सोमवार, 15 मार्च 2021

माँ लक्ष्मी जी की आरती ( maa lakshmi ji ki aarti )

जय लक्ष्मी माता मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशदिन सेवत, मैया जी को निशदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता।।
ॐ जय लक्ष्मी माता-2
उमा,रमा,ब्राम्हणी, तुम ही जग माता।
सूर्य चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता।।
ॐ जय लक्ष्मी माता-2
दुर्गा रूप निरंजनी सुख सम्पति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, रिद्धि सिद्धि धन पाता।। ॐ जय लक्ष्मी माता-2
तुम पाताल निवासिनी तुम ही शुभदाता।
कर्म प्रभाव प्रकाशिनी भवनिधि की त्राता।।
ॐ जय लक्ष्मी माता-2
जिस घर मे तुम रहती, सब सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नही घबराता।।
ॐ जय लक्ष्मी माता-2
तुम विन यज्ञ न होवे, वस्त्र न कोई पाता।
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता।।
ॐ जय लक्ष्मी माता-2
शुभगुण मन्दिर सुन्दर, क्षीरोदधि जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नही पाता।।
ॐ जय लक्ष्मी माता-2
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई नर गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता।।
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशदिन सेवत, मैया जी को निशदिन सेवत।
हरि विष्णु विधाता।।

श्री रामायण जी की आरती ( shri ramayan ji ki aarti)

आरती श्री रामायण जी की ।
कीरति कलित ललित सिया पी की।।
गावत ब्रम्हादिक मुनि नारद।
बालमीक बिज्ञान बिसारद।।
सुक सनकादि सेष अरु सारद।
बरनि पवनसुत कीरति निकी।।
गावत बेद पुरान अष्टदस।
छओ सास्त्र सब ग्रथन को रस।।
मुनि जन धन संतन को सरबस।
सार अंस संमत सबही की।।
गावत संतत शम्भू भवानी।
अरु घटसंभव मुनि बिग्यानी।।
व्यास आदि कबिबर्ज बखानी।
कागभुशुण्डि गरुण के ही की।।
कलिमल हरनि बिषय रस फीकी।
सुभग सिंगार मुक्ति जुवती की।।
दलन रोग भव मूरी अमी की।
तात मात सब विधि तुलसी की।।

श्री रामायण विसर्जन (shri ramayan visarjan)


जय जय राजा राम की,जय लक्ष्मण बलवान।
जय कपीस सुग्रीव की, जय अंगद हनुमान।।
जय जय कागभुशुण्डि की, जय गिरि उमा महेश।
जय ऋषि भारद्वाज की,जय तुलसी अवधेश।।
प्रभु सन कहियो दंडवत, तुमहि कहौ कर जोर।
बार-बार रघुनाथ कहि सुरति करावहु मोर।।
कामहि नारि पियार जिमि,लोभिहि प्रिय जिमि दाम।
तिमि रघुनाथ निरंतर, प्रिय लागहु मोहि राम।।
बार-बार वर मागहु हर्ष देहु श्री रंग।
पद सरोज अन पयनी भगति सदा सतसंग।।
प्रणत पाल रहगुवंश मणि करुणा सिंधु खरारि।
गये शरण प्रभु राखिहैं सब अपराध बिसार।।
कथा विसर्जन होत हैं सुनो वीर हनुमान।
जो जन जहाँ से आये हैं ते तः करो पयान।।
श्रोता सब आश्रम गए शम्भु गए कैलाश।
रामायण मम हिर्दय में सदा करो तुम वास।।
रामायण जसु पावन गावहि सुनहि जे लोग।
राम भगति दृढ पावहि विन विराग जप जोग।।
रामायण बैकुण्ठ गई सुर गए निज निज धाम।
रामचंद्र के पद कमल बंदि गये हनुमान।।
।।सियावर रामचंद्र की जय।।
।।उमा पति महादेव जी की जय।।
।।पवनसुत हनुमानजी की जय।।
।।गोस्वामी तुलसीदास जी की जय।।
।।बोलो भाई सब संतो की जय।।
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रविवार, 14 मार्च 2021

श्री रामायण आवाहन ( Shri Ramayan Aavahan)


 जो सुमिरत सिद्ध होय गण नायक करिवर बदन।
करहुँ अनुग्रह सोई बुद्धि राशि शुभ गुण सदन।।
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मूक होई वाचाल पंगु चढ़ाई गिरिवर गहन।
जासु कृपासु दयाल द्रवहु सकल कलिमल दहन।।/div>
नील सरोरुह श्याम तरुन अरुन वारिज नयन।
करहु सो मम उर धाम सदा क्षीरसागर सयन।।
कुंद इंदु सम देह उमा रमन करुणा अयन।
जाहि दिन पर नेह करहुँ कृपा मर्दन मयन।।
बंदहु गुरुपद कंज कृपा सिंधु नर रूप हरि।
महा मोह तम पुंज जासु वचन रविकर निकर।।
बंदहु मुनिपद कंज रामायन जेहि निर मयऊ।
सखर सुकोमल मंजु दोष रहित दूषन सहित।।
बंदहु चारहु वेद भव वारिध वो हित सरिस।
जिनहि न सपनेहु खेद बरनत रघुपति विमल यश।।
बंदहु विधि पद रेनु भवसागर जिन कीन्ह यह।
संत सुधा शशि छेनू प्रगटे खल विष बारुनी।।
बंदहु अवध भुआल सत्य प्रेम जेहि राम पद।
बिछुरत दीनदयाल प्रिय तनु तृन ईव पर हरेऊ।।
बंदहु पवन कुमार खल वन पावक ज्ञान घन।
जासु ह्र्दय आगार बसहि राम सर चाप धर।।
राम कथा के रसिक तुम, भक्ति राशि मति धीर।
आय सो आसन लीजिये, तेज पुंज कपि वीर।।
रामायण तुलसीकृत कहऊ कथा अनुसार।
प्रेम सहित आसन गहऊ आवहु पवन कुमार।।
 ।। सियावर रामचंद्र जी की जय ।।
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वैभवलक्ष्मी व्रत कथा ( Vaibhav lakshmi vrat katha )

किसी शहर में लाखों लोग रहते थे। सभी अपने अपने कामो में रत रहते थे। किसी को किसी की परवाह नहीं थीं। भजन कीर्तन भक्ति-भाव, दया-माया, परोपकार जैसे संस्कार कम हो गए थे। शहर में बुराई बढ़ गई थी। शराब, जुआ, रेस, व्यभिचार, चोरी, डकैती आदि बहुत से अपराध शहर में होते थे। इसके बाद भी शहर में कुछ अच्छे लोग भी रहते थे। ऐसे ही लोगो मे शीला और उसके पति की गृहस्थी मानी जाती थी।शीला धार्मिक प्रवृत्ति की औऱ संतोषी स्वभाव वाली थी। उसका पति भी विवेकी औऱ सुशील था। शीला और उसका पति कभी किसी की बुराई नहीं करते थे। औऱ प्रभु भजन में अच्छी तरह से समय व्यतीत कर रहे थे। शहर के लोग उसकी गृहस्थी की सराहना करते थे। देखते ही देखते समय बदल गया। शीला का पति बुरे लोगो से दोस्ती कर बैठा। अब वह जल्दी से जल्दी करोड़पति होने के सपने देखने लगा। इसलिए वह गलत रास्ते पर चल पड़ा। उसकी हालत रास्ते पर भटकते भिखारी जैसी हो गई। शराब, जुआ, रेस, चरस, गांजा आदि बुरी आदतों में शीला का पति भी फस गया। दोस्तो के साथ उसे भी शराब की आदत हो गई। इस प्रकार उसने अपना सबकुछ जुए में गवा दिया। शीला को पति के वर्ताव से बहुत दुख हुआ किन्तु वह भगवान पर भरोसा कर सबकुछ सहने लगी। वह अपना अधिकांश समय प्रभु भक्ति में बिताने लगी। अचानक एक दिन दोपहर में किसी ने उसके द्वार पर दस्तक दी। शीला ने दरवाजा खोला तो देखा कि एक माँ जी खड़ी थी। उनके चहरे पर अलौकिक तेज निखर रहा था। उनकी आँखों मे मानो अमृत बह रहा था। उनका भव्य चेहरा करुणा औऱ प्यार से छलक रहा था। उनको देखते ही शीला के मन मे अपार शांति छा गई। शीला के रोम रोम में आनंद छा गया। शीला उन माँ जी को आदर के साथ घर मे ले आई। घर मे बिठाने के लिए कुछ नही था अतः शीला ने सकुचाकर एक फ़टी हुई चादर पर उनको बिठाया।
माँ जी ने कहा क्यो शीला मुझे पहचाना नही? शीला ने सकुचाते हुए कहा माँ आपको देखते ही खुशी हो रही है। बहुत शांति हो रही है। ऐसा लगता हैं कि मैं बहुत दिनों से जिसे ढूढ़ रही थी वे आप ही है पर मैं आपको पहचान नही सकती। माँ जी ने हँसकर कहा क्यो? भूल गई? हर शुक्रवार को लक्ष्मी जी के मंदिर में भजन कीर्तन होते है, तब मैं भी वहाँ आती हूँ। वहाँ हर शुक्रवार को हम मिलते हैं। पति गलत रास्ते पर चला गया तब से शीला बहुत दुखी हो गई थी औऱ दुख की मारी वह लक्ष्मी जी के मंदिर में नही जाती थी। बाहर के लोगो से नजरे मिलते भी उसे बहुत शर्म आती थी। उसने याददाश्त पर जोर डाला पर वह माँ जी याद नही आ रही थी। तभी माँ जी ने कहा तू लक्ष्मी जी के मंदिर में कितने मधुर गीत गाती थी। अभी अभी तू दिखाई नही देती थी इसलिए मुझे हुआ कि तू क्यों नही आती है? कहि बीमार तो नही हो गई है न? ऐसा सोचकर मैं तुझसे मिलने चली आयी हूँ। माँ जी के अति प्रिय शब्दों से शीला का दिल पिघल गया उसकी आँखों में आँसू आ गए। माँ जी के सामने वह बिलख बिलख कर रोने लगी।
माँ जी ने कहा- बेटी! सुख औऱ दुख तो धूप छाव जैसे होते हैं। धैर्य रखो बेटी! औऱ तुझे परेशानी क्या है? तेरे दुख की बात मुझे सुना। तेरा मन हल्का हो जायेगा। माँ जी की बात सुनकर शीला के मन को शांति मिली।
उसने माँ जी से कहा- माँ मेरी गृहस्थी में भरपूर खुशियां औऱ सुख था मेरे पति भी सुशील थे। अचानक हमारा भाग्य हमसे रूठ गया। मेरे पति बुरी संगत में फस गए औऱ बुरी आदतों के शिकार हो गए तथा अपना सबकुछ गवा बैठे हैं तथा हम रास्ते के भिखारी जैसे बन गए हैं।
यह सुनकर माँ जी ने कहा:- ऐसा कहा जाता है कि कर्म की गति न्यारी होती है, हर इंसान को अपने कर्मो का फल भुगतना ही पड़ता है। इसलिए तू चिंता मत कर। अब तू कर्म भुगत चुकी है। अब तुम्हारे सुख के दिन अवश्य आएंगे। तू तो माँ लक्ष्मी जी की भक्त हैं। माँ लक्ष्मी जी तो प्रेम औऱ करुणा का अवतार हैं। वे अपने भक्तों पर हमेशा ममता रखती है। इसलिए तू धैर्य रखकर माँ लक्ष्मी जी का व्रत कर। इससे सबकुछ ठीक हो जाएगा। 'माँ लक्ष्मी जी का व्रत' करने की बात सुनकर शीला के चेहरे पर चमक आ गई। उसने पूछा: माँ! लक्ष्मी जी का व्रत कैसे किया जाता हैं, वह मुझे समझाइये मैं यह व्रत अवश्य करुँगी।
● व्रत की विधि-
माँ जी ने कहा:- बेटी! माँ लक्ष्मी जी का व्रत बहुत सरल है। इसे "वरदलक्ष्मी" व्रत या "वैभवलक्ष्मी" व्रत भी कहा जाता है। इस व्रत को करने वाले कि सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। वह सुख, सम्पत्ति, औऱ यश प्राप्त करता है। ऐसा कहकर माँ जी व्रत की विधि कहने लगी बेटी! 'वैभवलक्ष्मी' व्रत बैसे तो सीधा सादा व्रत है। किंतु कुछ लोग इसे गलत तरीके से करते हैं अतः उसका फल नही मिलता। कई लोग कहते हैं की सोने के गहने की हल्दी कुमकुम से पूजा करो बस व्रत हो गया। पर ऐसा नहीं है। कोई भी व्रत शास्त्रीय विधि से करना चाहिए। तभी उसका फल मिलता है। सच्ची बात यह है  सोने के गहने की विधि से पूजा करनी चाहिए। व्रत की उद्यापन विधि भी शास्त्रीय विधि से करनी चाहिए। यह व्रत शुक्रवार को करना चाहिए। प्रातः काल स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनो औऱ सारा दिन जय माँ लक्ष्मी का रटन करो। किसी की चुगली नही करनी चाहिए। शाम को पूर्व दिशा में मुख करके आसन पर बैठ जाओ। सामने पाटा रखकर उस पर रूमाल रखो। रुमाल पर चावल का छोटा सा ढेर करो उस पर तांबे का कलश रखकर, उस पर एक कटोरी रखो। उसमे एक सोने का गहना रखो, सोने का न हो तो चांदी का भी चलेगा, अगर वह भी न हो तो नगद रुपया भी चलेगा। बाद में घी का दीपक जलाकर अगरबत्ती जलाकर रखे। माँ लक्ष्मी जी के बहुत से स्वरूप है और माँ लक्ष्मी जी को श्रीयंत्र बहुत प्रिय हैं। अतः वैभवलक्ष्मी में पूजन विधि करते समय सर्व प्रथम 'श्री यंत्र ' औऱ लक्ष्मी जी के विविध स्वरूपो का सच्चे मन से दर्शन करो। उसके बाद "लक्ष्मी स्तवन" का पाठ करो। बाद में कटोरी में रखे हुए गहने अथवा रुपये को हल्दी कुमकुम चावल चढ़ाकर पूजा करो और लाल रंग का फूल चढ़ाओ। शाम को किसी मीठी चीज का प्रसाद बनाकर उसका प्रसाद रखो। न हो तो शक्कर या गुड़ भी चल सकता है। फिर आरती करके ग्यारह वार सच्चे मन से जय माँ लक्ष्मी बोलो बाद में ग्यारह या इक्कीस शुक्रवार यह व्रत करने का संकल्प करो औऱ आपकी जो भी मनोकामना हो उसे पूरी करने की माँ लक्ष्मी जी से प्रार्थना करो। फिर माँ का प्रसाद बाट दो औऱ थोड़ा प्रसाद अपने लिए रख लो। अगर आप मे शक्ति हो तो सारा दिन उपवास रखो और केवल प्रसाद खाकर शुक्रवार का व्रत करो। न शक्ति हो तो एक बार शाम को प्रसाद ग्रहण करते समय भोजन करे। अगर थोड़ी शक्ति भी न हो तो दो बार भोजन कर सकते हैं। बाद में कटोरी में रखे गहने अथवा रुपये को संभालकर आपने पास रखे और कलश के जल को तुलसी में डाल दें, चावल पक्षियों को डाल दें। इस प्रकार शास्त्रीय विधि से व्रत करने से इसका फल अवश्य ही मिलता है। इस व्रत के प्रभाव से सभी प्रकार की विपत्ति दूर हो कर आदमी मालामाल हो जाता है। संतान न हो तो संतान की प्राप्ति होती है। सोभग्यवती स्त्री का शौभाग्य अखण्ड रहता है। कुँवारी कन्या को मनभावन पति मिलता है। शीला यह सुनकर आनन्दित हो गई। फिर पूछा माँ! आपने "वैभवलक्ष्मी" व्रत की जो शास्त्रीय विधि बताई है वैसे मैं अवश्य करुँगी। किन्तु उसकी उद्यापन किस प्रकार करनी चाहिये? कृपा कर बताइये,
◆ उद्यापन विधि:-
माँ जी ने कहा:- ग्यारह या इक्कीस जितने का संकल्प लिया हो उतने शुक्रवार यह वैभवलक्ष्मी व्रत पूरी श्रद्धा से करे। अंतिम शुक्रवार को खीर का नैवेद्य बनाये। पूजन विधि जैसी हर शुक्रवार को करते हैं वैसी ही करनी चाहिए। पूजन के बाद श्रीफल फोड़ो औऱ कम से कम सात कन्याओं अथवा सौभाग्यशाली स्त्रियों को कुमकुम का तिलक लगाकर वैभवलक्ष्मी व्रत की एक एक पुस्तक उपहार में देनी चाहिए। औऱ सबको खीर का प्रसाद देना चाहिए। फिर धनलक्ष्मी स्वरूप वैभवलक्ष्मी स्वरूप माँ लक्ष्मी जी की छवि को प्रणाम करें। माँ लक्ष्मी जी का यह स्वरूप वैभव देने वाला है। प्रणाम करते हुए भावुकता से मन ही मन माँ की प्रार्थना करते हुए कहे कि हे माँ धनलक्ष्मी! हे माँ वैभवलक्ष्मी! मैने सच्चे मन से आपका व्रत पूर्ण किया है तो हे माँ! हमारी मनोकामना पूर्ण कीजिये। हमारा सबका कल्याण कीजिए। जिसे संतान न हो उसे संतान देना, सौभाग्यशाली स्त्रियों का सौभाग्य अखंड कीजिए। कुँवारी कन्याओ को मन भावन वर दीजिए। आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत जो करे उसकी सभी विपत्ति दूर करना। सबको सुखी करना हे माँ! आपकी महिमा अपरंपार है। माँ जी से व्रत की विधि सुनकर शीला भावविभोर हो गई। उसे लगा मानो सुख का रास्ता मिल गया। उसने आँखे बंद करके मन ही मन उसी क्षण संकल्प लिया कि हे वैभवलक्ष्मी मैं भी माँ जी की बताई शास्त्रीय विधि से वैभवलक्ष्मी व्रत इक्कीस शुक्रवार तक करुँगी। शीला ने संकल्प करके आँखे खोली तो सामने कोई नही था वह विस्मित हो गई कि माँ जी कहा गई? यह माँ जी कोई और नही साक्षात लक्ष्मी जी ही थी। शीला लक्ष्मी जी की भक्त थी इसलिए अपने भक्त को रास्ता दिखाने के लिए माँ लक्ष्मी देवी जी माँ  जी का रूप धारण कर शीला के पास आई थी ।
● शीला का व्रत करना औऱ उसका फल प्राप्त करना।
दूसरे दिन शुक्रवार था। प्रातः काल स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनकर शीला मन ही मन श्रद्धा औऱ पूरे भाव से जय माँ लक्ष्मी का मन ही मन रटन करने लगी। सारा दिन किसी की चुगली नही की। शाम हुई तब हाथ पैर धोकर शीला पूर्व दिशा में मुँह करके बैठी। घर मे पहले तो सोने के बहुत से गहने थे पर पति ने सारे गहने गिरवी रख दिये थे। पर नाक की कील बच गई थी। शीला ने नाक की कील निकालकर उसे धोकर कटोरी में रख दिया। सामने पाटे पर मुट्ठी भर चावल रखकर उस पर तांबे का कलश जल भरकर रख दिया। उसके ऊपर कील वाली कटोरी रख दी। फिर विधि पूर्वक वंदन, स्तमवन, पूजन आदि किया और घर मे थोड़ी सी शक्कर थी वह प्रसाद में रख कर वैभवलक्ष्मी का व्रत किया औऱ यह प्रसाद पति को खिलाया। प्रसाद खाते ही पति के स्वभाव में अंतर आ गया। उस दिन उसने शीला को सताया नही उसे मारा नही। शीला को बहुत आनंद हुआ उसके मन मे वैभवलक्ष्मी व्रत के लिए श्रद्धा औऱ बढ़ गई। शीला ने पुर्ण श्रद्धा-भक्ति से इक्कीस शुक्रवार तक व्रत किया। इक्कीसवें शुक्रवार को विधि पूर्वक उद्यापन करके सात स्त्रियों को वैभवलक्ष्मी व्रत की सात पुस्तकें उपहार में दी। फिर माता के धनलक्ष्मी स्वरूप की छवि को वंदन करके भाव से मन ही मन प्रार्थना करने लगी- हे माँ धनलक्ष्मी! मैंने आपका वैभवलक्ष्मी व्रत करने का संकल्प लिया था वह व्रत आज पूर्ण किया है। हे माँ! मेरी हर विपत्ति को दूर करो। हम सबका कल्याण करो। जिसे संतान न हो उसे संतान देना। सौभाग्यशाली स्त्रियों का सौभाग्य अखंड रखना। कुँवारी कन्याओं को मनभावन पति देना। जो कोई आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत करे। उसकी सब विपत्तियों को दूर करना। सबको सुखी करना। हे माँ! आपकी महिमा अपरंपार है। ऐसा बोलकर लक्ष्मी जी के धनलक्ष्मी स्वरूप को प्रणाम किया।
इस प्रकार शास्त्रीय विधि से शीला ने श्रद्धा से व्रत किया औऱ तुरंत ही उसे फल मिला। उसका पति सही रास्ते पर चलने लगा औऱ अच्छा आदमी बन गया तथा कड़ी मेहनत से व्यवसाय करने लगा। धीरे धीरे समय परिवर्तित हुआ औऱ उसने शीला के गिरवी रखे गहने छुड़ा लिए घर मे धन की बाढ़ सी आ गयी। घर मे पहले जैसी सुख-शांति छा गई।
वैभवलक्ष्मी व्रत का प्रभाव देखकर मोहल्ले की दूसरी स्त्रियां भी शास्त्रीय विधि से वैभवलक्ष्मी का व्रत करने लगी।
हे माँ! धनलक्ष्मी आप जैसे शीला पर प्रसन्न हुई उसी तरह आपका व्रत करने वाले सभी भक्तों पर प्रसन्न होना सबको सुख-शांति देना। जय माँ धनलक्ष्मी जय माँ वैभवलक्ष्मी। https://newssaransha.blogspot.com saransha newssaransha

गुरुवार, 11 मार्च 2021

श्री दुर्गा चालीसा एवं दुर्गा जी की आरतियाँ (Shri Durga Chalisa & Durga Ji Ki Artiyan)

नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
 नमो नमो अम्बे दुख हरनी।।
निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूँ लोक फैली उजयरी।।
शशि ललाट मुख महाविशाला।
नेत्र लाल भुकुटी विकराला।।
रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे।।
तुम संसार शक्ति लै कीन्हा।
पालन हेतु अन्न धन दीना।।
अन्नपूर्णा हुई तुम जग पाला।
तुम ही आदि सुंदरी वाला।।
प्रलयकाल सब नासन हारी।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी।।
शिव योगी तुमरे गुण गावे।
ब्रह्म विष्णु तुम्हें नित ध्यावे।।
रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा।।
धरयो रूप नरसिह को अम्बा।
प्रगट हुई फाड् कर खम्बा।।
रक्षा करी प्रह्लाद बचायो।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो।।
लक्ष्मी रूप धरो जग माही।
श्री नारायण अंग समाही।।
क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दयासिन्धु दीजे मन आशा।।
हिंगलाज में तुम्ही भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी।।
मातंगी अरु धूमावति माता।
भुवनेश्वरी वगला सुख दाता।।
श्री भैरव तारा जग तारिणी।
छिन्न भाल भव दुख निवारिणी।।
केहरि वाहन सोह भवानी।
लांगुर वीर चलत अगवानी।।
कर में खप्पर खड़ग विराजे।
जाको देख काल डर भाजे।।
सोहे अस्त्र औऱ त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हिय शूला।।
नगरकोट में तुम्ही विराजत।
तिहु लोक में डंका वाजत।।
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे।
रक्तबीज शंखन संहारे।।
महिषासुर नृप अति अभिमानी।
जेहि अघ भार मही अकुलानी।।
रूप कराल कालीका धारा।
सेना सहित तुम तेहि संहारा।।
परी गाढ़ संतन पर जब जब।
भई सहाय मातु तुम तब तब।।
अमरपुरी अरु बासव लोका।
तब महिमा सब रहे अशोका।।
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हे सदा पूजे नर नारी।।
प्रेम भक्ति से जो यश गावे।
दुख दरिद्र निकट नही आवे।।
ध्याबे तुम्हें जो नर मन लाई।
जन्म मरण ताकौ छुटि जाई।।
योगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी।।
शंकर अचरज तप कीन्हा।
काम अरु क्रोध जीत सब लीन्हा।।
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहू काल नही सुमिरो तुमको।।
शक्ति रूप को मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछितायो।।
शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी।।
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दाई शक्ति नही कीन्ह विल्मवा।
मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम विन कौन हरे दुख मेरो।।
आशा तृष्णा निपट सतावै।
मोह मदादिक सब बिनशाबे।
शत्रु नाश कीजै महारानी।
सुमिरौ इकचित तुम्हे भवानी।।
करो कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धि सिद्धि दे करहु निहाला।।
जब लगि जिऊ दया फल पाऊ।
तुम्हरो यश में सदा सुनाऊ।।
दुर्गा चालीसा जो गावै।
सब सुख भोग परम् पद पावै।।
देवीदास शरण निज जानी।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी।।
।। इति श्री दुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ।।
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          *श्री दुर्गा जी की आरती*
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशदिन ध्यावत हरि ब्रम्हा शिवरी।।
जय अम्बे गौरी....
माँग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को।
उज्ज्वल से दोऊ नैना, चंद्रवदन नीको।।
जय अम्बे गौरी....
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै।
रत्न पुष्प गल माला, कंठन पर साजै।।
जय अम्बे गौरी.....
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर मुनिजन सेवत, तिनके दुःख हारी।।
जय अम्बे गौरी.....
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।
कोटिक चन्द्र दिवाकर, राजत समज्योति।।
जय अम्बे गौरी....
शुम्भ निशुम्भ बिडारे, महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती।।
जय अम्बे गौरी.....
चण्ड–मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे।
मधु कैटभ दोऊ मारे, सुर भयहीन करे।।
जय अम्बे गौरी.....
ब्राम्हणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी।।
जय अम्बे गौरी.....
चौसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा, अरु बाजत डमरू।।
जय अम्बे गौरी....
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता।
भक्तन की दुख हर्ता, सुख सम्पत्ति करता।।
जय अम्बे गौरी......
भुजचारी अति शोभित, रक्ताम्बर धारी।
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी।।
जय अम्बे गौरी......
अम्बे जी की आरती जो कोई नर गावैं।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पत्ति पावै।।
जय अम्बे गौरी....
         *माँ दुर्गा जी की आरती*
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्परवाली,
तेरे ही गुण गाये भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।
तेरे भक्तजनों पर माता भीड़ पड़ी है भारी।
दानव दल पर टूट पडो माँ करके सिंह सवारी।।
सौ सौ सिंहो सी तू बलशाली, हे दस भुजाओ वाली,
दुखियों के दुखड़े निवारती। 
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती
माँ बेटे का है इस जग में बड़ा ही सुंदर नाता।
पूत कपूत सुने है पर न माता सुनी कुमाता।
सब पर करुणा बरसाने वाली, 
अमृत बरसाने वाली, दुखियो के दुखड़े निवारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती
नही माँगते धन और दौलत न चाँदी न सोना,
हम तो मांगे माँ तेरे मन मे इक छोटा सा कौना।
सबकी बिगड़ी बनाने वाली, लाज बचाने वाली,
सतियो के सत को सँवारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती




बुधवार, 10 मार्च 2021

।। श्री रुद्राष्टक ।। (shri rudrashtak)

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुम व्यापकं ब्रम्हवेदस्वरूम।
निजं निर्गुणम निर्विकल्पं निरिहम चिदकाशमाकावासम भजेहम ।।१।।
निराकारमोकारमूलम तुरीयं गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम।
करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारम नतोहम।।२।।
तुषाराद्रि संकाश गौरम गभीरं मनोभूत कोटिप्रभा श्रीशरीरम।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा लसभदलबालेंदु कंठे भुजंगा।।३।।
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं निलकंठम दयालम।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि।।४।।
प्रचंडं प्रकृष्टम प्रगल्भं परेशं अखंडं अजं भानुकोटिप्रकाशं।
त्रयः शूल निर्मूलम शूलपाणिम भजेहम भवानीपतिम भावगम्यम।।५।।
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी।
चिदानंद संदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी।।६।।
न यावत उमानाथ पदरविंदम भजंतीह लोके परे वा नराणां।
न तावत सुखम शांति सन्तापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम।।७।।
न जानामि योगम जपं नैव पूजां नतोहं सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम।
जरा जन्म दुःखो घतातप्यमानम प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो।।८।।
रुद्राष्टकम्मिदम प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये।
ये पठंति नरा भक्त्या तेषा शंभु: प्रसीदति।।
।। इति श्री गोस्वामी तुलसीदास कृतं श्रीरूद्राष्टकम सम्पूर्णम।।

मंगलवार, 9 मार्च 2021

।। श्री गणेश चालीसा ।। एवं ।।श्री गणेश जी की आरती।।(Shri Ganesh Chalisa & shri ganesh ji ki aarti)

दोहा- जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजा लाल।।
चौपाई- जय जय जय गणपति गणराजू।
            मंगल भरण करण शुभ काजू।।
जय गजबदन सदन सुख दाता।
विश्व विनायक बुद्धि विधाता।।
वक्रतुण्ड सुचि शुण्ड सुहावन।
तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन।।
राजित मणि मुक्तन उर माला।
सवर्ण मुकुट सिर नयन विशाला।।
पुस्तक पाणी कुठार त्रिशूलं।
मोदक भोग सुगंधित फुलं।।
सुन्दर पीतांबर तन साजित।
चरण पादुका मुनि मन राजित।।
धनि शिवसुवन षडानन भ्राता।
गौरी ललन विश्व विधाता।।
ऋद्धि सिद्धि तव चवर डुलावे।
मूसक वाहन सोहत द्वारे।।
कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी।
अति शुचि पावन मंगलकारी।।
एक समय गिरिराज कुमारी ।
पुत्र हेतू तप कीन्हा भारी।।
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा।
तब पहुच्चो तुम धरि द्विज रूपा।।
अतिथि जान के गौरी सुखारी।
वहु विधि सेवा कीन्ह तुम्हारी।।
अति प्रसन्न ह्व तुम वर दीन्हा।
मातु पुत्र हित जौ तप कीन्हा।।
मिलहि पुत्र तुहि बुद्धि विशाला।
बिना गर्भ धारण यहि काला।।
गणनायक गुण ज्ञान निधाना।
पूजित प्रथम रूप भगवाना।।
अस कहि अंतर्ध्यान रूप ह्व।
पालन पर बालक स्वरूप ह्व।।
बनि शिशु रुदन जबहि तुम ठाना।
लखि मुख सुख नही गौरी समाना।।
सकल मगन सुख मंगल गावहि।
नभ ते सुरन सुमन वर्षावहीँ।।
शम्भू उमा बहु दान लुटावहिं।
सुर मुनि जन सूट देखन आवहि।।
लख अति आनन्द मंगल साजा।
देखन भी आए शनि राजा।।
निज अवगुण गुनि शनि मन माही।
बालक देखन चाहत नाही।।
गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो।
उत्सव मोर न शनि तुहि भायो।।
कहन लगे शनि मन सकुचाई।
का करिहौ शिशु मोहि दिखाई।।
नही विश्वास उमा कर भयऊ।
शनि सो बालक देखन कहेउँ।।
पडतहिं शनि दृग कोण प्रकासा।
बालक सिर उड़ गयो आकाशा।।
गिरिजा गिरी विकल ह्व धरणी।
सो दुख दशा गयो नही वरणी।।
हाहाकार मचो कैलाशा।
शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा।।
तुरन्त गरुण चढ़ विष्णु सिधाए।
काट चक्र सो गज सिर लाए।।
बालक के धड़ ऊपर धरयो।
प्राण मंत्र पढ़ शंकर डारयो।।
नाम गणेश शम्भू तब कीन्हे।
प्रथम पूज्य बुद्धि निधि वर दीन्हे।।
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा।
पृथ्वी की पदक्षिणा लीन्हा।।
चले षड़ानन भरमि भुलाई।
रची बैठे तुम बुद्धि उपाय।।
चरण मातु पितु के धर लीन्हा।
तिन के सात प्रदक्षिणा कीन्हा।।
धन्य गणेश कहि शिव हिय हरषे।
नभते सुरन सुमन बहु बरसे।।
तुम्हारी महिमा बुद्धि बढाई।
शेष सहस मुख सकै न गाई।।
मैं मतिहीन मलीन दुखारी।
करहु कौन विधि विनय तुम्हारी।।
भजत रामसुन्दर प्रभू दासा।
लख प्रयाग ककरा दुर्वासा।।
अब प्रभू दया दीन पर कीजै।
अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजे।।
दोहा- श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करे धर ध्यान। (https://newssaransha.blogspot.com)
नित नव मंगल ग्रह बसै, लहै जगत कल्याण।। (news saransha)
सम्वत अपन शास्त्र दस ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरन चालीसा भयो मंगलमूर्ति गणेश।।
(saransha) 
        ।। श्री गणेश जी की आरती ।।
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
एक दांत दयावंत, चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे, मूस की सवारी।।
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा,
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
पान चढ़े फूल चढ़े, और चढ़े मेवा।
लडुअन का भोग लगे, संत करे सेवा।
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा,
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
अंधन को आँख देत, कोढ़िन को काया।
बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।।
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा,
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
'सूर' श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
दीनन की लाज रखो, शम्भू सुतकारी।
कामना को पूरी करो, जाऊ बलिहारी।।
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा,
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
       ।।श्री गणेश जी की आरती।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकीं पार्वती पिता महादेवा।।
जय गणेश देवा...
एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।
मस्तक सिंदूर सोहे मुस की सवारी।।
जय गणेश देवा....
पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा।
लड्डू का भोग लगे संत करे सेवा।।
जय गणेश देवा...
अंधन को आँख देत कोढ़िन को काया।
वाझन को पुत्र देत निर्धन को माया।।
जय गणेश देवा....
दीनन की लाज रखो शम्भू सुतकारी।
कामना को पूरा करो जाऊ बलिहारी।।
जय गणेश देवा....
सूर श्याम शरण आये सफल करो सेवा।
माता जाकीं पार्वती पिता महादेव।।
जय गणेश देवा...

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