रविवार, 14 मार्च 2021

वैभवलक्ष्मी व्रत कथा ( Vaibhav lakshmi vrat katha )

किसी शहर में लाखों लोग रहते थे। सभी अपने अपने कामो में रत रहते थे। किसी को किसी की परवाह नहीं थीं। भजन कीर्तन भक्ति-भाव, दया-माया, परोपकार जैसे संस्कार कम हो गए थे। शहर में बुराई बढ़ गई थी। शराब, जुआ, रेस, व्यभिचार, चोरी, डकैती आदि बहुत से अपराध शहर में होते थे। इसके बाद भी शहर में कुछ अच्छे लोग भी रहते थे। ऐसे ही लोगो मे शीला और उसके पति की गृहस्थी मानी जाती थी।शीला धार्मिक प्रवृत्ति की औऱ संतोषी स्वभाव वाली थी। उसका पति भी विवेकी औऱ सुशील था। शीला और उसका पति कभी किसी की बुराई नहीं करते थे। औऱ प्रभु भजन में अच्छी तरह से समय व्यतीत कर रहे थे। शहर के लोग उसकी गृहस्थी की सराहना करते थे। देखते ही देखते समय बदल गया। शीला का पति बुरे लोगो से दोस्ती कर बैठा। अब वह जल्दी से जल्दी करोड़पति होने के सपने देखने लगा। इसलिए वह गलत रास्ते पर चल पड़ा। उसकी हालत रास्ते पर भटकते भिखारी जैसी हो गई। शराब, जुआ, रेस, चरस, गांजा आदि बुरी आदतों में शीला का पति भी फस गया। दोस्तो के साथ उसे भी शराब की आदत हो गई। इस प्रकार उसने अपना सबकुछ जुए में गवा दिया। शीला को पति के वर्ताव से बहुत दुख हुआ किन्तु वह भगवान पर भरोसा कर सबकुछ सहने लगी। वह अपना अधिकांश समय प्रभु भक्ति में बिताने लगी। अचानक एक दिन दोपहर में किसी ने उसके द्वार पर दस्तक दी। शीला ने दरवाजा खोला तो देखा कि एक माँ जी खड़ी थी। उनके चहरे पर अलौकिक तेज निखर रहा था। उनकी आँखों मे मानो अमृत बह रहा था। उनका भव्य चेहरा करुणा औऱ प्यार से छलक रहा था। उनको देखते ही शीला के मन मे अपार शांति छा गई। शीला के रोम रोम में आनंद छा गया। शीला उन माँ जी को आदर के साथ घर मे ले आई। घर मे बिठाने के लिए कुछ नही था अतः शीला ने सकुचाकर एक फ़टी हुई चादर पर उनको बिठाया।
माँ जी ने कहा क्यो शीला मुझे पहचाना नही? शीला ने सकुचाते हुए कहा माँ आपको देखते ही खुशी हो रही है। बहुत शांति हो रही है। ऐसा लगता हैं कि मैं बहुत दिनों से जिसे ढूढ़ रही थी वे आप ही है पर मैं आपको पहचान नही सकती। माँ जी ने हँसकर कहा क्यो? भूल गई? हर शुक्रवार को लक्ष्मी जी के मंदिर में भजन कीर्तन होते है, तब मैं भी वहाँ आती हूँ। वहाँ हर शुक्रवार को हम मिलते हैं। पति गलत रास्ते पर चला गया तब से शीला बहुत दुखी हो गई थी औऱ दुख की मारी वह लक्ष्मी जी के मंदिर में नही जाती थी। बाहर के लोगो से नजरे मिलते भी उसे बहुत शर्म आती थी। उसने याददाश्त पर जोर डाला पर वह माँ जी याद नही आ रही थी। तभी माँ जी ने कहा तू लक्ष्मी जी के मंदिर में कितने मधुर गीत गाती थी। अभी अभी तू दिखाई नही देती थी इसलिए मुझे हुआ कि तू क्यों नही आती है? कहि बीमार तो नही हो गई है न? ऐसा सोचकर मैं तुझसे मिलने चली आयी हूँ। माँ जी के अति प्रिय शब्दों से शीला का दिल पिघल गया उसकी आँखों में आँसू आ गए। माँ जी के सामने वह बिलख बिलख कर रोने लगी।
माँ जी ने कहा- बेटी! सुख औऱ दुख तो धूप छाव जैसे होते हैं। धैर्य रखो बेटी! औऱ तुझे परेशानी क्या है? तेरे दुख की बात मुझे सुना। तेरा मन हल्का हो जायेगा। माँ जी की बात सुनकर शीला के मन को शांति मिली।
उसने माँ जी से कहा- माँ मेरी गृहस्थी में भरपूर खुशियां औऱ सुख था मेरे पति भी सुशील थे। अचानक हमारा भाग्य हमसे रूठ गया। मेरे पति बुरी संगत में फस गए औऱ बुरी आदतों के शिकार हो गए तथा अपना सबकुछ गवा बैठे हैं तथा हम रास्ते के भिखारी जैसे बन गए हैं।
यह सुनकर माँ जी ने कहा:- ऐसा कहा जाता है कि कर्म की गति न्यारी होती है, हर इंसान को अपने कर्मो का फल भुगतना ही पड़ता है। इसलिए तू चिंता मत कर। अब तू कर्म भुगत चुकी है। अब तुम्हारे सुख के दिन अवश्य आएंगे। तू तो माँ लक्ष्मी जी की भक्त हैं। माँ लक्ष्मी जी तो प्रेम औऱ करुणा का अवतार हैं। वे अपने भक्तों पर हमेशा ममता रखती है। इसलिए तू धैर्य रखकर माँ लक्ष्मी जी का व्रत कर। इससे सबकुछ ठीक हो जाएगा। 'माँ लक्ष्मी जी का व्रत' करने की बात सुनकर शीला के चेहरे पर चमक आ गई। उसने पूछा: माँ! लक्ष्मी जी का व्रत कैसे किया जाता हैं, वह मुझे समझाइये मैं यह व्रत अवश्य करुँगी।
● व्रत की विधि-
माँ जी ने कहा:- बेटी! माँ लक्ष्मी जी का व्रत बहुत सरल है। इसे "वरदलक्ष्मी" व्रत या "वैभवलक्ष्मी" व्रत भी कहा जाता है। इस व्रत को करने वाले कि सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। वह सुख, सम्पत्ति, औऱ यश प्राप्त करता है। ऐसा कहकर माँ जी व्रत की विधि कहने लगी बेटी! 'वैभवलक्ष्मी' व्रत बैसे तो सीधा सादा व्रत है। किंतु कुछ लोग इसे गलत तरीके से करते हैं अतः उसका फल नही मिलता। कई लोग कहते हैं की सोने के गहने की हल्दी कुमकुम से पूजा करो बस व्रत हो गया। पर ऐसा नहीं है। कोई भी व्रत शास्त्रीय विधि से करना चाहिए। तभी उसका फल मिलता है। सच्ची बात यह है  सोने के गहने की विधि से पूजा करनी चाहिए। व्रत की उद्यापन विधि भी शास्त्रीय विधि से करनी चाहिए। यह व्रत शुक्रवार को करना चाहिए। प्रातः काल स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनो औऱ सारा दिन जय माँ लक्ष्मी का रटन करो। किसी की चुगली नही करनी चाहिए। शाम को पूर्व दिशा में मुख करके आसन पर बैठ जाओ। सामने पाटा रखकर उस पर रूमाल रखो। रुमाल पर चावल का छोटा सा ढेर करो उस पर तांबे का कलश रखकर, उस पर एक कटोरी रखो। उसमे एक सोने का गहना रखो, सोने का न हो तो चांदी का भी चलेगा, अगर वह भी न हो तो नगद रुपया भी चलेगा। बाद में घी का दीपक जलाकर अगरबत्ती जलाकर रखे। माँ लक्ष्मी जी के बहुत से स्वरूप है और माँ लक्ष्मी जी को श्रीयंत्र बहुत प्रिय हैं। अतः वैभवलक्ष्मी में पूजन विधि करते समय सर्व प्रथम 'श्री यंत्र ' औऱ लक्ष्मी जी के विविध स्वरूपो का सच्चे मन से दर्शन करो। उसके बाद "लक्ष्मी स्तवन" का पाठ करो। बाद में कटोरी में रखे हुए गहने अथवा रुपये को हल्दी कुमकुम चावल चढ़ाकर पूजा करो और लाल रंग का फूल चढ़ाओ। शाम को किसी मीठी चीज का प्रसाद बनाकर उसका प्रसाद रखो। न हो तो शक्कर या गुड़ भी चल सकता है। फिर आरती करके ग्यारह वार सच्चे मन से जय माँ लक्ष्मी बोलो बाद में ग्यारह या इक्कीस शुक्रवार यह व्रत करने का संकल्प करो औऱ आपकी जो भी मनोकामना हो उसे पूरी करने की माँ लक्ष्मी जी से प्रार्थना करो। फिर माँ का प्रसाद बाट दो औऱ थोड़ा प्रसाद अपने लिए रख लो। अगर आप मे शक्ति हो तो सारा दिन उपवास रखो और केवल प्रसाद खाकर शुक्रवार का व्रत करो। न शक्ति हो तो एक बार शाम को प्रसाद ग्रहण करते समय भोजन करे। अगर थोड़ी शक्ति भी न हो तो दो बार भोजन कर सकते हैं। बाद में कटोरी में रखे गहने अथवा रुपये को संभालकर आपने पास रखे और कलश के जल को तुलसी में डाल दें, चावल पक्षियों को डाल दें। इस प्रकार शास्त्रीय विधि से व्रत करने से इसका फल अवश्य ही मिलता है। इस व्रत के प्रभाव से सभी प्रकार की विपत्ति दूर हो कर आदमी मालामाल हो जाता है। संतान न हो तो संतान की प्राप्ति होती है। सोभग्यवती स्त्री का शौभाग्य अखण्ड रहता है। कुँवारी कन्या को मनभावन पति मिलता है। शीला यह सुनकर आनन्दित हो गई। फिर पूछा माँ! आपने "वैभवलक्ष्मी" व्रत की जो शास्त्रीय विधि बताई है वैसे मैं अवश्य करुँगी। किन्तु उसकी उद्यापन किस प्रकार करनी चाहिये? कृपा कर बताइये,
◆ उद्यापन विधि:-
माँ जी ने कहा:- ग्यारह या इक्कीस जितने का संकल्प लिया हो उतने शुक्रवार यह वैभवलक्ष्मी व्रत पूरी श्रद्धा से करे। अंतिम शुक्रवार को खीर का नैवेद्य बनाये। पूजन विधि जैसी हर शुक्रवार को करते हैं वैसी ही करनी चाहिए। पूजन के बाद श्रीफल फोड़ो औऱ कम से कम सात कन्याओं अथवा सौभाग्यशाली स्त्रियों को कुमकुम का तिलक लगाकर वैभवलक्ष्मी व्रत की एक एक पुस्तक उपहार में देनी चाहिए। औऱ सबको खीर का प्रसाद देना चाहिए। फिर धनलक्ष्मी स्वरूप वैभवलक्ष्मी स्वरूप माँ लक्ष्मी जी की छवि को प्रणाम करें। माँ लक्ष्मी जी का यह स्वरूप वैभव देने वाला है। प्रणाम करते हुए भावुकता से मन ही मन माँ की प्रार्थना करते हुए कहे कि हे माँ धनलक्ष्मी! हे माँ वैभवलक्ष्मी! मैने सच्चे मन से आपका व्रत पूर्ण किया है तो हे माँ! हमारी मनोकामना पूर्ण कीजिये। हमारा सबका कल्याण कीजिए। जिसे संतान न हो उसे संतान देना, सौभाग्यशाली स्त्रियों का सौभाग्य अखंड कीजिए। कुँवारी कन्याओ को मन भावन वर दीजिए। आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत जो करे उसकी सभी विपत्ति दूर करना। सबको सुखी करना हे माँ! आपकी महिमा अपरंपार है। माँ जी से व्रत की विधि सुनकर शीला भावविभोर हो गई। उसे लगा मानो सुख का रास्ता मिल गया। उसने आँखे बंद करके मन ही मन उसी क्षण संकल्प लिया कि हे वैभवलक्ष्मी मैं भी माँ जी की बताई शास्त्रीय विधि से वैभवलक्ष्मी व्रत इक्कीस शुक्रवार तक करुँगी। शीला ने संकल्प करके आँखे खोली तो सामने कोई नही था वह विस्मित हो गई कि माँ जी कहा गई? यह माँ जी कोई और नही साक्षात लक्ष्मी जी ही थी। शीला लक्ष्मी जी की भक्त थी इसलिए अपने भक्त को रास्ता दिखाने के लिए माँ लक्ष्मी देवी जी माँ  जी का रूप धारण कर शीला के पास आई थी ।
● शीला का व्रत करना औऱ उसका फल प्राप्त करना।
दूसरे दिन शुक्रवार था। प्रातः काल स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनकर शीला मन ही मन श्रद्धा औऱ पूरे भाव से जय माँ लक्ष्मी का मन ही मन रटन करने लगी। सारा दिन किसी की चुगली नही की। शाम हुई तब हाथ पैर धोकर शीला पूर्व दिशा में मुँह करके बैठी। घर मे पहले तो सोने के बहुत से गहने थे पर पति ने सारे गहने गिरवी रख दिये थे। पर नाक की कील बच गई थी। शीला ने नाक की कील निकालकर उसे धोकर कटोरी में रख दिया। सामने पाटे पर मुट्ठी भर चावल रखकर उस पर तांबे का कलश जल भरकर रख दिया। उसके ऊपर कील वाली कटोरी रख दी। फिर विधि पूर्वक वंदन, स्तमवन, पूजन आदि किया और घर मे थोड़ी सी शक्कर थी वह प्रसाद में रख कर वैभवलक्ष्मी का व्रत किया औऱ यह प्रसाद पति को खिलाया। प्रसाद खाते ही पति के स्वभाव में अंतर आ गया। उस दिन उसने शीला को सताया नही उसे मारा नही। शीला को बहुत आनंद हुआ उसके मन मे वैभवलक्ष्मी व्रत के लिए श्रद्धा औऱ बढ़ गई। शीला ने पुर्ण श्रद्धा-भक्ति से इक्कीस शुक्रवार तक व्रत किया। इक्कीसवें शुक्रवार को विधि पूर्वक उद्यापन करके सात स्त्रियों को वैभवलक्ष्मी व्रत की सात पुस्तकें उपहार में दी। फिर माता के धनलक्ष्मी स्वरूप की छवि को वंदन करके भाव से मन ही मन प्रार्थना करने लगी- हे माँ धनलक्ष्मी! मैंने आपका वैभवलक्ष्मी व्रत करने का संकल्प लिया था वह व्रत आज पूर्ण किया है। हे माँ! मेरी हर विपत्ति को दूर करो। हम सबका कल्याण करो। जिसे संतान न हो उसे संतान देना। सौभाग्यशाली स्त्रियों का सौभाग्य अखंड रखना। कुँवारी कन्याओं को मनभावन पति देना। जो कोई आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत करे। उसकी सब विपत्तियों को दूर करना। सबको सुखी करना। हे माँ! आपकी महिमा अपरंपार है। ऐसा बोलकर लक्ष्मी जी के धनलक्ष्मी स्वरूप को प्रणाम किया।
इस प्रकार शास्त्रीय विधि से शीला ने श्रद्धा से व्रत किया औऱ तुरंत ही उसे फल मिला। उसका पति सही रास्ते पर चलने लगा औऱ अच्छा आदमी बन गया तथा कड़ी मेहनत से व्यवसाय करने लगा। धीरे धीरे समय परिवर्तित हुआ औऱ उसने शीला के गिरवी रखे गहने छुड़ा लिए घर मे धन की बाढ़ सी आ गयी। घर मे पहले जैसी सुख-शांति छा गई।
वैभवलक्ष्मी व्रत का प्रभाव देखकर मोहल्ले की दूसरी स्त्रियां भी शास्त्रीय विधि से वैभवलक्ष्मी का व्रत करने लगी।
हे माँ! धनलक्ष्मी आप जैसे शीला पर प्रसन्न हुई उसी तरह आपका व्रत करने वाले सभी भक्तों पर प्रसन्न होना सबको सुख-शांति देना। जय माँ धनलक्ष्मी जय माँ वैभवलक्ष्मी। https://newssaransha.blogspot.com saransha newssaransha

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