदे पदे।।

सोमवार, 28 फ़रवरी 2022

श्री सत्यनारायण व्रत कथा (Shri Satyanarayan Vrat Katha)

आज के इस अंक में हम आपको सम्पूर्ण श्री सत्यनारायण व्रत कथा पूजन विधि बताएंगे। 
                   पूजन विधी
सर्वप्रथम पूर्वाभिमुख होकर बैठ जाए एवं निम्नलिखित मंत्र से आचमन करे
ॐ माधवाय नमः
ॐ केशवाय नमः
ॐ गोविन्दाय नमः
ॐ ऋषिकेशाय नमः इस मंत्र का उच्चारण करते हुए अपने हाथों को धो ले।
इसके बाद सम्पूर्ण पूजन सामग्री आदि को निम्न मंत्र से जल छिड़कते हुए पवित्र करे
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्ववस्थां गतोऽपिवा।
यः स्मेरत् पुण्डरीकाक्षं स वाहभ्यन्तरः शुचि।। 
इसके बाद स्वस्तीवाचन मंत्र मांगलिक श्लोक का पाठ करे,
इसके बाद संकल्प करे।
ऊँ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु अद्य ब्रम्हाणोऽहि द्वितीयपराधै श्री श्वेतवाराहकल्पै वैवस्वतमन्यन्तरेऽष्टाविंशतितमे
कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्वूद्वीपेभरतखण्डे भारतवर्षे
..स्थाने ....नामसंवत्सरे ...ऋतौ....मासे
....पक्षे..तिथौ....दिने...काले...गौत्रः...
श्री सत्यनारायणस्य पूजन कथा श्रृवणाख्य कर्म करिष्ये।
इसके बाद गणेश अंबिका नवग्रह पूजन करें। फिर भगवान शलिग्राम का पूजन करें।
सर्व प्रथम हाथ में अक्षत पुष्प लेकर भगवान श्री सत्यनारायण  का इस मंत्र को बोलते हुए ध्यान करें 
नमो‌‌ऽस्त्वनन्ताय सहस्त्रमूर्तये सहस्त्रपाटाक्षिशिरोरूवाहवे 
सहस्त्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते
सहस्त्रकोटी युगघारिणे नमः।
श्री सत्यनारायणाय नमः ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि। (भगवान के सामने पुष्प छोड़ दें)
इसके बाद हाथ में पुष्प आदि लेकर भगवान श्री सत्यनारायण का आवाहन करें
आगच्छभगवन देव स्थानेचात्र स्थिरो भव।
यावत पूजां करिष्यामि तावत् त्वं संनिधौ भव।।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
आवाहनार्थे पुष्पों समर्पयामि।
(आवाहन के लिए पुष्प चढ़ाएं)
इसके बाद भगवान श्री सत्यनारायण को पुष्पों का आसन दें।
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः।
आसनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि (आसन के लिए पुष्प समर्पित करें)
फिर भगवान के पैरों को जल से धोए
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः।
पादयो: पाधं समर्पयामि।
इसके बाद फिर भगवान के ऊपर जल छिड़के, भगवान को अर्घ्य दें।
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः।
हस्तयोअघ्र्य समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को आचमन के लिए जल चढाएं।
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः।
आचमनीयं एवं समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को शुद्ध जल से स्नान कराएं।
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः।
स्न्नानीय जलं समर्पयामि।
भगवान को दूध से स्नान कराएं
श्री सत्यनारायणाय नमः।
पय‌‌: स्नान समर्पयामि। इसके बाद भगवान को शुद्ध जल से स्नान कराएं।
इसके बाद भगवान को दही से स्नान कराएं।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
दधिस्नानं समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को शुद्ध जल से स्नान कराएं।
इसके बाद भगवान को घी से स्नान कराएं। 
श्री सत्यनारायणाय नमः।
घृतस्न्नानं समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को शुद्ध जल से स्नान कराएं।
इसके बाद भगवान को शहद से स्नान कराएं।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
 मधुस्न्नानं समर्पयामि।
के बाद भगवान को शुद्ध जल से स्नान
कराएं।
उसके बाद भगवान को शक्कर से स्नान कराएं।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
शर्करास्न्नानं समर्पयामि।
भगवान को पुनः शुद्ध जल से स्नान कराएं।
इसके बाद भगवान को पंचामृत से स्नान कराएं।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
 पंचामृतस्न्नानं समर्पयामि।
इसके बाद पुनः भगवान को शुद्ध जल से स्नान कराएं।
इसके बाद भगवान को गंधोदक से स्नान कराएं।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
गन्धोदकस्न्नानं समर्पयामि।
इसके बाद पुनः भगवान को शुद्ध जल से स्नान कराएं।
इसके बाद भगवान को वस्त्र चढ़ाएं।
 और एक आचमनी जल चढाएं।
ओम श्री सत्यनारायणाय नमः।
वस्त्रंसमर्पयामि।
 आचमनीयं जलं समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को उप वस्त्र चढ़ाएं।
और एक आचमनी जल चढाएं।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
उपवस्त्रं समर्पयामि।
आचमनीयं जलं समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को यज्ञोपवीत चढ़ाएं।
इसके बाद एक आचमनी जल चढ़ाएं।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
यज्ञोपवीतं समर्पयामि।
आचमनीयं जलं समर्पयामि।
भगवान को चंदन लगाएं।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
 चंदनम समर्पयामि।
चंदन लगाने के बाद भगवान को स्वेत तिल अर्पित करें।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
श्वेततिलान समर्पयामि।
फिर भगवान को पुष्प या पुष्प माला अर्पित करें।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
पुष्पम पुष्पमाला च समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को तुलसीदल अर्पित करें
श्री सत्यनारायणाय नमः।
तुलसीदलं तुलसीमञ्जरी च समर्पयामि।
के बाद भगवान को हरी दुव चढ़ाएं
श्री सत्यनारायणाय नमः।
दुर्वाकुरान समर्पयामि।
उसके बाद भगवान को आभूषण समर्पित करें।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
अलड्करणार्थे आभूषणानि समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को इत्र अर्पित करें।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
सुगन्धिततैलादिद्रव्यं समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को धूप अर्पित करें।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
धूपमाघ़ापयामि।
के बाद भगवान को दीप दिखाएं
श्री सत्यनारायणाय नमः।
दीपं दर्शयामि।
द्वीप दिखाने  के बाद अपने हाथों को धो लें।
इसके बाद भगवान को तुलसीदल डालकर भोग लगाएं। और एक आचमनी जल छोड़ें।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
नैवेधं निवेदयामि।
 आचमनीयं जलं समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को पांच वार जल छोड़ें।ॐ प्रणाय स्वाह:
ॐ अपानाय स्वाहा:
ॐ व्यानाय ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंस्वाहा:
ॐ उदानाय स्वाहा:
ॐ समानाय स्वाहा:
इसके बाद भगवान से प्रार्थना करें।
त्वदीयं वस्तु गोविन्दतुभ्यमेवसमर्पये।
गृहाण सुमुखोभूत्वा प्रसीद परमेश्वर।।
इसके बाद भगवान को ऋतुफल समर्पित करें और एक आचमनी जल छोड़ें।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
अखण्डऋतुफलं समर्पयामि।
फलान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को ताम्बूल (पान लौंग इलायची) आदि अर्पित करें।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
एलालवंगपूगीफलयुतं ताम्वूलं समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को द्रव्य दक्षिणा अर्पित करें।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
द्रव्यदक्षिणां समर्पयामि।
 इसके बाद श्री सत्यनारायण से प्रार्थना करें कि हे प्रभु हमने यथाशक्ति आपका पूजन किया है इसे स्वीकार करें एवं हमारे पूजन में अगर कोई त्रुटि हो तो उसे क्षमा करें।
सशड्खचक्रं सकिरीटकुण्डलं
सपीतवस्त्रं सरसीरुहेक्षणम्।
सहारवक्ष: स्थलकौस्तुभश्रियं
नमामि विष्णु विरसा चतुर्भुजम्।।
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्यनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकांतं कमलनयनं योगिभिध्यानगम्यं
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
प्रार्थना समर्पयामि।
इसके बाद श्री सत्यनारायण व्रत कथा पुस्तक का पूजन कर कथा श्रवण करें कथा के बाद हवन पुष्पांजलि क्षमा प्रार्थना करें इसके बाद प्रसाद वितरण करें।

बुधवार, 23 फ़रवरी 2022

ध्यान मंत्र (Dhyan Mantra)

             १ श्री गायत्री ध्यानम
बालां विद्यां तु गायत्रीं लोहितां चतुराननाम्।
रक्ताम्बरद्वयोपेतामक्षसूत्रकरां तथा।।
कमण्डलुधरां देवी हंसवाहनसंस्थितां।
ब्राह्मणीं ब्रहम्दैवत्यां ब्रह्मलोकनिवासिनीम्।।
मन्त्रोणावाध्येद्देवीमायान्तीं सुर्यमण्डलात्।
               २ श्री भैरव ध्यानम्
करकलितकपालः कुंडली दंडपाणिः।
तरुणातिमिरनीलो व्याल यज्ञोपवीती।।
क्रतुसमयसपर्या विघ्नविच्छेद हेतुः।
जयति वटुकनाथः सिद्धिदःसाधकानाम्।।
              ३ श्री दुर्गा ध्यानम्
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोखिलस्य।
प्रसीद विश्वेश्वरी पाहि विश्वंत्वमीश्वरी देवी
चराचरस्य।।
              ४ श्री राम ध्यानम्
नीलाम्वुजश्यामलकोमलांगं सीतासमारोपित बामभागम्।
पाणौ महासायकचारूचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम्।।
              ५ श्री हनुमंत ध्यानम
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रयं वुद्धिमतां वरिष्ठं।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपधे।।

शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

मांगलिक श्लोक(ManglikShlok)

साथियों प्रत्येक शुभ पूजन में स्वस्तिवाचन औऱ मांगलिक श्लोक का अत्यधिक महत्व
होता है इन दोनों के बिना कोई भी शुभ पूजन पूर्ण नही माना जाता इसलिए प्रत्येक शुभ पूजन में स्वस्तिवाचन मंत्र के उपरांत मांगलिक श्लोक बोले जाते हैं, आज हम आपको मांगलिक श्लोक का पाठ लेकर आए हैं,
             ।। मांगलिक श्लोक।।
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः।
लम्वोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः।।१।।
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचद्रो गजाननः।
द्वादशैतानि नामांनि यः पठेच्छृणुयादपि।।२।।
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते।।३।।
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुभुर्जम्।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशानवतये।।४।।
अभिप्सितार्थ सिद्धार्थ पूजितो यः सुरासुरैः।
सर्वविघ्नहरस्तस्मै गणाधिपतये नमः।।५।।
सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वथिसाधिके।
शरण्ये त्रयंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।६।।
सर्वदा सर्वकार्येषु नास्ति तेषां मङ्गलं।
येषां हिर्दयस्थो भगवान मङ्गलायतनो हरि।।७।।
तदेव लग्नं सुदिनं तदेव ताराबलं चन्द्रबलं तदेव।
विद्याबलं देवबलं तदेव लक्ष्मीपति तेऽड्घ्रियुगं स्मरामि।।८।।
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः।
येषांमिन्दीवरश्यामो ह्रदयस्थो जनार्दनः।।९।।
यत्र योगेश्वर कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।
तत्र श्री विजयो भूतिध्रुवा नीतिर्मतिर्मम।।१०।।
सर्वेष्वारम्भ कार्येषु त्रयस्त्रिभुवेन्श्वराः।
देवा दिशन्तु नः सिद्धिं ब्रम्हेशान जनार्दनः।।११।।
विश्वेशं माधवं ढुण्डिं दण्डपाणिं च भैरवम्।
वन्दे काशी गुहां गङ्गा भवानी मणिकर्णिकाम्।।१२।।
श्रीमन्महागणाधिपतये नमः। लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः।
उमामहेश्वराभ्यां नमः।
वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः।
शचीपुरन्दराभ्यां नमः।
मातृपितृचरणकमलेभ्यो नमः।
इष्टदेवताभ्यो नमः।
कुलदेवताभ्यो नमः।
ग्रामदेवताभ्यो नमः।
वास्तुदेवताभ्यो नमः।
स्थानदेवताभ्यो नमः।
सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः।
सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः।
ॐ सिद्धिवुद्धिसहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः।

शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2022

सम्पूर्ण स्वस्तिवाचन मंत्र (svastivachan mantra)

साथियों आज हम आपको बताने जा रहे हैं सम्पूर्ण स्वस्तिवाचन मंत्र जिसके बिना हर शुभ पूजन अधूरा माना जाता है, और पूजन का पूर्ण फल प्राप्त नही होता, इसलिए हर शुभ पूजन में स्वस्तिवाचन का पाठ होना अति आवश्यक है।
              ।।स्वस्तिवाचन मंत्र।।
आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उभ्दिदः।
देवा नो यथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवे दिवे।।१।।
देवानां भद्रा सुमतिऋजयतां देवानां गुंग रातिरभि नो निवर्तताम्।
देवानां गुंग सख्यमुसेदिमा वयं देवा ने आयुः प्रतिरन्तु जीवसे।।२।।
तान्पूर्वया निविदा हूमहे वयं भगं मित्रमदिति दक्षमस्त्रिधम्।
अर्यमणं वरुण गुंग सोममश्विना सरस्वती नः सुभगा मयस्करत्।।३।।
तन्नो वातो मयोभु वातु भेषजं तन्माता पृथ्वी तत्पिता द्यौः।
तद् ग्रावाणः सोमसुतो मयोभुवस्तदश्विना श्रृणुतं धिष्ण्या युवम्।।४।।
तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पति धियञ्ञिवमवसे हूमहे वयम्।
पूषा नो यथा वेदसामसद् वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये।।५।।
स्वस्ति न इन्द्रो वृध्दश्रवाः स्वस्ति नः पुषा विश्ववेदाः स्वस्ति नस्ताक्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।।६।।
पृषदश्वा मरुतः पृन्श्रिमातरः शुभं यावानो विदधेषु जग्मयः।
अग्निजिह्म मनवः सूरचक्षसो विश्व नो देवा अवसागमन्निह।।७।।
भद्रं कर्णेभिः श्रृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।
स्थिरैरङ्गेस्तुष्टुवा गुंग सस्तनूभिव्-र्यशेमहि देवहितं यदायुः।।८।।
शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चका जरसं तनूनाम।
पुत्रसो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तो।।९।।
अदितिद्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्रः विश्वे देवा अदितिः पञ्च् जना अदितिर्जातमदितिजीनित्वम्।।१०।।
द्यौः शान्तिन्ततरिक्ष गुंग ॐ शान्तिः पृथिवी शान्तिराषः शान्तिरोषधयः शान्ति।
वनस्पतयः शान्तिविश्वे देवाः
शान्तिब्रम्ह शान्तिः सर्व गुंग शान्ति शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि।।११।।
यतो यतः समीहसे ततो नो अभयं कुरु।
शं नः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः पशुभ्यः।।१२।।
ॐ गणानांत्वा गणपति गुंग हवामहे प्रियाणांत्वा प्रियपति गुंग हवामहे निधीनांत्वा निधिपति गुंग हवामहे वसोमम आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्।।
ऊँ अम्बे अम्विकेऽम्वालिके न मा नयति कश्चन।
ससस्त्यश्वकः सुभाद्रिकांकाम्पीलवासिनीम्

गुरुवार, 3 फ़रवरी 2022

शिवतांडव स्त्रोतरम (ShivTandavStrotram)

शिवतांडव स्त्रोतरम बोलना सीखे सरल तरीके से।।

जटा-टवी-गलज्-जल-प्रवाह-पावि-तस्थले
गलेऽव-लम्व्य लम्बितां भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम्।
डमड्-डमड्-डमड्-डमन्-निनाद-वड्-डमर्वयं-
चकारचण्ड-ताण्डवं तनोतु नः शिवःशिवम् ।।१।।
जटा-कटाह-सम्भ्रम-भ्रमन्-निलिम्पनिर्झरी 
विलोल-विचिवल्लरी-विराज-मानमूधनि।
धगद्-धगद्-धगज्-ज्वलल्-ललाट-पट्टपावके
किशोर-चन्द्र-शेखरे रत़िःप्रति-क्षणं.मम।।२।।
धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-विलास-बन्धुबन्धूर
स्फुरद्-दिगन्त-सन्तति-प्रमोद-मानमानसे।
कृपा-कटाक्ष-धोरणी-निरूध्द-दुर्धरा-पदि
क्वचिद्-दिगम्वरे मनो विनोद-मेतुवस्तुनि।।३।।
जटा-भुजङ्ग-पिङ्गल-स्फ़ूरत-फणामणि-प्रभा-
कदम्ब-कुड़कुम-द्रव-प्रलिप्त दिग्वधू-मुखे।
मदान्ध-सिन्धुर-स्फ़ूरत-त्वगुत्तरीय-मेदुरे
मनो विनोद-मभूतं विभर्तु भूत भर्तरि।।४।।
सहस्त्र-लोचन-प्रभृत्य-शेष-लेख-शेखर
प्रसून-धूलि-धोरणी-विधु-सराधि-पीठभू:।
भुजङ्ग-राज-मालया निबद्ध-जाट-जुटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोर-बंधु-शेखरः।।५।।
ललाट-चत्वर-ज्वलद्-धन्ञ्नय-स्फुलिङ्गभा-
निपीत-पञ्च-सायकं नमन्-निलिम्प-नायकम्
सुधा-मयूख-लेखया.विराज-मान-शेखरं
महा-कपालि सम्पदे शिरो जटाल-मस्तुनः।।६।।
कराल-भाल-पट्टीका-धगद्-धगद्-धगज्-ज्वलद्
धन्ञ्नया-हती-कृत-प्रचण्ड-पञ्च-सायकं।
धरा-धरेन्द्र नन्दिनी-कुचाग्र-चित्र-पत्रक-
प्रकल्प-नेक-शिल्पिनि-त्रिलोचने-रतिर्मम।।७।।
नवीन-मेघ-मण्डली-निरूद्ध-दुर्धर-स्फुरत्-
कुह-निशीधिनी-तमः-प्रबन्ध-बद्ध-कन्धरः।
निर्लिम्पनिर्झरी-धरस-तनोत-कृत्ती-सिन्धुरः
कला-निधान-बन्धुरःश्रियं जगद्-धुरन्धरः।।८।।
प्रफुल्ल-नील-पड्कज-प्रपञ्च-कालिम-प्रभा-
वलम्वि-कण्ठ-कन्दली-रूचि-प्रवद्ध-कन्धरम्।
स्मरच्छिदं-पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छि-दान्ध-कच्छिदं तमन्त-कच्छिदंभजे।।९।।
अखर्व-सर्व-मङ्गला-कला-कदम्बमञ्जरी
रस-प्रवाह-माधुरी-विजम्भृणा-मधुन्व्रतम।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्त-कान्ध-कान्तकं तमन्त-कान्तकंभजे।।१०।।
जयत्-वदभ्र-विभ्रम-भ्रमद-भुजङ्गमश्वस
द्विनिर्गमत-क्रम-स्फुरत्-कराल-भाल-हव्य-वाट
धिमिद्-धिमिद्-धिमिद्-ध्वनन-तुङ्ग-मङ्गल-
ध्वनि-क्रम-प्रवर्तित-प्रचण्ड-ताण्डवः शिवः।।११।।
दृषद्-विचित्र-तल्पयोर्-भुजङ्ग-मौक्ति-कस्त्रजोर-गरिष्ठ-रत्न-लोष्ठयोःसुहृद-विपक्ष-पक्ष-यो:।
तृणारविन्द-चक्षुषोःप्रजा-मही-महेन्द्रयोः
सम-प्रवृत्ति-कः कदा सदा-शिवंभजाम्यहम्।।१२।।
कदा निलिम्प-निर्झरी-निकुञ्ज-कोटरेवसन
विमुक्त-दुर्मतीः सदा शिरः स्थ-मञ्जलिवहन्।
विलोल-लोल-लोचनो ललाम-भाल-लग्नकः
शिवेति मन्त्र मुच्चरन् कदा सुखीभवाम्यहम्।।१३।।
इमं हि नित्य-मेव-मुक्त-मुत्त-मोत्तमस्तवं
पठन् स्मरन् ब्रुवन्-नरो विशुद्धि-मेतिसन्ततम्।
हरे गुरौ सुभक्ति-मासु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशड्करस्यचिन्तनम्।।१४।।
पूजा-वसान-समये दश-वक्त्र-गीतं
यः शम्भु-पूजन-परं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथ-गजेन्द्र- तुरङ्ग-युक्तां
लक्ष्मी सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भूः।।१५।।


शुक्रवार, 13 अगस्त 2021

दानवीर

               ।। दानवीर कर्ण ।।

महाभारत के प्रमुख पात्रो में से एक थे दानवीर कर्ण, कर्ण महारानी कुंती के ज्येष्ठ पुत्र थे, महारानी कुंती को स्वेच्छा से पुत्र प्राप्त करने का वरदान प्राप्त था, जिसका परीक्षण करने के लिए कुंती ने विवाह से पूर्व ही सुर्य देव से पुत्र प्राप्ति का आवाहन किया था और परिणम स्वरूप सूर्यदेव ने उन्हें एक तेजस्वी पुत्र प्रदान किया किन्तु लोकनिंदा के भय के कारण उन्होंने उसे टोकरी में रखकर नदी में प्रवाहित कर दिया जिसे एक सूद्र दम्पति ने पाला पोसा, कर्ण ने भगवान परसुराम जी से विद्या प्राप्त की, उन्हें जन्म के साथ ही सूर्यदेव ने कुण्डल और कवच प्रदान किया था और वरदान दिया था कि जब तक इस बालक के शरीर पर यह कुण्डल और कवच रहेंगे इसे कोई युद्ध में परास्त नही कर सकेगा, इस बात से देवराज इंद्र काफी चिंतित थे चुकि कुंती के पांच पुत्र अपने अधिकार और धर्म की रक्षा के लिए कौरवों से युद्ध लड़ने वाले थे और कर्ण कौरवो की ओर से युद्ध लड़ने बाले थे, अतः कर्ण को हराये विना विजय प्राप्त नही की जा सकती थी। और कर्ण ने अर्जुन का वध करने का प्रण ले रखा था, अर्जुन कुंती को देवराज इंद्र के द्वारा प्रदान किये गए थे। कर्ण की एक विशेषता थी कि सुबह पूजन के उपरांत कोई भी याचक उनके यहाँ से कभी खाली हाथ नही लौटता था। इसलिए उन्हें दानवीर कहां जाता था। उनकी इसी विशेषता का लाभ उठाकर देवराज इंद्र ने उनसे कुण्डल और कवच दान में मांग लिए जिसे उन्होंने यहाँ जानते हुए भी की कुण्डल और कवच के बिना उनकी मृत्यु निश्चित है फिर भी सहर्ष दान कर दिए, जिससे प्रशन्न होकर देवराज ने उनसे वरदान मांगने के लिए कहा लेकिन उन्होंने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि आज आप मेरे यहाँ याचक बनकर आये हैं, और दान देकर कुछ माँगना तो व्यापार हुआ। फिर भी देवराज इंद्र ने उन्हें एक दिव्यास्त्र प्रदान किया। यही नही माता कुंती को अर्जुन को छोड़कर शेष चार पुत्रो को न मारने का वचन भी दिया था।
            
                 ।। ऋषि दधीचि ।।

अथर्वा ऋषि के पुत्र महाऋषि दधीचि का स्थान दानियों में कौन भूल सकता है जिन्होंने संसार के हितार्थ अपनी अस्थियो को दान कर दिया था। देवासुर संग्राम में जब देवराज इंद्र का वज्र नष्ट हो गया, और असुर देवताओं पर भारी पढ़ने लगे, तब देवताओं ने ब्रम्हा जी की शरण मे जाकर सहायता मांगी,और असुर किस प्रकार पराजित होंगे यहाँ जानने की इच्छा प्रगट की तब ब्रम्हा जी ने बताया कि महाऋषि दधीचि अगर अपनी अस्तिया दान कर दे तो उनका वज्र बनाकर असुरो को परास्त किया जा सकता है। देवराज इंद्र बिना विलम्ब किये महाऋषि दधीचि के पास पहुँच गए और उन्हें सारा वृतांत सुनाया। महाऋषि ने अपने शरीर को भस्म करके सँसार के हितार्थ अपनी अस्थियों का दान कर दिया।

             ।। राजा दिलीप ।।

ब्रम्हरिषि वाल्मीकि द्वारा रचित महाकाव्य
के अनुसार राजा दिलीप के कोई संतान नही थी इससे दुखी होकर वह गुरु वशिष्ठ जी के पास संतान प्राप्ति का उपाय जानने के पहुचे तब वशिष्ठ जी ने कहा राजन आपसे गौ ब्राम्हण का अनजाने में ही अपमान हुआ है इस कारण आप के कोई संतान नही है, अगर आप मेरी गाय जो कि कामधेनु की पुत्री है जिसका नाम है नन्दनी की सेवा करो और ये प्रसन्न हो जाये तो आपको संतान प्राप्त हो सकती है। राजा नंदनी की सेवा में लग गए। एक दिन जंगल मे उसे एक सिंह ने दबोच लिया राजा अस्त्र शस्त्र चलने में असमर्थ हो गए। तब उन्होंने सिंह से प्रार्थना की की आप मेरी नन्दनी को छोड़ दीजिए पर सिंह नही माना तब उन्होंने सिंह से कहा अगर आप चाहे तो मुझे खा ले किन्तु मेरी गौ माता को मुक्त कर दे जिसपर सिंह तैयार हो गया राजा ने अपने आपको सिंह को समर्पित कर दिया और गाय को मुक्त कर दिया, जैसे ही राजा सिंह के पास गए सिंह अंतर्ध्यान हो गया। तब नन्दनी बोली राजन यह सब मेरी माया थी मैं आपकी सेवा और समर्पण से अति प्रसन्न हूँ और आपको एक प्रतापी पुत्र प्राप्ति का वरदान देती हूँ। और यही प्रतापी पुत्र राजा रघु के नाम से प्रसिद्ध हुए जिनके नाम से राजा दिलीप के वंश का नाम रघुवंश हुआ।
राजा हरिश्चंद्र
मोरध्वज
आदि ने भी अपने द्वारा दिये गए दान से प्रसिद्धि प्राप्त की।

गुरुवार, 12 अगस्त 2021

गुरु भक्त

           ।। गुरु भक्त एकलव्य ।।

महाभारत में एक पत्र थे एकलव्य जिनकी गुरु भक्ति प्रसिद्ध है, जब गुरु द्रोणाचार्य जी ने यह कहकर एकलव्य को शिक्षा देने से मना कर दिया था, की वह केवल क्षत्रिय राजकुमारों को ही शिक्षा प्रदान करते हैं।
तब एकलव्य ने मन ही मन गुरु द्रोणाचार्य को गुरु मानकर उनकी प्रतिमा बना कर विद्याअध्यन आरम्भ कर दिया और एक सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बन गए, लेकिन जब गुरु द्रोणाचार्य ने गुरुदीक्षा में दाये हाथ का अंगूठा मांग लिया तो यह जानते हुए भी की अंगूठे के बिना उनकी विद्या का कोई मोल नही रह जायेगा फिर भी उन्होंने अपने दाये हाथ का अंगूठा गुरुदीक्षा में देकर गुरुभक्ति का एक अनूठा उदहारण प्रस्तुत किया था।

   ।। स्वामी विवेकानंद जी की गुरुभक्ति ।।

स्वमी विवेकानंद जी के गुरु रामकृष्ण परमहंस जी का विवेकानंद जी पर विशेष स्नेह था। वह कैंसर से पीड़ित थे, उनके बाकी के शिष्य उनसे दूरी बनाने लगे, उनके गले से पस आदि निकलते तो कोई भी शिष्य उसे साफ नही करता, नाही कोई उनके पास जाता यह देखकर विवेकानंद जी को काफी पीड़ा हुई और उन्होंने, गुरु रामकृष्ण परमहंस जी के गले से निकली पस को उठा कर पी लिया था, ऐसी थी स्वमी विवेकानंद जी की गुरु के प्रति श्रद्धा।

।। वीर शिवाजी महाराज की गुरुभक्ति।।

वीर शिवाजी महाराज के गुरु थे समर्थ रामदास जी, वे शिवजी महाराज की वीरता और प्रतिभा तथा गुरुभक्ति को पहचानते थे तथा उनके इन्ही सद्गुणों के कारण वह बालक शिवा पर विशेष स्नेह रखते थे, उनकी यह बात बाकी शिष्यों को अच्छी नही लगती थी, एक दिन उन्होंने गुरुदेव से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बोला कि समय आने पर बताऊगा, एक दिन गुरु रामदास जी के पेट मे दर्द हुआ, सभी शिष्यों ने उपचार के लिए चलने को कहा तो गुरु बोले इसका एक ही उपचार है अगर कोई मुझे शेरनी का दूध लकार दे तो उसका सेवन करते ही मेरा दर्द ठीक हो जाएगा परंतु कोई भी शिष्य तैयार नही हुआ, परन्तु जैसे ही शिवजी महाराज को पता चला वह दौड़े दौड़े गुरु के पास आये, उनसे सब हाल जाना और तुरंत ही निकल पड़े जंगल की ओर और शेरनी का दूध लाकर गुरुदेव को दिया, सभी आश्चर्य से वीर शिवाजी की ओर देख रहे थे, गुरुदेव समर्थ रामदास जी ने वाकी शिष्यों से कहा शायद तुम्हे तुम्हारे प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा।

बुधवार, 11 अगस्त 2021

ब्राम्हण की महिमा

सनातन धर्म मे ब्राम्हण को गुरु का स्थान दिया जाता, एक सच्चा ब्राम्हण अपने कर्मों के द्वारा समाज को अच्छे रास्ते पर चलने की प्रेरणा देता है, प्राचीन काल से ही ब्राह्मण का कार्य विद्या प्राप्त करना और विद्या प्रदान करना रहा है, ब्राम्हण संसार की भलाई के लिए जप तप यज्ञ अनुष्ठान आदि करते और करवाते आये हैं, यही कारण है कि भगवान भी ब्राम्हण से शिक्षा लेने के लिए लालायित रहते हैं, फिर चाहे भगवान श्री कृष्ण हो भगवान श्री राम या पांडव हो।
देवता हो या दानव सभी ब्राम्हणों का सम्मान करते थे। मैं अपने विवेक अनुसार कुछ पक्तियो के द्वारा ब्राम्हणों की महिमा के बारे में बताना चाहूंगा-
ब्राम्हण पैर पताल छलो, और
ब्राम्हण ही साठ हजार को जारो
ब्राम्हण सोख समुद्र लियो और
ब्राह्मण ही यदुवंश उजारो,
ब्राम्हण लात हनि हरि के तन
ब्राम्हण ही क्षत्रिय दल मारो
ब्राम्हण से जिन बैर करे कोई
ब्राम्हण से परमेश्वर हारो।।
अर्थात- ब्राम्हण ने अपने पैर से तीनों लोक नाप कर राजा बलि से मुक्त किया था, राजा बलि ने तीनों लोकों को अपने अधीन कर लिया था तब बामन भगवान ने बलि से तीन पग धरती दान में मांग ली थी और और दो पग में ही पृथ्वी और आकाश को नाप दिया था तथा तीसरा पग बलि के सिर पर रखकर उसका उद्धार किया था। अगस्त जी ने सारा समुद्र सोख लिया था। कपिल मुनि ने सगर जी के साठ हजार पुत्रो को श्राप देकर भस्म कर दिया था। तो परसुराम जी ने पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया था, दुर्वासा ऋषि ने यदुवंशीयो को श्राप देकर यदुवंश को नष्ट कर दिया था, तो वही भृगु ऋषि ने भगवान विष्णु के वक्ष स्थल पर अपने पैर से प्रहार कर दिया, इसलिय ब्राह्मणों से कभी विरोध नही करना चाहिए, ब्राम्हण को भूदेव भी कहा जाता है, ब्राम्हणों ने सनातन धर्म को एक सूत्र में बांधने का कार्य हमेशा से ही किया है, इसलिये ब्राह्मणों के हितार्थ भगवान भी पृथ्वी पर अवतार लेते रहे हैं।
वेद पुराणों और शास्त्रों ने भी ब्राह्मण की महिमा गायी है। रामचरित मानस में भी भगवान ने तुलसीदास जी के मुख से कहलवाया है, विप्र धेनु सुर संत हित लीन मनुज अवतार, निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गोपार।

विश्व मैं सर्वाधिक बड़ा, छोटा, लंबा एवं ऊंचा

सबसे बड़ा स्टेडियम - मोटेरा स्टेडियम (नरेंद्र मोदी स्टेडियम अहमदाबाद 2021),  सबसे ऊंची मीनार- कुतुब मीनार- दिल्ली,  सबसे बड़ी दीवार- चीन की ...