सोमवार, 28 फ़रवरी 2022

श्री सत्यनारायण व्रत कथा (Shri Satyanarayan Vrat Katha)

आज के इस अंक में हम आपको सम्पूर्ण श्री सत्यनारायण व्रत कथा पूजन विधि बताएंगे। 
                   पूजन विधी
सर्वप्रथम पूर्वाभिमुख होकर बैठ जाए एवं निम्नलिखित मंत्र से आचमन करे
ॐ माधवाय नमः
ॐ केशवाय नमः
ॐ गोविन्दाय नमः
ॐ ऋषिकेशाय नमः इस मंत्र का उच्चारण करते हुए अपने हाथों को धो ले।
इसके बाद सम्पूर्ण पूजन सामग्री आदि को निम्न मंत्र से जल छिड़कते हुए पवित्र करे
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्ववस्थां गतोऽपिवा।
यः स्मेरत् पुण्डरीकाक्षं स वाहभ्यन्तरः शुचि।। 
इसके बाद स्वस्तीवाचन मंत्र मांगलिक श्लोक का पाठ करे,
इसके बाद संकल्प करे।
ऊँ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु अद्य ब्रम्हाणोऽहि द्वितीयपराधै श्री श्वेतवाराहकल्पै वैवस्वतमन्यन्तरेऽष्टाविंशतितमे
कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्वूद्वीपेभरतखण्डे भारतवर्षे
..स्थाने ....नामसंवत्सरे ...ऋतौ....मासे
....पक्षे..तिथौ....दिने...काले...गौत्रः...
श्री सत्यनारायणस्य पूजन कथा श्रृवणाख्य कर्म करिष्ये।
इसके बाद गणेश अंबिका नवग्रह पूजन करें। फिर भगवान शलिग्राम का पूजन करें।
सर्व प्रथम हाथ में अक्षत पुष्प लेकर भगवान श्री सत्यनारायण  का इस मंत्र को बोलते हुए ध्यान करें 
नमो‌‌ऽस्त्वनन्ताय सहस्त्रमूर्तये सहस्त्रपाटाक्षिशिरोरूवाहवे 
सहस्त्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते
सहस्त्रकोटी युगघारिणे नमः।
श्री सत्यनारायणाय नमः ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि। (भगवान के सामने पुष्प छोड़ दें)
इसके बाद हाथ में पुष्प आदि लेकर भगवान श्री सत्यनारायण का आवाहन करें
आगच्छभगवन देव स्थानेचात्र स्थिरो भव।
यावत पूजां करिष्यामि तावत् त्वं संनिधौ भव।।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
आवाहनार्थे पुष्पों समर्पयामि।
(आवाहन के लिए पुष्प चढ़ाएं)
इसके बाद भगवान श्री सत्यनारायण को पुष्पों का आसन दें।
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः।
आसनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि (आसन के लिए पुष्प समर्पित करें)
फिर भगवान के पैरों को जल से धोए
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः।
पादयो: पाधं समर्पयामि।
इसके बाद फिर भगवान के ऊपर जल छिड़के, भगवान को अर्घ्य दें।
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः।
हस्तयोअघ्र्य समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को आचमन के लिए जल चढाएं।
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः।
आचमनीयं एवं समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को शुद्ध जल से स्नान कराएं।
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः।
स्न्नानीय जलं समर्पयामि।
भगवान को दूध से स्नान कराएं
श्री सत्यनारायणाय नमः।
पय‌‌: स्नान समर्पयामि। इसके बाद भगवान को शुद्ध जल से स्नान कराएं।
इसके बाद भगवान को दही से स्नान कराएं।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
दधिस्नानं समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को शुद्ध जल से स्नान कराएं।
इसके बाद भगवान को घी से स्नान कराएं। 
श्री सत्यनारायणाय नमः।
घृतस्न्नानं समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को शुद्ध जल से स्नान कराएं।
इसके बाद भगवान को शहद से स्नान कराएं।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
 मधुस्न्नानं समर्पयामि।
के बाद भगवान को शुद्ध जल से स्नान
कराएं।
उसके बाद भगवान को शक्कर से स्नान कराएं।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
शर्करास्न्नानं समर्पयामि।
भगवान को पुनः शुद्ध जल से स्नान कराएं।
इसके बाद भगवान को पंचामृत से स्नान कराएं।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
 पंचामृतस्न्नानं समर्पयामि।
इसके बाद पुनः भगवान को शुद्ध जल से स्नान कराएं।
इसके बाद भगवान को गंधोदक से स्नान कराएं।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
गन्धोदकस्न्नानं समर्पयामि।
इसके बाद पुनः भगवान को शुद्ध जल से स्नान कराएं।
इसके बाद भगवान को वस्त्र चढ़ाएं।
 और एक आचमनी जल चढाएं।
ओम श्री सत्यनारायणाय नमः।
वस्त्रंसमर्पयामि।
 आचमनीयं जलं समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को उप वस्त्र चढ़ाएं।
और एक आचमनी जल चढाएं।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
उपवस्त्रं समर्पयामि।
आचमनीयं जलं समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को यज्ञोपवीत चढ़ाएं।
इसके बाद एक आचमनी जल चढ़ाएं।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
यज्ञोपवीतं समर्पयामि।
आचमनीयं जलं समर्पयामि।
भगवान को चंदन लगाएं।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
 चंदनम समर्पयामि।
चंदन लगाने के बाद भगवान को स्वेत तिल अर्पित करें।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
श्वेततिलान समर्पयामि।
फिर भगवान को पुष्प या पुष्प माला अर्पित करें।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
पुष्पम पुष्पमाला च समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को तुलसीदल अर्पित करें
श्री सत्यनारायणाय नमः।
तुलसीदलं तुलसीमञ्जरी च समर्पयामि।
के बाद भगवान को हरी दुव चढ़ाएं
श्री सत्यनारायणाय नमः।
दुर्वाकुरान समर्पयामि।
उसके बाद भगवान को आभूषण समर्पित करें।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
अलड्करणार्थे आभूषणानि समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को इत्र अर्पित करें।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
सुगन्धिततैलादिद्रव्यं समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को धूप अर्पित करें।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
धूपमाघ़ापयामि।
के बाद भगवान को दीप दिखाएं
श्री सत्यनारायणाय नमः।
दीपं दर्शयामि।
द्वीप दिखाने  के बाद अपने हाथों को धो लें।
इसके बाद भगवान को तुलसीदल डालकर भोग लगाएं। और एक आचमनी जल छोड़ें।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
नैवेधं निवेदयामि।
 आचमनीयं जलं समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को पांच वार जल छोड़ें।ॐ प्रणाय स्वाह:
ॐ अपानाय स्वाहा:
ॐ व्यानाय ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंस्वाहा:
ॐ उदानाय स्वाहा:
ॐ समानाय स्वाहा:
इसके बाद भगवान से प्रार्थना करें।
त्वदीयं वस्तु गोविन्दतुभ्यमेवसमर्पये।
गृहाण सुमुखोभूत्वा प्रसीद परमेश्वर।।
इसके बाद भगवान को ऋतुफल समर्पित करें और एक आचमनी जल छोड़ें।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
अखण्डऋतुफलं समर्पयामि।
फलान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को ताम्बूल (पान लौंग इलायची) आदि अर्पित करें।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
एलालवंगपूगीफलयुतं ताम्वूलं समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को द्रव्य दक्षिणा अर्पित करें।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
द्रव्यदक्षिणां समर्पयामि।
 इसके बाद श्री सत्यनारायण से प्रार्थना करें कि हे प्रभु हमने यथाशक्ति आपका पूजन किया है इसे स्वीकार करें एवं हमारे पूजन में अगर कोई त्रुटि हो तो उसे क्षमा करें।
सशड्खचक्रं सकिरीटकुण्डलं
सपीतवस्त्रं सरसीरुहेक्षणम्।
सहारवक्ष: स्थलकौस्तुभश्रियं
नमामि विष्णु विरसा चतुर्भुजम्।।
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्यनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकांतं कमलनयनं योगिभिध्यानगम्यं
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।
श्री सत्यनारायणाय नमः।
प्रार्थना समर्पयामि।
इसके बाद श्री सत्यनारायण व्रत कथा पुस्तक का पूजन कर कथा श्रवण करें कथा के बाद हवन पुष्पांजलि क्षमा प्रार्थना करें इसके बाद प्रसाद वितरण करें।

बुधवार, 23 फ़रवरी 2022

ध्यान मंत्र (Dhyan Mantra)

             १ श्री गायत्री ध्यानम
बालां विद्यां तु गायत्रीं लोहितां चतुराननाम्।
रक्ताम्बरद्वयोपेतामक्षसूत्रकरां तथा।।
कमण्डलुधरां देवी हंसवाहनसंस्थितां।
ब्राह्मणीं ब्रहम्दैवत्यां ब्रह्मलोकनिवासिनीम्।।
मन्त्रोणावाध्येद्देवीमायान्तीं सुर्यमण्डलात्।
               २ श्री भैरव ध्यानम्
करकलितकपालः कुंडली दंडपाणिः।
तरुणातिमिरनीलो व्याल यज्ञोपवीती।।
क्रतुसमयसपर्या विघ्नविच्छेद हेतुः।
जयति वटुकनाथः सिद्धिदःसाधकानाम्।।
              ३ श्री दुर्गा ध्यानम्
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोखिलस्य।
प्रसीद विश्वेश्वरी पाहि विश्वंत्वमीश्वरी देवी
चराचरस्य।।
              ४ श्री राम ध्यानम्
नीलाम्वुजश्यामलकोमलांगं सीतासमारोपित बामभागम्।
पाणौ महासायकचारूचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम्।।
              ५ श्री हनुमंत ध्यानम
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रयं वुद्धिमतां वरिष्ठं।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपधे।।

शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

मांगलिक श्लोक(ManglikShlok)

साथियों प्रत्येक शुभ पूजन में स्वस्तिवाचन औऱ मांगलिक श्लोक का अत्यधिक महत्व
होता है इन दोनों के बिना कोई भी शुभ पूजन पूर्ण नही माना जाता इसलिए प्रत्येक शुभ पूजन में स्वस्तिवाचन मंत्र के उपरांत मांगलिक श्लोक बोले जाते हैं, आज हम आपको मांगलिक श्लोक का पाठ लेकर आए हैं,
             ।। मांगलिक श्लोक।।
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः।
लम्वोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः।।१।।
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचद्रो गजाननः।
द्वादशैतानि नामांनि यः पठेच्छृणुयादपि।।२।।
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते।।३।।
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुभुर्जम्।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशानवतये।।४।।
अभिप्सितार्थ सिद्धार्थ पूजितो यः सुरासुरैः।
सर्वविघ्नहरस्तस्मै गणाधिपतये नमः।।५।।
सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वथिसाधिके।
शरण्ये त्रयंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।६।।
सर्वदा सर्वकार्येषु नास्ति तेषां मङ्गलं।
येषां हिर्दयस्थो भगवान मङ्गलायतनो हरि।।७।।
तदेव लग्नं सुदिनं तदेव ताराबलं चन्द्रबलं तदेव।
विद्याबलं देवबलं तदेव लक्ष्मीपति तेऽड्घ्रियुगं स्मरामि।।८।।
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः।
येषांमिन्दीवरश्यामो ह्रदयस्थो जनार्दनः।।९।।
यत्र योगेश्वर कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।
तत्र श्री विजयो भूतिध्रुवा नीतिर्मतिर्मम।।१०।।
सर्वेष्वारम्भ कार्येषु त्रयस्त्रिभुवेन्श्वराः।
देवा दिशन्तु नः सिद्धिं ब्रम्हेशान जनार्दनः।।११।।
विश्वेशं माधवं ढुण्डिं दण्डपाणिं च भैरवम्।
वन्दे काशी गुहां गङ्गा भवानी मणिकर्णिकाम्।।१२।।
श्रीमन्महागणाधिपतये नमः। लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः।
उमामहेश्वराभ्यां नमः।
वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः।
शचीपुरन्दराभ्यां नमः।
मातृपितृचरणकमलेभ्यो नमः।
इष्टदेवताभ्यो नमः।
कुलदेवताभ्यो नमः।
ग्रामदेवताभ्यो नमः।
वास्तुदेवताभ्यो नमः।
स्थानदेवताभ्यो नमः।
सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः।
सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः।
ॐ सिद्धिवुद्धिसहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः।

शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2022

सम्पूर्ण स्वस्तिवाचन मंत्र (svastivachan mantra)

साथियों आज हम आपको बताने जा रहे हैं सम्पूर्ण स्वस्तिवाचन मंत्र जिसके बिना हर शुभ पूजन अधूरा माना जाता है, और पूजन का पूर्ण फल प्राप्त नही होता, इसलिए हर शुभ पूजन में स्वस्तिवाचन का पाठ होना अति आवश्यक है।
              ।।स्वस्तिवाचन मंत्र।।
आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उभ्दिदः।
देवा नो यथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवे दिवे।।१।।
देवानां भद्रा सुमतिऋजयतां देवानां गुंग रातिरभि नो निवर्तताम्।
देवानां गुंग सख्यमुसेदिमा वयं देवा ने आयुः प्रतिरन्तु जीवसे।।२।।
तान्पूर्वया निविदा हूमहे वयं भगं मित्रमदिति दक्षमस्त्रिधम्।
अर्यमणं वरुण गुंग सोममश्विना सरस्वती नः सुभगा मयस्करत्।।३।।
तन्नो वातो मयोभु वातु भेषजं तन्माता पृथ्वी तत्पिता द्यौः।
तद् ग्रावाणः सोमसुतो मयोभुवस्तदश्विना श्रृणुतं धिष्ण्या युवम्।।४।।
तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पति धियञ्ञिवमवसे हूमहे वयम्।
पूषा नो यथा वेदसामसद् वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये।।५।।
स्वस्ति न इन्द्रो वृध्दश्रवाः स्वस्ति नः पुषा विश्ववेदाः स्वस्ति नस्ताक्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।।६।।
पृषदश्वा मरुतः पृन्श्रिमातरः शुभं यावानो विदधेषु जग्मयः।
अग्निजिह्म मनवः सूरचक्षसो विश्व नो देवा अवसागमन्निह।।७।।
भद्रं कर्णेभिः श्रृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।
स्थिरैरङ्गेस्तुष्टुवा गुंग सस्तनूभिव्-र्यशेमहि देवहितं यदायुः।।८।।
शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चका जरसं तनूनाम।
पुत्रसो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तो।।९।।
अदितिद्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्रः विश्वे देवा अदितिः पञ्च् जना अदितिर्जातमदितिजीनित्वम्।।१०।।
द्यौः शान्तिन्ततरिक्ष गुंग ॐ शान्तिः पृथिवी शान्तिराषः शान्तिरोषधयः शान्ति।
वनस्पतयः शान्तिविश्वे देवाः
शान्तिब्रम्ह शान्तिः सर्व गुंग शान्ति शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि।।११।।
यतो यतः समीहसे ततो नो अभयं कुरु।
शं नः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः पशुभ्यः।।१२।।
ॐ गणानांत्वा गणपति गुंग हवामहे प्रियाणांत्वा प्रियपति गुंग हवामहे निधीनांत्वा निधिपति गुंग हवामहे वसोमम आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्।।
ऊँ अम्बे अम्विकेऽम्वालिके न मा नयति कश्चन।
ससस्त्यश्वकः सुभाद्रिकांकाम्पीलवासिनीम्

गुरुवार, 3 फ़रवरी 2022

शिवतांडव स्त्रोतरम (ShivTandavStrotram)

शिवतांडव स्त्रोतरम बोलना सीखे सरल तरीके से।।

जटा-टवी-गलज्-जल-प्रवाह-पावि-तस्थले
गलेऽव-लम्व्य लम्बितां भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम्।
डमड्-डमड्-डमड्-डमन्-निनाद-वड्-डमर्वयं-
चकारचण्ड-ताण्डवं तनोतु नः शिवःशिवम् ।।१।।
जटा-कटाह-सम्भ्रम-भ्रमन्-निलिम्पनिर्झरी 
विलोल-विचिवल्लरी-विराज-मानमूधनि।
धगद्-धगद्-धगज्-ज्वलल्-ललाट-पट्टपावके
किशोर-चन्द्र-शेखरे रत़िःप्रति-क्षणं.मम।।२।।
धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-विलास-बन्धुबन्धूर
स्फुरद्-दिगन्त-सन्तति-प्रमोद-मानमानसे।
कृपा-कटाक्ष-धोरणी-निरूध्द-दुर्धरा-पदि
क्वचिद्-दिगम्वरे मनो विनोद-मेतुवस्तुनि।।३।।
जटा-भुजङ्ग-पिङ्गल-स्फ़ूरत-फणामणि-प्रभा-
कदम्ब-कुड़कुम-द्रव-प्रलिप्त दिग्वधू-मुखे।
मदान्ध-सिन्धुर-स्फ़ूरत-त्वगुत्तरीय-मेदुरे
मनो विनोद-मभूतं विभर्तु भूत भर्तरि।।४।।
सहस्त्र-लोचन-प्रभृत्य-शेष-लेख-शेखर
प्रसून-धूलि-धोरणी-विधु-सराधि-पीठभू:।
भुजङ्ग-राज-मालया निबद्ध-जाट-जुटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोर-बंधु-शेखरः।।५।।
ललाट-चत्वर-ज्वलद्-धन्ञ्नय-स्फुलिङ्गभा-
निपीत-पञ्च-सायकं नमन्-निलिम्प-नायकम्
सुधा-मयूख-लेखया.विराज-मान-शेखरं
महा-कपालि सम्पदे शिरो जटाल-मस्तुनः।।६।।
कराल-भाल-पट्टीका-धगद्-धगद्-धगज्-ज्वलद्
धन्ञ्नया-हती-कृत-प्रचण्ड-पञ्च-सायकं।
धरा-धरेन्द्र नन्दिनी-कुचाग्र-चित्र-पत्रक-
प्रकल्प-नेक-शिल्पिनि-त्रिलोचने-रतिर्मम।।७।।
नवीन-मेघ-मण्डली-निरूद्ध-दुर्धर-स्फुरत्-
कुह-निशीधिनी-तमः-प्रबन्ध-बद्ध-कन्धरः।
निर्लिम्पनिर्झरी-धरस-तनोत-कृत्ती-सिन्धुरः
कला-निधान-बन्धुरःश्रियं जगद्-धुरन्धरः।।८।।
प्रफुल्ल-नील-पड्कज-प्रपञ्च-कालिम-प्रभा-
वलम्वि-कण्ठ-कन्दली-रूचि-प्रवद्ध-कन्धरम्।
स्मरच्छिदं-पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छि-दान्ध-कच्छिदं तमन्त-कच्छिदंभजे।।९।।
अखर्व-सर्व-मङ्गला-कला-कदम्बमञ्जरी
रस-प्रवाह-माधुरी-विजम्भृणा-मधुन्व्रतम।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्त-कान्ध-कान्तकं तमन्त-कान्तकंभजे।।१०।।
जयत्-वदभ्र-विभ्रम-भ्रमद-भुजङ्गमश्वस
द्विनिर्गमत-क्रम-स्फुरत्-कराल-भाल-हव्य-वाट
धिमिद्-धिमिद्-धिमिद्-ध्वनन-तुङ्ग-मङ्गल-
ध्वनि-क्रम-प्रवर्तित-प्रचण्ड-ताण्डवः शिवः।।११।।
दृषद्-विचित्र-तल्पयोर्-भुजङ्ग-मौक्ति-कस्त्रजोर-गरिष्ठ-रत्न-लोष्ठयोःसुहृद-विपक्ष-पक्ष-यो:।
तृणारविन्द-चक्षुषोःप्रजा-मही-महेन्द्रयोः
सम-प्रवृत्ति-कः कदा सदा-शिवंभजाम्यहम्।।१२।।
कदा निलिम्प-निर्झरी-निकुञ्ज-कोटरेवसन
विमुक्त-दुर्मतीः सदा शिरः स्थ-मञ्जलिवहन्।
विलोल-लोल-लोचनो ललाम-भाल-लग्नकः
शिवेति मन्त्र मुच्चरन् कदा सुखीभवाम्यहम्।।१३।।
इमं हि नित्य-मेव-मुक्त-मुत्त-मोत्तमस्तवं
पठन् स्मरन् ब्रुवन्-नरो विशुद्धि-मेतिसन्ततम्।
हरे गुरौ सुभक्ति-मासु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशड्करस्यचिन्तनम्।।१४।।
पूजा-वसान-समये दश-वक्त्र-गीतं
यः शम्भु-पूजन-परं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथ-गजेन्द्र- तुरङ्ग-युक्तां
लक्ष्मी सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भूः।।१५।।


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साथियों आज के अंक में हम भारत के प्रमुख पर्यटन स्थल के बारे में जानकारी देंगे जहां पर Indian tourist के अलावा all world से tourist भी काफी स...