श्री सत्यनारायण व्रत कथा हवन विधि
हवन के लिए निम्नलिखित मंत्र से संकल्प करें
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: पूर्वोच्चारितग्रहगणगुण विशेषण विशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ अमुकगोत्र: अमुकोऽहं कृतस्य श्रीसत्यनारायणव्रतकथाकर्मण:साङ्गतासिद्ध्यर्थ यथोपस्थितंसामग्रीभि: होमं करिष्ये।
इसके बाद वेदी का परिमार्जन करें कुशा से वेदी को साफ करें इसके बाद वेदी के ऊपर गोबर से थोड़ा लीप दें इसके बाद वेदी में सूरवे से पश्चिम से पूर्व की ओर तीन रेखाएं खींचीए पहली रेखा दक्षिण की ओर दूसरी बीच में और तीसरी उत्तर की ओर खींचना है तीनों रेखाओं से थोड़ी थोड़ी मिट्टी लेकर ईशान कोण में फेंके वेदी को थोड़ा-थोड़ा जल से सींचे, इसके बाद अग्नि जलाकर किसी पात्र में लेकर अग्नि को घुमा कर नेरित्य कोण में थोड़ा रख दें इसके बाद निम्न मंत्र बोलते हुए अग्नि को वेदी में स्थापित कर दे।
ॐ अग्रिं दूतों पुरो दद्ये हव्यवाहमुप व्रवे।
देवा२ आ सादयादिह।
भगवान अग्नि देवता का ध्यान करें
अग्रिंप्रज्वलितं वन्दे जाते दूहुताशनम्।
सुवर्णवर्णममलं समिद्धं सर्वतोमुखम्।।
ॐ वलवर्धननामाग्नये नमः इस मंत्र से गंध अक्षत पुष्प आदि से अग्नि का पूजन करें इसके बाद एक पात्र में जल लेकर उत्तर दिशा में रख दें और जब आप घी की आहुति दें तो सूरवे में बचा हुआ घी उस पात्र में छोड़ दे सबसे पहले घी से पांच आहुति दें।
ॐ प्रजापतये स्वाहा, इदं प्रजापतये न मम।
ॐ इन्द्राय स्वाहा, इदं इन्द्राय न मम।
ॐ आग्नेय स्वाहा, इदं आग्नेय न मम।
ॐ सोमाय स्वाहा, इदं सोमाय न मम।
इसके
बाद सबसे पहली वराह आहुति भगवान श्री गणेश जी की लगती है तो निम्न मंत्र से आहुति दें
ॐ गणानांत्वा गणपति गुंग हवामहे प्रियाणांत्वा प्रियपति गुंग हवामहे,
निधीनांत्वा निधिपति गुंग हवामहे
वसोमम अहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्।। स्वाहा
ॐ अम्बे अम्बिकेऽम्वालिके न मा नयति कश्चन।
ससस्त्यश्वक: सुभद्रिकांकाम्पील वासिनीम्।। स्वाहा
इसके बाद हवन सामग्री से नवग्रह देवताओं को आहुति दें।
ॐ आदित्याय स्वाहा
ॐ सोमाय स्वाहा
ॐ भौमाय स्वाहा
ॐ वुधाय स्वाहा
ॐ बृहस्पतये स्वाहा
ॐ शुक्राय स्वाहा
ॐ शनैश्चराय स्वाहा
ॐ राहवे स्वाहा
ॐ केतवे स्वाहा।
श्री सत्यनारायण कथा कर्म के प्रधान देवता भगवान श्री सत्यनारायण है अतः प्रथम उनके द्वादश अक्षर मंत्र ओम नमो भगवते वासुदेवाय का 108 बार या यथाशक्ति मंत्र के बाद स्वाहा लगाकर आहुति दें इसके बाद अपने कुलदेवता इष्ट देवता के नाम की आहुति दें तथा बची हुई हवन सामग्री को एक साथ
ॐ अग्नये स्विष्टकृते स्वाहा,
इदं अग्नये स्विष्टकृते न मम।
इसके बाद नौ आहुति घी की लगती है
ॐ भू: स्वाहा, इदंअग्नये न मम
ॐ भुव: स्वाहा, इदं वायवे न मम
ॐ स्व: स्वाहा, इदं सुर्याय न मम
ॐ अग्रीवरुणाभ्यां स्वाहा, इदं अग्निवरुणाभ्यां न मम
ॐ अग्रीवरुणाभ्यां स्वाहा, इदं अग्निवरुणाभ्यां न मम
ॐ अग्नये स्वाहा, इदं अग्नये अपसे न मम
ॐ वरुणाय सविप्रे विष्णवे विश्वेभ्यो देवेभ्यो मरुभ्य: स्वकैभ्वश्च स्वाहा, इदं वरुणाय सविप्रे विष्णवे विश्वेभ्यो देवेभ्यो मरुभ्य: स्वकैभ्वश्च न मम
ॐ वरुणायादित्यायादित्ये स्वाहा, इदं वरुणायादित्यादित्ये न मम
ॐ प्रजापतये स्वाहा, इदं प्रजापतये न मम।
इसके बाद हवन की भभूति को अपने मस्तक गले कान आदि में लगाएं उसके बाद आरती करें पुष्पांजलि करें एवं भगवान का प्रसाद भक्तों में वितरण करें।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें