१ श्री हनुमान चालीसा
दोहा- श्री गुरु चरण सरोज रज निज मनु मुकुर सुधारि।
बरनऊ रघुबर बिमल जसु जो दायक फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरो पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि हरहु कलेश विकार।।
चौपाई- जय हनुमान ज्ञान गुण सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनी पुत्र पवनसुत नामा।।
महावीर विक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन वरण विराज सबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा विराजे।
कांधे मूंज जनेऊ साजे।।
शंकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जग बंदन।।
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिवे को आतुर।।
प्रभु चरित सुनबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा।
बिकट रुप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे।।
लाय सजीवन लखन जियाए।
श्री रघुवीर हरषि उर लाए।।
रघुपति किंही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरत सम भाई।।
सहस बदन तुम्हारो यश गावै।
अस कहिश्रीपति कंठ लगावै।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीषा।
नारद शारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कवि कोबिद कहि सके कहां ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हां।
राम मिलाए राजपद दीन्हा।।
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही।
जलधि लांघी गए अचरज नाही।।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना।।
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक ते कांपे।।
भूत पिशाच निकट नहीं आवै।
महावीर जब नाम सुनावै।।
नासे रोग हरे सब पीरा ।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
संकट से हनुमान छुडावे।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावे।।
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिनके काज सकल तुम साजा।।
और मनोरथ जो कोई लावे।
सोई अमित जीवन फल पावे।।
चारों युग परताप तुम्हारा।
है प्रसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु संत के तुम रखवारे ।
असुर निकंदन राम दुलारे।।
अष्ट सिद्धि नवनिधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हारे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुम्हारे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै।।
अंत काल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि भक्त कहाई।।
और देवता चित्त ना धराई।
हनुमत सेई सर्व सुख करई।।
संकट कटे मिटे सब पीरा।
जो सुमिरे हनुमत बलबीरा।।
जय जय जय हनुमान गोसाई।
कृपा करो गुरुदेव की नाई।।
यह सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदी महा सुख होई।
जो यह पढ़े हनुमान चालीसा।।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महं डेरा।।
दोहा-पवन तनय संकट हरण मंगल मूर्ति रुप राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुरभूप।।
२ बजरंग बाण
दोहा-निश्चय प्रेम प्रतीति ते विनय करें सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ सिद्ध करैं हनुमान।।
चौपाई-जय हनुमंत संत हितकारी।
सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।।
जन के काज विलंब न कीजै।
आतुर दोरी महासुख दीजे।।
जैसे कूदि सिंधु महि पारा।
सुरसा बदन पैठी विस्तारा।।
आगे जाय लंकिनी रोका।
मारेहु लात गई सुर लोका ।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा।
सीता निरखि परम पद लीन्हा।।
बाग उजाड़ सिंधु महं बोरा।
अति आतुर यम कातर तोरा ।।
अक्षय कुमार कु मारी सहारा।
लूम लपेट लंक को जारा ।।
लाह समान लंक जरि गई ।
जय जय धुनि सुर पुर में भई ।।
अब विलंब केहि कारण स्वामी ।
कृपा करहु उर अंतर्यामी ।।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता।
आतुर होई दुख करहु निपाता ।।
जय गिरधर जय जय सुख सागर।
सुर समूह समरथ भट नागर।।
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले।
बैरिहि मारू बज्र की कीले।।
गदा बच्चे बज्र बैरिहि मारो।
महाराज प्रभु दास उबारो।।
ॐ कार हुंकार प्रभु धावो।
बज्र गदा हनु विलंब न लावो।।
ॐ ह्मी ह्मी ह्मी हनुमंत कपीसा।
ॐ हुं हुं हुं हनु अति उर शीशा।।
सत्य होहु हरि शपथ पाय के।
रामदूत धरू मारू धाई के।।
जय जय जय हनुमंत अगाधा।
दुख पावत जन केहि अपराधा।।
पूजा जप तप नेम अचारा।
नहिं जानत हौं दास तुम्हारा।।
वन उपवन मग गिरि गृह माहीं।
तुम्हरे बल हम डरपत नाही ।।
पांव परौ कर जोरि मनाबो।
यही अवसर अब केहि गौहरावौ।।
जय अंजनी कुमार बलवंता।
शंकर सुवन वीर हनुमंता ््।।
बदन कराल काल कुल घालक।
रामसहाय सदा प्रतिपालक ।।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर।
अग्नि बेताल काल मारी मर।।
इन्हें मारु तो ही शपथ राम की।
राखु नाथ मर्याद नाम की ।।
जनक सुता हरिदास कहावो ।
ताकी शपथ विलंब न लावो।
जय जय जय ध्वनि होत अकाशा।
सुमिरत होत दुसह दुख नाशा।।
चरण शरण कर जोरि मनाबो ।
यहि अवसर अब केहि गोहरावौ।।
उठु उठु चलु तोहि राम दुहाई।
पायं परों कर जोरि मनाई ।।
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता ।
ॐ हनु हनु हनु हनुमंता।।
ॐ हं हं हं देत कपि चंचल ।
ॐ सं सं सहमि पराने खलदल ।।
अपने जन को तुरत उबारो ।
सुमिरत होय आनंद हमारो ।।
यह बजरंग बाण जेहि मारे।
ताहि कहौ फिर कौन उवारे।।
पाठ करै बजरंग बाण की।
हनुमत रक्षा करें प्राण की।।
यह बजरंग बाण जो जापे।
ता शो भूत प्रेत सब कांपे।।
पर धूप देय अरु जपै हमेशा।
ताके तन नहीं रहे कलेशा।।
दौहा-प्रेम प्रतीतिहि कपि भजें सदा धरै उर ध्यान।